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नहीं लगता एक भी रुपया, इस ट्रेन में बिल्कुल मुफ्त मिलता है खाना, जानिए कहां और कैसे

भारत में ऐसी एक अनोखी ट्रेन है जो यात्रियों को नाश्ते से लेकर डिनर तक बिल्कुल मुफ्त खाना परोसती है. सचखंड एक्सप्रेस, जो महाराष्ट्र के नांदेड़ से पंजाब के अमृतसर तक जाती है. ये ट्रेन न सिर्फ धार्मिक स्थलों को जोड़ती है, बल्कि सेवा, श्रद्धा और इंसानियत की मिसाल भी पेश करती है.

21 Apr, 2025
( Updated: 21 Apr, 2025
01:54 AM )
नहीं लगता एक भी रुपया, इस ट्रेन में बिल्कुल मुफ्त मिलता है खाना, जानिए कहां और कैसे
भारत एक ऐसा देश है जहां ट्रेनें सिर्फ लोगों को मंज़िल तक नहीं पहुंचातीं, बल्कि उनका सफर यादगार भी बनाती हैं. लेकिन क्या आपने कभी किसी ऐसी ट्रेन के बारे में सुना है जो न केवल 2,000 किलोमीटर का सफर तय करती है, बल्कि इस पूरे सफर में आपको सुबह का नाश्ता, दोपहर का खाना और रात का डिनर बिल्कुल मुफ्त में कराती है? अगर नहीं, तो आज हम आपको एक ऐसी अनोखी ट्रेन के बारे में बताएंगे.

यह कोई आम ट्रेन नहीं है, यह है सचखंड एक्सप्रेस (Sachkhand Express – 12715/12716). महाराष्ट्र के नांदेड़ से चलकर पंजाब के अमृतसर तक जाने वाली यह ट्रेन दो पवित्र सिख स्थलों को जोड़ती है श्री हजूर साहिब नांदेड़ और श्री हरमंदिर साहिब अमृतसर. इस ट्रेन में हर रोज़ हज़ारों श्रद्धालु सफर करते हैं और यह न केवल एक यात्री सेवा है, बल्कि सिख धर्म और सेवा की परंपरा का चलता-फिरता प्रतीक भी है.

कैसे खास है यह ट्रेन?

सचखंड एक्सप्रेस की सबसे अनोखी बात यह है कि इसमें सफर करने वाले यात्रियों को सफर के दौरान मुफ्त लंगर मिलता है—वो भी कोई एक बार नहीं, पूरे 6 जगहों पर. इन जगहों पर हर यात्री के लिए लंगर तैयार किया जाता है, जिसमें उन्हें गरमागरम भोजन परोसा जाता है. और यह सेवा किसी सरकारी योजना के तहत नहीं, बल्कि गुरुद्वारों के दान, सेवादारों की मेहनत और श्रद्धालुओं की आस्था के कारण संभव हो पाती है.

कहां-कहां मिलता है लंगर?

यह ट्रेन पूरे सफर में करीब 33 घंटे का समय लेती है और रास्ते में 39 स्टेशनों पर रुकती है. इनमें से 6 प्रमुख स्टेशनों पर विशेष व्यवस्था होती है जहां यात्रियों के लिए लंगर तैयार किया जाता है. पहला भोपाल जंक्शन, फिर परभनी जंक्शन, इसके बाद जालना, और फिर औरंगाबाद, मराठवाड़ा और आखिर में नई दिल्ली रेलवे स्टेशन. इन जगहों पर गुरुद्वारों के स्वयंसेवक ट्रेनों का इंतजार करते हैं, उनके पास खाने के बड़े कंटेनर होते हैं, और जब ट्रेन रुकती है, तो सेवादार बिना किसी भेदभाव के यात्रियों को खाना परोसते हैं. खाना इतना स्वादिष्ट होता है कि AC डिब्बे में सफर कर रहे यात्री भी लाइन में लग जाते हैं.

कैसा होता है खाना?

भोजन में अक्सर खिचड़ी, दाल-चावल, आलू-गोभी की सब्ज़ी, कढ़ी-चावल, पूड़ी-छोले जैसी चीज़ें मिलती हैं. मौसम और उपलब्धता के अनुसार मेन्यू में बदलाव होता रहता है, लेकिन एक बात तय रहती है भोजन पूरी श्रद्धा और सेवा भाव से बना होता है. कई यात्री तो इस सफर में सिर्फ इस लंगर के अनुभव के लिए बार-बार जाते हैं.

खर्च कौन उठाता है?

अब सवाल यह उठता है कि इतना सारा खाना, इतनी बड़ी व्यवस्था—क्या रेलवे फ्री में करवा रहा है? जवाब है, नहीं. यह पूरा प्रबंध सिख गुरुद्वारों द्वारा दान में मिली राशि और सेवादारों की मेहनत से चलता है. नांदेड़ और अमृतसर दोनों स्थानों पर गुरुद्वारे अत्यधिक दान प्राप्त करते हैं और इस सेवा में उसे लगाते हैं. यह सेवा पिछले 29 वर्षों से बिना रुके चल रही है. इसके लिए न कोई सरकारी फंडिंग होती है, न कोई प्रचार. यह सब सेवा भाव और श्रद्धा से होता है.

सचखंड एक्सप्रेस केवल एक ट्रेन नहीं, यह एक संदेश है. यह बताती है कि जब श्रद्धा, सेवा और समर्पण मिलते हैं, तो कोई भी कार्य असंभव नहीं होता. यह ट्रेन उन ट्रेनों की तरह नहीं है जो डिब्बों में खाने के पैकेट बेचती हैं या यात्रियों से पैसे लेकर खाना परोसती हैं. यह ट्रेन हर यात्री को इंसानियत की थाली में भरपूर प्यार, सेवा और सम्मान परोसती है.

आज के युग में जहां सुविधाएं सब कुछ पैसे से जुड़ी हैं, ऐसी ट्रेनें आशा की किरण हैं. अगर अन्य धार्मिक संस्थाएं और समाज इस तरह की सेवाओं को अपनाएं, तो शायद यात्रा केवल मंज़िल तक पहुँचने का ज़रिया नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक और भावनात्मक अनुभव भी बन सकती है. अब अगर आप कभी अमृतसर से नांदेड़ या नांदेड़ से अमृतसर की यात्रा की योजना बना रहे हैं, तो एक बार सचखंड एक्सप्रेस में ज़रूर सफर करें.

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