नए वक्फ कानून को लागू नहीं होने देने के ममता बनर्जी के दावे में है कितना दम, क्या कहता है संविधान, जानें...
वक़्फ़ क़ानून के लागू होने के बाद कई विपक्षी इसका विरोध कर रहें है, पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी ने कहा कि वो क़ानून को बंगाल में लागू नहीं करेगी। लेकिन क्या राज्य सरकार केंद्र के क़ानून को लागू होने से रोक सकती है?

वक़्फ़ संशोधन क़ानून 2025 पूरे देश में 8 अप्रैल से लागू कर दिया गया है। क़ानून लागू होने के बाद भी इसका CAA की तरह ही विरोध देखा जा रहा है। विपक्षी दल जिनको एक बड़ा मुसलमान तबका सपोर्ट करता है, वो इस क़ानून के बिल्कुल ख़िलाफ़ है। इन्हीं विपक्षियों में से एक हैं सीएम ममता बनर्जी, जिन्होंने अपने राज्य पश्चिम बंगाल में वक़्फ़ संशोधन क़ानून 2025 को न लागू करने का ऐलान कर दिया है। दरअसल बंगाल के कुछ हिस्सों में वक्फ क़ानून को लेकर विरोध प्रदर्शन और हिंसा देखी जा रही है। जिसे देखते हुए सीएम बनर्जी ने कहा कि राज्य में वक़्फ़ संशोधन अधिनियम लागू नहीं किया जाएगा। उन्होंने एक सभा को संबोधित करते हुए कहा कि वह अल्पसंख्यकों की और उनकी संपत्ति की रक्षा करेंगी। लेकिन ऐसे में सवाल उठता है कि क्या राज्य सरकार केंद्र के क़ानून को लागू होने से रोक सकती है?
ममता बनर्जी का ऐलान एक राजनीतिक स्टंट!
संविधान के जानकारों की माने तो ममता बनर्जी का क़ानून न लागू करने का ऐलान मात्र एक राजनीतिक स्टंट है। संसद से पास किए गए क़ानून और केंद्र सरकार की ओर से दिए गए निर्देश को राज्य सरकार नकार नहीं सकती। राज्य सरकार भले ही घोषणा कर दें पर क़ानूनों और निर्देशों का उन्हें पालन करना ही होगा। अगर कोई राज्य केंद्र सरकार के बनाए गए क़ानून को नहीं मानती तो ये ख़तरनाक है।
क्या कहता है भारत का संविधान?
अब सवाल उठाता है कि भारत का संविधान क्या कहता है? क्या कोई राज्य केंद्र के क़ानून को अपने राज्य में लागू करने से ठुकरा सकता है? तो इसका जवाब है नहीं। राज्य सरकार का दायित्व है कि वो संसद से पास किए गए क़ानून को लागू करें। संविधान के अनुच्छेद 256 में इसका ज़िक्र साफ़ सीधे शब्दों में किया गया है। इस अनुच्छेद का ज़िक्र संसद के अंदर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने भी किया था और कहा था कि ये संसद का क़ानून है इसे हर किसी को मानना पड़ेगा।
अनुच्छेद 256 के अनुसार हर राज्य की कार्यपालिका की शक्ति का इस्तेमाल इस तरह से किया जाएगा कि संसद द्वारा बनाए गए कानून और उस राज्य में लागू किसी कानून का अनुपालन सुनिश्चित हो। संघ की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार किसी भी राज्य को ऐसे निर्देश देने तक होगा, जो संघीय सरकार को संबंधित प्रयोजन के लिए जरूरी लगे।
केंद्र के क़ानून को नहीं रोक सकती राज्य सरकार
संविधान के अनुसार, वक़्फ़ क़ानून ही नहीं बल्कि केंद्र द्वारा पारित किसी भी क़ानून को कोई भी राज्य सरकार लागू करने से मना नहीं कर सकती। पहले भी कई ऐसे क़ानून थे जिसका विरोध सड़क से लेकर संसद तक हुआ, लेकिन अंत में सभी राज्यों को इसे मानना पड़ा। इन क़ानूनों में तीन तलाक़ और सीएए शामिल है। राज्य को अगर किसी कानून से शिकायत है, वह इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील कर सकता है। राज्य अपनी विधानसभा में निंदा प्रस्ताव पास कर सकता है, लेकिन कानून को न मानने का कोई भी विकल्प उनके पास नहीं है।
क्या कर सकती है राज्य सरकार?
संविधान की सातवीं अनुसूची के मुताबिक़ भूमि का मामला राज्य सरकार के अंदर आता है। इसलिए पारित क़ानून में किसी भी राज्य की विधानसभा संशोधन करने में सक्षम है। लेकिन विधानसभा में संशोधन पारित होने के बाद इस बिल को राज्य सरकार महामहिम राज्यपाल को भेजेगी और राष्ट्रपति इसपर सोच विचार कर मंज़ूरी देंगी। हालाँकि संशोधन को राज्यपाल की मंजूरी के बगैर किसी भी राज्य में केन्द्र सरकार का कानून प्रभावी रहेगा। संवैधानिक व्यवस्था के अनुसार संसद से पारित कानून को राज्यों में पालन करना जरुरी है। ऐसा नहीं करने पर संविधान के उल्लंघन का मामला बन सकता है, जिसमें अनुच्छेद-355 के तहत केन्द्र सरकार राज्य को चेतावनी जारी कर सकती है।