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‘पुरानी शराब को नई बोतल में डालने जैसा’ SC में केंद्र सरकार को फटकार, ट्रिब्यूनल एक्ट 2021 पर दिया झटका

Tribunals Reforms Act 2021 के प्रावधानों को रद्द करते हुए बेंच ने कहा कि सरकार ने वही प्रावधान कानून में फिर से डाल दिए, जिन्हें पहले भी कोर्ट खारिज कर चुका है.

20 Nov, 2025
( Updated: 05 Dec, 2025
01:31 PM )
‘पुरानी शराब को नई बोतल में डालने जैसा’ SC में केंद्र सरकार को फटकार, ट्रिब्यूनल एक्ट 2021 पर दिया झटका

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने केंद्र सरकार को बड़ा झटका देते हुए ट्रिब्यूनल रिफॉर्म्स एक्ट 2021 (Tribunals Reforms Act) की कई अहम धाराएं रद्द कर दी हैं. इसके साथ ही शीर्ष अदालत ने केंद्र सरकार से सख्त लहजे में कहा, संसद मामूली बदलाव करके सुप्रीम कोर्ट के फैसलों को निष्प्रभावी नहीं कर सकती. 

चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया बीआर गवई और जस्टिस के विनोद चंद्रन की बेंच ने मामले में फैसला सुनाया. 137 पेज के इस फैसले के साथ बेंच ने कहा कि सरकार ने वही प्रावधान कानून में फिर से डाल दिए, जिन्हें पहले भी कोर्ट खारिज कर चुका है. मामले की सुनवाई 11 नवंबर को पूरी हो चुकी थी. उसी समय कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया था. CJI गवई ने कहा कि टुकड़ों में किए गए सुधारों से संरचनात्मक कमियों को दूर नहीं किया जा सकता. 

क्या है मामला? 

ट्रिब्यूनल रिफॉर्म्स एक्ट, 2021 संसद की ओर से पारित एक कानून है. जो अगस्त 2021 में लागू हुआ था. यह पहले के Tribunals Reforms (Rationalisation and Conditions of Service) Ordinance, 2021 का स्थायी रूप है. 

इसका मकसद भारत में विभिन्न ट्रिब्यूनल्स (न्यायिक/अर्ध-न्यायिक निकायों) की संरचना, कार्यप्रणाली और सदस्यों की नियुक्ति के नियमों में सुधार करना और कई ट्रिब्यूनल्स को समाप्त या उनके कार्यों को हाई कोर्ट्स में ट्रांसफर करना था ताकि मामलों का तेजी से निपटारा हो और न्यायिक व्यवस्था सरल बने. 

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नवंबर 2020 में सुप्रीम कोर्ट ने ट्रिब्यूनल के अध्यक्ष और सदस्यों का कार्यकाल पांच साल तय किया था. सरकार जब 2021 में नया कानून लेकर आई तो कार्यकाल 4 साल कर दिया. इसके बाद मद्रास बार एसोसिएशन ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाई थी.  

कोर्ट ने क्या कहा? 

सुप्रीम कोर्ट ने मद्रास बार एसोसिएशन और अन्य याचिकाओं को स्वीकार करते हुए ट्रिब्यूनल की नियुक्तियों के लिए 50 साल की न्यूनतम उम्र और 4 साल के तय कार्यकाल को खारिज कर दिया. 

कोर्ट ने इस मामले में फैसला सुनाते हुए कहा, हम केंद्र सरकार को राष्ट्रीय न्यायाधिकरण आयोग के गठन के लिए तीन महीने का समय देते हैं. कोर्ट ने साफ किया कि ITAT के सदस्यों का पूरा कार्यकाल पुराने अधिनियम के अनुसार होगा. 2021 अधिनियम से पहले की गई नियुक्तियां MBA 4 और 5 के अनुसार होंगी. न कि 2021 के कानून के तहत. क्योंकि यह शक्तियों के पृथक्करण और न्यायिक स्वतंत्रता के सिद्धांतों का उल्लंघन करता है.

सुप्रीम कोर्ट के दो बड़े कमेंट 

CJI बी आर गवई ने कहा, यह कानून पहले खारिज किए गए अध्यादेश की तरह ही है. पहले खामियों को दूर नहीं किया गया और वही सवैंधानिक बहस दोबारा शुरू कर दी गई. केंद्र सरकार बार-बार उन्हीं प्रावधानों को ला रही है जिन्हें कोर्ट पहले ही गलत ठहरा चुका है. इस दौरान जस्टिस विनोद चंद्रन ने कहा कि यह पुरानी शराब को नई बोतल में डालने जैसा है. 
कोर्ट ने ये भी कहा कि न्यायिक स्वतंत्रता के लिए स्थिर कार्यकाल और अधिकारों की रक्षा जरूरी है. सिर्फ पुराने प्रावधानों को नए रूप में पेश करना संविधान के खिलाफ है. 

‘जब संसद ट्रिब्यूनल सिस्टम बनाती है या उसमें कुछ बदलाव करती है तो उसे संविधान की यह बुनियादी शर्तें ध्यान में रखनी होती हैं. यानी स्वंतत्रता, निष्पक्षता और न्याय देने की क्षमता. इन मूल सिद्धांतों को कमजोर करने का मतलब है संविधान की मूल संरचना पर चोट करना.’

क्या है ट्रिब्यूनल्स रिफॉर्म एक्ट 2021 और विवाद? 

ट्रिब्यूनल से मतलब है- भारत में अलग-अलग क्षेत्रों के लिए कई प्रकार के ट्रिब्यूनल बनाए गए हैं. जो स्पेशल कोर्ट की तरह काम करते हुए सामान्य कोर्ट का काम कम करते हैं. 
ट्रिब्यूनल्स रिफॉर्म एक्ट 2021 का मकसद था फैसलों को जल्दी और सुव्यवस्थित करना था. सरकार ने कई छोटे-छोटे ट्रिब्यूनल खत्म करते हुए उन्हें हाईकोर्ट या बड़े ट्रिब्यूनलों के साथ मर्ज कर दिया. 

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चूंकि सुप्रीम कोर्ट पहले ही कह चुका था कि कार्यकाल लंबा होना चाहिए (कम से कम 5–6 साल) और आयु सीमा 50 साल नहीं होनी चाहिए क्योंकि इससे युवा विशेषज्ञ शामिल नहीं हो पाते. जबकि नए प्रावधान के तहत सरकार का कहना था कि सदस्य का कार्यकाल 4 साल का होगा और उसकी न्यूनतम उम्र 50 साल होगी. फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई. कानूनी जिरह चली इसके बाद सरकार को दोबारा कानून में बदलाव करने पड़े, लेकिन लड़ाई इस बात की है, सरकार ने बदलाव करके भी उन्हीं प्रावधानों को रखा जिनसे आपत्ति थी. फिर सुप्रीम कोर्ट में 4 साल की लंबी लड़ाई चली और अब कोर्ट ने फैसले को रद्द करते हुए ट्रिब्यूनल रिफॉर्म्स एक्ट के प्रावधानों को रद्द कर दिया है. 

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