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'ॐ नमः शिवाय सुनते ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं...', तमिल परिधान में चोल मंदिर से PM मोदी का 'शिवभक्ति' का संदेश

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को चोल सम्राट राजेंद्र चोल प्रथम की जयंती के अवसर पर तमिलनाडु के गंगैकोंडा चोलपुरम मंदिर का दौरा किया. उन्होंने यूनेस्को विश्व धरोहर में शामिल इस मंदिर में पूजा-अर्चना की और चोल वंश की समृद्ध विरासत को श्रद्धांजलि दी. पीएम मोदी ने कहा कि जब वे ‘ॐ नमः शिवाय’ सुनते हैं तो रोंगटे खड़े हो जाते हैं, और यह मंदिर उन्हें शिवभक्ति व आध्यात्मिक ऊर्जा से भर देता है.

27 Jul, 2025
( Updated: 06 Dec, 2025
08:03 AM )
'ॐ नमः शिवाय सुनते ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं...', तमिल परिधान में चोल मंदिर से PM मोदी का 'शिवभक्ति' का संदेश

तमिलनाडु के अरियालुर जिले में स्थित ऐतिहासिक गंगैकोंडा चोलपुरम मंदिर रविवार को एक खास ऐतिहासिक पल का साक्षी बना, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वहां पहुंचे. यह अवसर था महान चोल सम्राट राजेंद्र चोल प्रथम की जयंती का, जिनके साम्राज्य ने भारतीय इतिहास में एक स्वर्णिम अध्याय जोड़ा. इस मौके पर पीएम मोदी ने ना सिर्फ चोल वंश की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को नमन किया, बल्कि भारत की प्राचीन स्थापत्य कला, आध्यात्मिकता और वैश्विक प्रभाव की गौरवगाथा को भी सामने रखा.

जब 'ॐ नमः शिवाय' में अद्भुत शक्ति 

अपने संबोधन में पीएम मोदी ने कहा, "जब मैं ‘ॐ नमः शिवाय’ सुनता हूं तो मेरे रोंगटे खड़े हो जाते हैं." उन्होंने इस भावुक वक्तव्य के जरिए दर्शाया कि कैसे भारत की आध्यात्मिक ऊर्जा उन्हें प्रभावित करती है. उन्होंने यह भी जोड़ा कि वे स्वयं काशी से सांसद हैं और शिवभक्ति की अनुभूति उन्हें आत्मिक शांति देती है. इस दौरान प्रसिद्ध संगीतकार इलैयाराजा की संगीतमय प्रस्तुति ने माहौल को और अधिक दिव्य बना दिया.

चोल वंश की समृद्ध विरासत को श्रद्धांजलि

राजेंद्र चोल प्रथम की जयंती पर आयोजित समारोह में पीएम मोदी ने उन्हें श्रद्धा से याद किया और कहा कि यह स्थल ‘राजा राजा चोल’ की श्रद्धा भूमि है. गंगैकोंडा चोलपुरम मंदिर ना केवल धार्मिक आस्था का केंद्र है, बल्कि यह चोल साम्राज्य की सैन्य, सांस्कृतिक और कूटनीतिक शक्ति का भी प्रतीक है. प्रधानमंत्री ने इस ऐतिहासिक स्थल को नमन करते हुए भारत के 140 करोड़ नागरिकों के कल्याण की प्रार्थना की.

विश्व धरोहर स्थल की अद्भुत भव्यता

11वीं सदी में बने इस शिव मंदिर को चोल सम्राट राजेंद्र चोल ने बनवाया था. ये मंदिर यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में शामिल ‘ग्रेट लिविंग चोल टेम्पल्स’ का हिस्सा है. मंदिर की भव्य स्थापत्य कला, विशाल नंदी मूर्ति और ऊंचे गोपुरम इसकी भव्यता को दर्शाते हैं. प्रधानमंत्री ने पारंपरिक तमिल परिधान वेश्टि और अंगवस्त्र पहनकर मंदिर में पूजा-अर्चना की और इस विरासत को संरक्षित रखने की आवश्यकता पर बल दिया.

