थलपति विजय बनेंगे तमिलनाडु में बीजेपी के खेवनहार? चुनाव से पहले होगा बड़ा खेला
तमिलनाडु में अगले साल विधानसभा के चुनाव होने है. लिहाजा राज्य के सभी राजनीतिक दलों ने अपनी-अपनी तैयारियां शुरू कर दी है. इसी बीच एक्टर थलपति विजय की बीजेपी से नजदीकियां बढ़ने और NDA में जल्द शामिल होने की खबर सामने आ रही है.

तमिलनाडु में अगले साल 2026 के अप्रैल-मई तक विधानसभा चुनाव होने है. तमिलनाडु के सत्ताधारी गठबंधन की अगुवाई कर रही डीएमके ने 200 सीटें जीतने का लक्ष्य रखा है. सत्ताधारी गठबंधन में वीसीके और लेफ्ट पार्टियां अधिक सीटों की डिमांड कर रही हैं. दूसरी तरफ तमिल पॉलिटिक्स में अपनी जमीन तलाश रही बीजेपी एक्टिव मोड में आ गई है.
तमिलनाडु में बढ़ेगा NDA का कुनबा
तमिलनाडु में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले बीजेपी की रणनीति एनडीए का कुनबा बढ़ाने की है. बीजेपी ने पहले अपनी पुरानी गठबंधन सहयोगी AIADMK को साथ लिया और अब उसकी नजर सिने स्टार थलपति विजय की पार्टी टीवीके पर है.
गृह मंत्री अमित शाह ने हाल ही तमिलनाडु का दौरा किया था. शाह ने वहां स्टालिन सरकार को भ्रष्टाचार के मुद्दे पर जमकर घेरा था और दावा किया था कि अगले साल होने वाले चुनाव में विजय के साथ सूबे में एनडीए (राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन) सरकार बनाने जा रहा है. इसके बाद अमित शाह तमिलनाडु बीजेपी कोर कमेटी की मीटिंग में भी शामिल हुए.
तेलंगाना की पूर्व राज्यपाल ने विजय से संपर्क करने के दिए संकेत
तमिलनाडु बीजेपी की वरिष्ठ नेता और तेलंगाना की पूर्व राज्यपाल तमिलिसाई सुंदरराजन ने पिछले दिनों इस बात के संकेत दिए थे कि पार्टी जल्द ही विजय की पार्टी से संपर्क करेगी. उन्होंने कहा था कि बीजेपी का केंद्रीय नेतृत्व जल्द ही टीवीके समेत डीएमके विरोधी पार्टियों के साथ बातचीत शुरू करेगा. सही समय पर समान विचारधारा वाली सभी पार्टियों को एक मंच पर लाने की कोशिश की जाएगी, जिससे डीएमके को शिकस्त देने के लक्ष्य की ओर बढ़ा जा सके.
अब अगर तमिलनाडु बीजेपी को थलपति विजय से उम्मीद है, तो इसके पीछे भी अपनी वजहें हैं. अपने तर्क हैं. तमिल पॉलिटिक्स में बीजेपी की पार्टनर एआईएडीएमके अब उतनी ताकतवर नहीं रही, जितनी जयललिता के दौर में हुआ करती थी. पलानीसामी और पन्नीरसेल्वम की गुटीय लड़ाई में एआईएडीएमके के उलझने से तमिल पॉलिटिक्स में एक वैक्यूम बना है. विजय की पार्टी इसी वैक्यूम को भरने की, डीएमके के खिलाफ विकल्प बनने की कोशिश कर रही है. ऐसे मतदाता जो डीएमके के साथ नहीं जा सकते, टीवीके की रणनीति उन्हें अपने पाले में करने की है. अगर ऐसा होता है तो इसका सीधा मतलब होगा कि डीएमके विरोधी वोट बंटेंगे, जिसका फायदा सत्ताधारी गठबंधन को मिल सकता है.
तमिल पॉलिटिक्स स्टार पॉलिटिक्स के मुफीद
तमिलनाडु की सियासत में पहली बार ग्लैमर तड़का लगाया था एआईएडीएमके के संस्थापक एमजी रामचंद्रन यानी एमजीआर ने. एमजीआर ने कांग्रेस से सियासी सफर की शुरुआत की और डीएमके से विधान परिषद, विधानसभा पहुंचे. 1972 में एआईएडीएमके पार्टी बनाई और इसके पांच साल बाद 1977 में पहली बार सीएम बने.
तीन बार तमिलनाडु के सीएम रहे एमजी रामचंद्रन पहली बार जून 1977 से फरवरी 1980, दूसरी बार जून 1980 से नवंबर 1984 और तीसरी बार फरवरी 1985 से 24 दिसंबर 1987 को अपने निधन तक मुख्यमंत्री रहे. फिल्मों से सियासत में आईं जानकी रामचंद्रन भी मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचीं. जानकी, एमजीआर की पत्नी थीं और वही उन्हें राजनीति में लेकर आए थे. एमजीआर से जानकी की दूसरी शादी थी. दोनों ने कई फिल्मों में साथ काम किया था और एमजीआर के निधन के बाद जानकी सीएम बनी थीं.
तमिलनाडु की पहली महिला मुख्यमंत्री जानकी रामचंद्रन 7 जनवरी 1988 से 30 जनवरी 1988 तक सीएम रहीं. पूर्व मुख्यमंत्री एम करुणानिधि का बैकग्राउंड भी फिल्म जगत से जुड़ा रहा है, जो सूबे के मुख्यमंत्री स्टालिन के पिता भी हैं. करुणानिधि डीएमके के संस्थापक सीएन अन्नादुरई के निधन के बाद पार्टी के नेता बने और पांच बार मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचे.
जयललिता भी फिल्मी दुनिया से ही राजनीति में आई थीं. 1982 में एआईएडीएमके के साथ राजनीति की शुरुआत करने वाली जयललिता 1991 में पहली बार मुख्यमंत्री बनी थीं. वह छह बार तमिलनाडु की मुख्यमंत्री बनीं. विजय भी तमिल फिल्मों के सुपरस्टार हैं और तमिलनाडु की पॉलिटिक्स भी स्टार पॉलिटिक्स के मुफीद रही है. ऐसे में बीजेपी को उनके साथ आने से अपनी जमीन को मजबूत करने में मदद मिलेगी.