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मुसलमान और आतंकवाद... कौम का कौन सा कर्ज उतारने चली थी डॉ शाहीन, आतंक पर क्या कहता है इस्लाम?

Delhi Blast: दिल्ली ब्लास्ट में आरोपी डॉ शाहीन जैसे लोग अल्लाह के इस्लाम को नहीं, बल्कि कुछ कथित मुल्लों के इस्लाम को मानते हैं. इनकी हरकतों के चलते ही समाज में रह रहे साधारण जीने-खाने वाले मुसलमानों के प्रति नफरत का माहौल पैदा होता है.

16 Nov, 2025
( Updated: 05 Dec, 2025
12:01 PM )
मुसलमान और आतंकवाद... कौम का कौन सा कर्ज उतारने चली थी डॉ शाहीन, आतंक पर क्या कहता है इस्लाम?

दिल्ली ब्लास्ट के बाद कई आरोपी पकड़े गए जो डॉक्टर हैं, उनमें से एक डॉ शाहीन है. पड़ताल में पता चला कि वह अपने परिवार से कहती थी, ‘अब कौम का कर्ज उतारने का समय है. सब छोड़कर इसी में लगी हूं, मेरे बारे में चिंता करना छोड़ दो, कुछ बड़ा करने की तैयारी चल रही है, जो करूंगी उस पर आप सबको फख्र होगा’. 

इस्लाम और आतंकवाद

अब सवाल ये उठता है कि ये कौम के किस कर्ज को उतारने की बात कह रही थी? क्या इस्लाम ऐसी घिनौनी हरकत की इजाजत देता है? क्या कहीं बम ब्लास्ट करवा के दर्जनों, सैकड़ों मासूम और निर्दोषों की जान ले लेना का नाम इस्लाम है? क्या जिहाद के नाम पर किसी के घर उजाड़ देने का नाम इस्लाम है? नहीं, बिल्कुल भी नहीं. फिर शाहीन और इन जैसे लोगों ने कौन सा इस्लाम पढ़ा है, अल्लाह का इस्लाम या फिर कुछ कथित मुल्लों का इस्लाम? इस्लाम तो ये कहता है कि अगर आपने किसी एक इंसान का कत्ल किया, तो गोया आपने पूरी इंसानियत का कत्ल कर दिया. इस्लाम तो ये कहता है कि अगर आपने किसी एक इंसान का दिल दुखाया, तो ये पूरी इंसानियत का दिल दुखाने जैसा है. अल्लाह और मोहम्मद का इस्लाम तो ये कहता है. फिर ये आतंकी मानसिकता के लोग कौन सा इस्लाम पढ़कर आते है? किस मकसद की तलाश में रहते हैं? और किन हूरों की बात करते हैं? 

कुरान में क्या लिखा है?

कुरान के पहले पन्ने में लिखा है और मुसलमान अपनी हर नमाज में पढ़ते हैं, ‘अलहमदुल्लिलाही रब्बील आलमीन’, मतलब- ‘सभी प्रशंसाएं अल्लाह (भगवान) के लिए हैं, जो सारे जहानों का पालनहार है’, इसमें मुसलमान शब्द का इस्तेमान नहीं है. मतलब उपर वाले ने हमें बांटा नहीं है. ठीक इसी तरह से कुरान में मोहम्मद साहब के लिए ‘रहमतुल्लीलआलमीन’ लिखा है. यानी, पूरे आलम, पूरी इंसानियत, पूरे जहान के लिए रहमत और दया. यहां भी विशेषकर मुसलमानों के लिए ऐसा नहीं लिखा गया. कहने का मतलब ये है कि जब पैदा करने वाले अल्लाह या फिर भगवान ने हमें नहीं बांटा, हमे इंसानियित की पाठ पढ़ा रहा है. तो फिर कुछ लोग इस्लाम के नाम पर किस मकसद की तलाश में हैं, और कौम के किस कर्ज को उतारने की बात कहते हैं? 

डॉ शाहीन जैसे लोग नहीं जानते इस्लाम का मतलब

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जाहिर सी बात है, इन्होंने इस्लाम पढ़ा नहीं है, कुरान पढ़ा नहीं है, इस्लाम का मतलब जानते नहीं है. बस धर्म के नाम पर मासूमों की जान लेकर इस्लाम को बदनाम करने का काम कर रहे हैं. और इनकी वजह से एक आम मुसलमान, एक कमाता-खाता मुसलमान, जो अपने परिवार को पालने के लिए दिन रात मेहनत करता है, जो अपने बच्चों को पढ़ा-लिखा कर कुछ बनाना चाहता है. ऐसे मुसलमानों के लिए डॉ शाहीन जैसे लोग समाज में नफरत फैलाने का काम करते हैं. 

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