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धामी सरकार का बड़ा फैसला, उत्तराखंड में सरकारी विभागों में भर्ती पर तत्काल प्रभाव से लगी रोक

उत्तराखंड सरकार ने राज्य के सभी सरकारी विभागों में नई भर्तियों पर तत्काल प्रभाव से रोक लगा दी है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के नेतृत्व में यह निर्णय सरकारी कार्य प्रणाली में सुधार और सुशासन सुनिश्चित करने के उद्देश्य से लिया गया है। आदेश के अनुसार, संविदा, दैनिक वेतन, फिक्स्ड सैलरी, अंशकालिक, एडहॉक और आउटसोर्स कर्मचारियों की नियुक्ति पर रोक लगाई गई है।

26 Apr, 2025
( Updated: 26 Apr, 2025
10:13 PM )
धामी सरकार का बड़ा फैसला, उत्तराखंड में सरकारी विभागों में भर्ती पर तत्काल प्रभाव से लगी रोक
देवभूमि उत्तराखंड से एक चौंकाने वाली खबर आई जिसने लाखों युवाओं के दिलों की धड़कनें तेज कर दीं. मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की सरकार ने एक बड़ा और ऐतिहासिक फैसला लेते हुए राज्य के सभी सरकारी विभागों में नई भर्तियों पर रोक लगाने का ऐलान कर दिया है. यह फैसला अचानक नहीं था, बल्कि इसके पीछे कई महीनों की गहरी सोच, प्रशासनिक चुनौतियां और न्यायिक प्रक्रियाएं छिपी हुई हैं.

राज्य के मुख्य सचिव आनंदबर्द्धन ने एक आदेश जारी कर सभी प्रमुख सचिवों, सचिवों, विभागाध्यक्षों और जिलाधिकारियों को साफ निर्देश दिए कि अब किसी भी तरह की संविदा, दैनिक वेतनभोगी, फिक्स्ड सैलरी, अंशकालिक, एडहॉक या आउटसोर्स भर्ती पर पूरी तरह रोक रहेगी. यह आदेश सिर्फ एक साधारण कागज का टुकड़ा नहीं, बल्कि उत्तराखंड की सरकारी व्यवस्था में एक बड़ा बदलाव लेकर आया है.

क्यों लिया गया अचानक ऐसा फैसला?

सरकार का तर्क बिल्कुल स्पष्ट है. सुशासन को मजबूत करना है और सरकारी कार्यप्रणाली को पारदर्शी बनाना है. वर्षों से उत्तराखंड में देखा जा रहा था कि अस्थायी भर्तियों के नाम पर विभागीय स्तर पर मनमानी की जा रही थी. कई बार नियमों को ताक पर रखकर संविदा और आउटसोर्स कर्मचारियों की नियुक्ति होती रही. इससे न केवल सरकारी व्यवस्था पर अतिरिक्त आर्थिक भार बढ़ा, बल्कि स्थायी पदों की भर्तियों में भी बाधाएं आने लगीं.

एक और बड़ा कारण था कोर्ट में लंबित मुकदमे. कई अस्थायी कर्मचारियों ने अपनी नौकरी बचाने के लिए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया और स्टे ऑर्डर ले आए. परिणामस्वरूप कई स्थायी भर्ती प्रक्रियाएं अधर में लटक गईं. सरकार इस दुविधा से बाहर निकलना चाहती थी और इसीलिए एक सख्त लेकिन दूरदर्शी कदम उठाया गया.

किन भर्तियों पर रहेगा प्रतिबंध और किन पर नहीं

मुख्य सचिव के आदेश में स्पष्ट किया गया है कि संविदा, दैनिक वेतनभोगी, फिक्स्ड सैलरी, अंशकालिक, एडहॉक और आउटसोर्स कर्मचारियों की नई भर्ती पर पूरी तरह रोक रहेगी. लेकिन चतुर्थ श्रेणी के पदों, जिन्हें डाइंग कैडर माना जाता है, उन पर छठे वेतन आयोग की सिफारिशों के अनुसार अस्थायी भर्ती की अनुमति दी गई है. खास बात यह है कि इन पदों पर भी नियुक्तियां आउटसोर्स एजेंसियों के माध्यम से ही होंगी और इनमें प्रमोशन का कोई अधिकार नहीं होगा.