चोल साम्राज्य का अंतरराष्ट्रीय प्रभाव

पीएम मोदी ने अपने संबोधन में इस बात पर भी रोशनी डाली कि चोल साम्राज्य ने न सिर्फ दक्षिण भारत, बल्कि श्रीलंका, मालदीव और दक्षिण-पूर्व एशिया तक अपने व्यापारिक और कूटनीतिक संबंध स्थापित किए थे. यह भारत की प्राचीन वैश्विक दृष्टिकोण और समुद्री शक्ति का प्रतीक है. उन्होंने यह भी कहा कि यह एक सुंदर संयोग है कि वे हाल ही में मालदीव की यात्रा से लौटे हैं और अब उस चोल सम्राट को श्रद्धांजलि दे रहे हैं, जिनका साम्राज्य वहां तक फैला था.

कितना अहम है पीएम का तमिलनाडु दौरा 

प्रधानमंत्री मोदी का यह दौरा भारतीय जनता पार्टी की ओर से दक्षिण भारत में सांस्कृतिक और राजनीतिक जुड़ाव की दिशा में एक अहम प्रयास माना जा रहा है. पीएम मोदी अक्सर अपने भाषणों में तमिल साहित्य, लोक कथाएं और संत परंपरा का उल्लेख करते हैं, जिससे तमिल जनमानस से उनका भावनात्मक संबंध मजबूत होता है. गंगैकोंडा चोलपुरम में हर वर्ष आयोजित होने वाला आदि तिरुवथिराई उत्सव इस बार विशेष रूप से भव्य था. यह उत्सव 23 जुलाई से शुरू हुआ और रविवार को पीएम मोदी की उपस्थिति में संपन्न हुआ. इस अवसर पर पूरे मंदिर परिसर को फूलों और पारंपरिक तमिल सजावट से सजाया गया. शिवाचार्यों और विद्वानों ने वेदपाठ और स्तोत्रों से प्रधानमंत्री का स्वागत किया.

आध्यात्मिकता और राष्ट्रवाद का समन्वय

प्रधानमंत्री ने अपने वक्तव्य में आध्यात्मिकता को राष्ट्रनिर्माण की प्रेरणा बताते हुए कहा कि भारत की विरासत केवल इतिहास की बात नहीं है, बल्कि यह आज के भारत को दिशा देने वाली जीवंत प्रेरणा है. उन्होंने यह भी कहा कि आज का भारत अपनी जड़ों से जुड़कर ही विश्वगुरु बनने की दिशा में आगे बढ़ सकता है.

विशेष अतिथियों की मौजूदगी ने समारोह को और गरिमा प्रदान की

इस ऐतिहासिक अवसर पर तमिलनाडु के राज्यपाल आरएन रवि, केंद्रीय मंत्री एल मुरुगन, राज्य सरकार के मंत्रीगण जैसे पीके शेखर बाबू और एसएस शिवशंकर, तथा तमिलनाडु के वित्त मंत्री थंगम थेनारसु भी मौजूद रहे. इन सभी की उपस्थिति ने इस समारोह को और भी भव्य और प्रभावशाली बना दिया.

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का गंगैकोंडा चोलपुरम दौरा सिर्फ एक मंदिर यात्रा नहीं थी, बल्कि यह भारत की सांस्कृतिक विरासत, आध्यात्मिकता और राष्ट्र की चेतना को जोड़ने का प्रयास भी था. चोल सम्राट राजेंद्र चोल प्रथम की विरासत के माध्यम से आज के भारत को अपनी पहचान और प्रेरणा मिल रही है. इस ऐतिहासिक क्षण ने यह भी साबित किया कि जब आधुनिक भारत अपनी प्राचीन विरासत से जुड़ता है, तो एक नया आत्मविश्वास और सामूहिक चेतना जन्म लेती है.

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