क्यों खतरनाक है बच्चों के लिए तनाव? जानें कैसे दिमाग पर पड़ता है गहरा असर, रिसर्च में हुआ खुलासा
बचपन का तनाव केवल एक भावनात्मक चुनौती नहीं है, बल्कि यह विकासशील दिमाग पर वास्तविक, शारीरिक और स्थायी बदलाव लाता है. इस तथ्य को स्वीकार करना और समझना बेहद ज़रूरी है ताकि हम बच्चों को सुरक्षित और स्वस्थ वातावरण प्रदान कर सकें, उनके दिमाग को पनपने का मौका दे सकें और एक स्वस्थ, खुशहाल भविष्य का निर्माण कर सकें.

बचपन, जीवन का वह महत्वपूर्ण पड़ाव होता है जब हमारा शरीर, विशेष रूप से दिमाग, तेज़ी से विकसित होता है. यह वो समय है जब व्यक्तित्व की नींव रखी जाती है, सीखने की क्षमता बढ़ती है. लेकिन, हाल के अध्ययनों से यह चौंकाने वाला खुलासा हुआ है कि बचपन में अनुभव किया गया तनाव, चाहे वह उपेक्षा हो, दुर्व्यवहार हो, गरीबी हो या पारिवारिक कलह, दिमाग के विकास पर गहरा और स्थायी असर डालता है. यह असर केवल भावनात्मक या मानसिक नहीं होता, बल्कि मस्तिष्क की संरचना और कार्यप्रणाली में भी बदलाव लाता है, जिसके परिणाम लंबे समय तक हो सकते हैं.
बचपन के तनाव से मानसिक बीमारियों का जोखिम बढ़ता है
इटली के मिलान के आईआरसीसीएस ओस्पेडाले सैन रैफेल के वरिष्ठ शोधकर्ता सारा पोलेटी ने बताया, “प्रतिरक्षा प्रणाली सिर्फ संक्रमण से नहीं लड़ती, बल्कि यह हमारे मानसिक स्वास्थ्य को आकार देने में भी अहम भूमिका निभाती है.”
उन्होंने कहा कि बचपन का तनाव इस प्रणाली को बदल देता है, जिससे दशकों बाद मानसिक बीमारियों का जोखिम बढ़ जाता है. शोध में उन खास इन्फ्लेमेटरी मार्कर्स की पहचान की गई है, जो बचपन के तनाव से जुड़े हैं.
मूड डिसऑर्डर बन रहा है मृत्यु का प्रमुख कारण
‘ब्रेन मेडिसिन’ जर्नल में प्रकाशित इस शोध में मूड डिसऑर्डर (अवसाद समेत अन्य मानसिक विकार) के इलाज के लिए इम्यूनोमॉड्यूलेटरी एजेंट (इंटरल्यूकिन 2) के इस्तेमाल पर ध्यान दिया गया है.
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, मूड डिसऑर्डर दुनिया भर में अक्षमता, बीमारी और मृत्यु का प्रमुख कारण हैं. भविष्य में डिप्रेशन की स्थिति बने रहने की दर करीब 12 प्रतिशत और बाइपोलर डिसऑर्डर की 2 प्रतिशत तक रह सकती है.
शोध में पाया गया कि मूड डिसऑर्डर में प्रतिरक्षा प्रणाली की गड़बड़ी, खासकर सूजन प्रतिक्रिया प्रणाली महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है. यह गड़बड़ी इन विकारों का एक प्रमुख कारण बन सकती है. शोध में पाया गया कि इन्फ्लेमेटरी मार्कर्स, जो बचपन के तनाव से जुड़े हैं, भविष्य में मानसिक बीमारियों के नए और बेहतर उपचार विकसित करने के लिए आधार बन सकते हैं. ये संकेतक डॉक्टरों को यह समझने में मदद करेंगे कि बीमारी का इलाज कैसे किया जाए.
सारा पोलेटी का कहना है कि वह प्रतिरक्षा प्रणाली और पर्यावरण के बीच संबंधों को और समझना चाहती हैं. उनका लक्ष्य ऐसी रोकथाम रणनीतियां विकसित करना है, जो खासकर तनावग्रस्त बचपन वाले लोगों में मानसिक बीमारियों के जोखिम को कम करे.
यह शोध साइकैट्रिक केयर को समझने और रोकथाम पर केंद्रित करने की दिशा में एक बड़ा कदम है.
बचपन का तनाव केवल एक भावनात्मक चुनौती नहीं है, बल्कि यह विकासशील दिमाग पर वास्तविक, शारीरिक और स्थायी बदलाव लाता है. इस तथ्य को स्वीकार करना और समझना बेहद ज़रूरी है ताकि हम बच्चों को सुरक्षित और स्वस्थ वातावरण प्रदान कर सकें, उनके दिमाग को पनपने का मौका दे सकें और एक स्वस्थ, खुशहाल भविष्य का निर्माण कर सकें.