वक्फ मामले में सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई आज, अंतरिम आदेश हो सकता है पारित
सुप्रीम कोर्ट में सोमवार को वक्फ (संशोधन) अधिनियम 2025 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर अहम सुनवाई हो रही है. अदालत आज अंतरिम आदेश भी पारित कर सकती है. मामला तीन प्रमुख बिंदुओं पर केंद्रित है – वक्फ घोषित संपत्तियों की वैधता, वक्फ बोर्ड की संरचना और कलेक्टर द्वारा संपत्ति की जांच का अधिकार.

वक्फ संशोधन कानून 2025 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट मंगलवार को सुनवाई करेगा. इस सुनवाई में देश की सबसे बड़ी अदालत यह तय करने जा रही है कि यह नया संशोधन कानून मौलिक अधिकारों, धार्मिक स्वतंत्रता और न्यायिक सिद्धांतों के अनुरूप है या नहीं. अदालत आज इस मामले में कोई अंतरिम आदेश भी पारित कर सकती है.
किन मुद्दों पर है कानूनी लड़ाई?
यह मामला केवल एक संशोधन कानून की वैधता तक सीमित नहीं है, बल्कि इसके केंद्र में तीन अहम मुद्दे हैं. पहला, क्या 'वक्फ बाई यूजर' या 'वक्फ बाई डीड' के जरिए घोषित संपत्तियों को बिना अधिसूचना के वक्फ घोषित किया जा सकता है या नहीं. दूसरा मुद्दा वक्फ बोर्ड और केंद्रीय वक्फ परिषद की संरचना को लेकर है, जहां याचिकाकर्ता यह तर्क दे रहे हैं कि इन संस्थाओं का संचालन केवल मुसलमानों द्वारा होना चाहिए, सिवाय पदेन सदस्यों के. तीसरा, कानून का वह प्रावधान है जिसमें जिलाधिकारी को यह जांच करनी होती है कि कोई संपत्ति सरकारी है या वक्फ, और उस स्थिति में वक्फ दावे को नकारा जा सकता है. इन तीनों मुद्दों पर आज कोर्ट दलीलें सुनेगा और संभवतः अंतरिम आदेश भी पारित करेगा.
केरल सरकार का हस्तक्षेप
केरल सरकार ने भी इस मामले में हस्तक्षेप की मांग करते हुए सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर की है. राज्य का कहना है कि वक्फ (संशोधन) अधिनियम 2025, 1995 के मूल अधिनियम की भावना और दायरे से भटक गया है. सरकार का कहना है कि यह संशोधन केरल की मुस्लिम आबादी के मौलिक अधिकारों को प्रभावित करता है और उन्हें अपनी धार्मिक संपत्तियों के संरक्षण को लेकर गंभीर आशंका है. याचिका में कहा गया है कि यह कानून धार्मिक मामलों के प्रबंधन के अधिकार में असंतुलन पैदा करता है और कई प्रावधान अत्यधिक अन्यायपूर्ण और संविधान के सिद्धांतों के विरुद्ध हैं.
कोर्ट की कार्यवाही
चीफ जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ इस मामले की सुनवाई कर रही है. इस पीठ को यह जिम्मेदारी इसलिए दी गई क्योंकि पूर्व चीफ जस्टिस संजीव खन्ना 13 मई को सेवानिवृत्त हो चुके हैं. दोनों पक्षों के वरिष्ठ अधिवक्ताओं कपिल सिब्बल और सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से लिखित दलीलें 19 मई तक मांगी गई थीं. कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया है कि 1995 के पुराने वक्फ अधिनियम पर रोक की मांग पर वह अभी विचार नहीं करेगी. इसके अलावा सरकार की ओर से यह भी आश्वासन दिया गया है कि जब तक मामला विचाराधीन है, तब तक नए कानून के तहत कोई नियुक्ति नहीं की जाएगी.
यह मामला सीधे तौर पर धार्मिक स्वतंत्रता, न्यायिक निष्पक्षता और अल्पसंख्यकों के अधिकारों से जुड़ा है. वक्फ संपत्तियों का प्रबंधन एक संवेदनशील विषय रहा है और इस पर लिए गए किसी भी फैसले का असर न केवल मुस्लिम समुदाय, बल्कि पूरे देश की सामाजिक और राजनीतिक व्यवस्था पर पड़ सकता है. कोर्ट को यह सुनिश्चित करना होगा कि कानून किसी धर्म के अधिकारों को न कुचले, लेकिन साथ ही यह भी देखना होगा कि कहीं संविधान के धर्मनिरपेक्ष मूल्यों की अनदेखी तो नहीं हो रही.
सुप्रीम कोर्ट की इस सुनवाई से एक बात तो स्पष्ट है कि भारत में धार्मिक मामलों से जुड़ा कोई भी कानून बेहद संवेदनशील और जटिल होता है. वक्फ संशोधन अधिनियम 2025 पर उठे सवाल केवल कानूनी नहीं हैं, वे विश्वास, स्वायत्तता और धार्मिक स्वतंत्रता के मूल सवाल हैं. अब देखने वाली बात होगी कि कोर्ट इस संतुलन को कैसे साधता है और क्या ऐसा कोई समाधान सामने आता है जिससे सभी वर्गों को न्याय का भरोसा मिल सके.