सरकार ने पुराने दो शासनादेशों – 27 अप्रैल 2018 और 29 अक्टूबर 2021 को भी निरस्त कर दिया है जिनमें अस्थायी भर्ती की छूट दी गई थी. यानी अब से रिक्त पदों का समय-समय पर आकलन कर नियमित प्रक्रिया के जरिए ही भर्तियां होंगी.

वहीं उत्तराखंड वित्त विभाग की एक रिपोर्ट के मुताबिक, राज्य में इस समय करीब 66,841 सरकारी पद खाली पड़े हैं. इनमें राजपत्रित समूह ‘क’ के 3,497, समूह ‘ख’ के 4,709, समूह ‘ग’ के 42,478 और समूह ‘घ’ के 16,163 पद शामिल हैं. जब अस्थायी भर्तियों पर रोक लग गई है तो स्वाभाविक रूप से सरकार को अब इन खाली पदों को भरने के लिए नियमित भर्तियां करनी होंगी.

यानी हजारों युवाओं के लिए सरकारी नौकरी पाने का सपना अब फिर से साकार हो सकता है. राज्य में बेरोजगारी से जूझ रहे युवाओं के लिए यह एक सुनहरी उम्मीद की किरण है. हालांकि इसके लिए उन्हें भर्ती परीक्षाओं में कड़ी प्रतिस्पर्धा से गुजरना पड़ेगा.

आउटसोर्स कर्मचारियों की लड़ाई और कोर्ट का दखल


उत्तराखंड में पिछले कई सालों से एक अलग तरह की जंग चल रही है. जब भी कोई स्थायी भर्ती प्रक्रिया शुरू होती है तो संविदा या आउटसोर्स कर्मचारी कोर्ट चले जाते हैं. वे स्थायी कर्मचारी बनाए जाने की मांग करते हैं और अदालत से स्टे ऑर्डर लेकर भर्ती प्रक्रिया को रोक देते हैं.

सरकार ने अब इस मुकदमेबाजी से निपटने के लिए एक नीति बनाने की ठानी है. मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने घोषणा की थी कि उपनल के जरिए रखे गए आउटसोर्स वर्कर्स को चरणबद्ध तरीके से नियमित किया जाएगा. राज्य में ऐसे कर्मचारियों की संख्या 18 से 20 हजार के बीच बताई जाती है. हाई कोर्ट भी इस दिशा में सरकार को आदेश दे चुका है. नए आदेश से इन कर्मचारियों को भी राहत मिल सकती है.

सरकारी भर्ती की राह खुलने की खबर से युवाओं में जबरदस्त उत्साह देखने को मिल रहा है. सोशल मीडिया पर जगह-जगह इस फैसले की चर्चा हो रही है. कुछ युवाओं का कहना है कि वर्षों से जो भर्तियां अटकी पड़ी थीं अब उनके पूरे होने की उम्मीद जगी है. हालांकि एक वर्ग ऐसा भी है जो सरकार के इस फैसले से थोड़ा नाराज है. संविदा और आउटसोर्स पर काम कर रहे कई कर्मचारी डर में हैं कि अगर स्थायी भर्ती शुरू होती है तो उनकी नौकरी चली जाएगी. लेकिन सरकार का दावा है कि उन्हें भी नीति बनाकर समायोजित किया जाएगा ताकि किसी के साथ अन्याय न हो.

उत्तराखंड सरकार का यह कदम राज्य की प्रशासनिक व्यवस्था में एक नई शुरुआत की ओर इशारा करता है. नियमित भर्तियों से जहां युवाओं को रोजगार मिलेगा वहीं सरकारी मशीनरी में भी नई ऊर्जा और जवाबदेही आएगी. आने वाले समय में अगर सरकार इस फैसले को मजबूती से लागू करती है तो उत्तराखंड सुशासन की दिशा में एक आदर्श राज्य बन सकता है.

अब देखना दिलचस्प होगा कि भर्ती प्रक्रियाओं को कितनी पारदर्शिता और तेजी से आगे बढ़ाया जाता है. युवाओं की उम्मीदें आसमान छू रही हैं और सरकार पर उन्हें पूरा करने की बड़ी जिम्मेदारी आ गई है.

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