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रेप मामले में दोषी को 25 लाख का मुआवजा! सुप्रीम कोर्ट के फैसले से मचा हड़कंप, जानिए क्या है पूरा मामला

इस पूरे मामले से यह बात फिर से साबित होती है कि “न्याय में देरी, न्याय से इनकार के बराबर” होती है. लेकिन सुप्रीम कोर्ट का ये फैसला उन लोगों के लिए उम्मीद की किरण है, जिन्हें सिस्टम से समय पर न्याय नहीं मिला

Image Credit: Supreme Court (File Photo)

Supreme Court Compensation: सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐसा फैसला सुनाया है, जो सरकारी लापरवाही से होने वाले अन्याय पर कड़ा संदेश देता है. कोर्ट ने मध्यप्रदेश सरकार को आदेश दिया है कि वह एक कैदी को 25 लाख रुपये का मुआवज़ा दे. वजह ये है कि उस व्यक्ति को जो सज़ा दी गई थी, उससे कहीं ज़्यादा वक्त उसे जेल में रहना पड़ा और ये सब सिर्फ सरकार की लापरवाही की वजह से हुआ. कोर्ट ने इस लापरवाही को गंभीर माना और कहा कि जब किसी की ज़िंदगी के कई साल गलत तरीके से जेल में गुजर जाएं, तो ये मुआवज़ा उसका एक छोटा-सा इंसाफ है.

न्यायाधीशों ने जताई नाराज़गी, बोले- ऐसे नहीं चल सकती व्यवस्था

इस केस की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस केवी विश्वनाथन की बेंच ने की. दोनों जजों ने मध्यप्रदेश सरकार की चूक को बेहद गंभीर माना और सख्त शब्दों में कहा कि अगर राज्य अपने काम में लापरवाह रहेगा, तो निर्दोष या आंशिक दोषियों की ज़िंदगी पर बहुत बड़ा असर पड़ता है. कोर्ट ने यह भी कहा कि अगर सरकार समय पर जरूरी कदम उठाती, तो शायद यह व्यक्ति जेल से बहुत पहले रिहा हो गया होता. इस मामले में सरकारी सिस्टम की सुस्ती और ध्यान की कमी साफ दिखी, जो एक आम आदमी के जीवन के कई साल खा गई.

हाईकोर्ट ने कम की थी सज़ा, फिर भी 8 साल ज्यादा जेल में रहा कैदी

यह पूरा मामला साल 2004 से शुरू होता है, जब उस व्यक्ति को भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 376(1), 450 और 560बी के तहत दोषी ठहराया गया और उसे आजीवन कारावास की सज़ा सुनाई गई. बाद में यह फैसला हाईकोर्ट में गया, और 2007 में हाईकोर्ट ने उसकी सज़ा घटाकर 7 साल कर दी. लेकिन अफसोस की बात ये है कि इस आदेश के बाद भी किसी ने भी ध्यान नहीं दिया, और वह व्यक्ति जेल में ही रहा. जून 2025 तक वह बिना किसी वजह के जेल में बंद रहा  यानी लगभग 8 साल की अतिरिक्त सज़ा, जो उसे नहीं मिलनी चाहिए थी.

कोर्ट में गलत जानकारी देना पड़ा भारी

सुनवाई के दौरान ये भी सामने आया कि राज्य सरकार ने कोर्ट को जो जानकारी दी, वह गलत और भ्रामक थी. इससे न सिर्फ न्याय में देरी हुई, बल्कि स्थिति और भी बिगड़ गई. सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर चिंता जताई और कहा कि अगर सरकार के वकील समय रहते पूरी और सही जानकारी देते, तो यह हालात ही पैदा नहीं होते. सरकार की तरफ से पेश वरिष्ठ वकील नचिकेता जोशी ने बताया कि अब वह व्यक्ति ज़मानत पर बाहर है, लेकिन कोर्ट ने साफ कहा कि अब जब गलती हो ही चुकी है, तो मुआवज़ा देना सरकार की ज़िम्मेदारी है.

पहले भी मिल चुका है मुआवज़ा ऐसे मामलों में

ऐसा पहली बार नहीं है जब किसी को ज़रूरत से ज्यादा वक्त तक जेल में रखने पर मुआवज़ा मिला हो. पहले भी कई अदालतें इस तरह के फैसले दे चुकी हैं.  मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने एक बार एक कैदी को 3 लाख रुपये का मुआवज़ा देने का आदेश दिया था. इसी तरह, छत्तीसगढ़ में एक कैदी को सिर्फ इसलिए ज़्यादा वक्त तक जेल में रहना पड़ा क्योंकि वह जुर्माने की रकम नहीं चुका पाया था. सुप्रीम कोर्ट ने वहां की सरकार को भी 7.5 लाख रुपये हर्जाने के रूप में देने का आदेश दिया था. ये मामले दिखाते हैं कि सिस्टम की छोटी चूक भी किसी की ज़िंदगी पर बड़ा असर डाल सकती है.

इस पूरे मामले से यह बात फिर से साबित होती है कि “न्याय में देरी, न्याय से इनकार के बराबर” होती है. लेकिन सुप्रीम कोर्ट का ये फैसला उन लोगों के लिए उम्मीद की किरण है, जिन्हें सिस्टम से समय पर न्याय नहीं मिला. सरकारों के लिए यह एक चेतावनी है कि अगर वे अपनी ज़िम्मेदारी निभाने में चूक करेंगी, तो उन्हें जवाब देना पड़ेगा. इस फैसले से यह भी साफ हो गया है कि अदालतें अब ऐसे मामलों में मूकदर्शक नहीं बनेंगी, बल्कि सख्त कार्रवाई करेंगी ताकि कोई निर्दोष या आंशिक दोषी फिर से ऐसे हालात का शिकार न हो.

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