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Vat Savitri Vrat 2025: व्रत के दिन भूलकर भी न करें ये काम, टूट सकती है साधना!

वट सावित्री व्रत 2025 एक पवित्र हिन्दू पर्व है जिसे सुहागन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और सुखी वैवाहिक जीवन के लिए करती हैं। इस वर्ष यह व्रत 26 मई को मनाया जाएगा। इस दिन व्रती महिलाएं वट वृक्ष की पूजा करती हैं और पौराणिक कथा के अनुसार सावित्री की तरह अपने पति के लिए कठिन तप करती हैं।

14 Apr, 2025
( Updated: 14 Apr, 2025
11:21 AM )
Vat Savitri Vrat 2025: व्रत के दिन भूलकर भी न करें ये काम, टूट सकती है साधना!
26 मई 2025... जेठ महीने की अमावस्या तिथि। यह दिन उन सभी सुहागन महिलाओं के लिए बेहद खास और पवित्र है जो अपने पति की लंबी उम्र और सुखमय वैवाहिक जीवन के लिए हर साल पूरे श्रद्धा और समर्पण के साथ वट सावित्री व्रत रखती हैं। लेकिन इस वर्ष की वट सावित्री एक नई चेतावनी के साथ आई है एक भी छोटी गलती न केवल व्रत के पुण्य को घटा सकती है, बल्कि जीवन में अशुभ संकेतों का कारण भी बन सकती है।

यह केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि एक स्त्री की आस्था, प्रेम, और धैर्य की अग्निपरीक्षा है। पर क्या आप जानती हैं कि इस दिन कुछ साधारण दिखने वाली आदतें भी व्रत के फल में रुकावट बन सकती हैं? आज हम सिर्फ परंपरा की बात नहीं करेंगे, बल्कि उन असली कारणों की भी चर्चा करेंगे जिनकी वजह से ये नियम सदियों से चले आ रहे हैं और क्यों हर व्रती महिला को इनका पालन करना चाहिए।

सावित्री और सत्यवान की प्रेमगाथा

वट सावित्री व्रत की नींव एक ऐसी स्त्री पर आधारित है, जो सिर्फ एक पत्नी नहीं, बल्कि शक्ति का प्रतीक बन गई। सावित्री... जो अपने पति सत्यवान के साथ वनवास में गईं, और जब यमराज सत्यवान के प्राण लेने आए, तो उन्होंने उन्हें लौटने पर मजबूर कर दिया।  ये कहानी महज एक कथा नहीं, बल्कि उस अपार प्रेम, तप और नारी शक्ति का उदाहरण है, जो मृत्यु तक को टाल सकती है। यही कारण है कि व्रत के दिन महिलाएं वट (बड़) वृक्ष की पूजा करती हैं, जो दीर्घायु, स्थायित्व और दृढ़ता का प्रतीक है।

2025 में व्रत की तिथि और पंचांगीय महत्व

इस वर्ष वट सावित्री व्रत 26 मई 2025 को पड़ रहा है। यह तिथि जेठ मास की अमावस्या है, जिसे देवी सावित्री का दिन माना जाता है। पंडितों के अनुसार, इस दिन वट वृक्ष की पूजा करने और कथा सुनने से विशेष पुण्य प्राप्त होता है।

पुण्य काल में पूजा करने से व्रत का प्रभाव कई गुना बढ़ जाता है। सूर्योदय से पहले स्नान कर महिलाएं वट वृक्ष के नीचे पूजा की तैयारी करती हैं और सुहाग सामग्रियों से सज-धजकर इस पर्व का शुभारंभ करती हैं।

सुहागन महिलाएं न करें ये गलतियां

यह व्रत आस्था और नियमों से बंधा है। जो महिलाएं इसे श्रद्धा से करती हैं, उन्हें कुछ बातों का विशेष ध्यान रखना चाहिए। लेकिन अक्सर जाने-अनजाने में कुछ गलतियां हो जाती हैं, जो पुण्य की बजाय अशुभ परिणाम दे सकती हैं। आइए जानें, वो कौन सी भूलें हैं:

मांसाहार और तामसिक भोजन से दूरी: इस दिन मांस, मछली, प्याज, लहसुन जैसे तामसिक पदार्थों का सेवन वर्जित है। व्रत की पवित्रता के लिए शुद्ध सात्विक भोजन या सिर्फ फलाहार करना जरूरी होता है।

काले और नीले वस्त्रों से परहेज: धार्मिक मान्यताओं में काला और नीला रंग शनि और अशुभता से जोड़ा जाता है। वट सावित्री व्रत में महिलाओं को लाल या पीले रंग के वस्त्र पहनने चाहिए, जो मंगल और शुभता का प्रतीक हैं।

झूठ बोलना और अपमान करना: इस दिन महिलाओं को पूरी तरह सत्यनिष्ठ और संयमी बनना चाहिए। किसी से झगड़ा, अपशब्द, या अपमानजनक व्यवहार करने से व्रत का प्रभाव कम हो जाता है।

वट वृक्ष को नुकसान पहुंचाना: पूजा करते समय वट वृक्ष की शाखा तोड़ना, पत्ते खींचना या पेड़ को नुकसान पहुंचाना वर्जित माना गया है। यह वृक्ष स्वयं ब्रह्मा, विष्णु और महेश का प्रतीक माना जाता है।

वट वृक्ष की पूजा और विधि

महिलाएं व्रत के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करके पूजा की थाली सजाती हैं। वट वृक्ष के नीचे जाकर उसे जल अर्पित करती हैं, सिंदूर, रोली, अक्षत से पूजन करती हैं और कच्चे सूत (धागे) से वृक्ष की परिक्रमा करती हैं। परिक्रमा करते हुए वे 7 बार वृक्ष को धागा लपेटती हैं और अपने पति की लंबी उम्र की कामना करती हैं। इसके बाद वट सावित्री व्रत कथा सुनी जाती है, जिसमें सावित्री और सत्यवान की कहानी सुनाना अनिवार्य होता है। यह न केवल धार्मिक नियम है, बल्कि एक प्रेरणा भी, जो हर स्त्री को अपने रिश्ते के लिए समर्पण और विश्वास की शक्ति देती है।

हालांकि यह धार्मिक पर्व है, लेकिन इसके पीछे कई वैज्ञानिक कारण भी छुपे हैं। वट वृक्ष ऑक्सीजन देने वाला एकमात्र पेड़ है, जो 24 घंटे शुद्ध वायु देता है। इस दिन उसके नीचे बैठना स्वास्थ्य के लिए लाभकारी होता है। वहीं उपवास और फलाहार से शरीर की पाचन क्रिया भी बेहतर होती है, और मन संयमित रहता है।

वट सावित्री व्रत महज एक रीति नहीं, बल्कि भारतीय नारी की आस्था, समर्पण और शक्ति का उत्सव है। परंतु इसके पीछे छिपे नियमों और मर्यादाओं का पालन भी उतना ही आवश्यक है जितनी श्रद्धा। इस साल 26 मई को जब आप व्रत रखें, तो यह जरूर ध्यान रखें कि कोई भी गलती आपके पुण्य में बाधा न बने। 

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