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निर्जला एकादशी पर भूलकर भी न करें ये 4 गलतियां, वरना होगा भारी नुकसान!

निर्जला एकादशी हिन्दू धर्म का एक अत्यंत महत्वपूर्ण व्रत है, जो विशेषकर उन लोगों के लिए पुण्यदायी माना जाता है जो साल भर की अन्य एकादशियों का पालन नहीं कर पाते। यह व्रत कठिन होता है क्योंकि इसमें जल तक का सेवन वर्जित है, लेकिन इसका फल समस्त एकादशियों के बराबर माना जाता है।

07 Apr, 2025
( Updated: 07 Apr, 2025
08:29 PM )
निर्जला एकादशी पर भूलकर भी न करें ये 4 गलतियां, वरना होगा भारी नुकसान!
ज्येष्ठ माह की प्रचंड गर्मी, तपते सूरज की किरणें और शरीर को चीरती हवाएं, इन सबके बीच आता है एक ऐसा दिन, जो केवल तपस्या नहीं, बल्कि आस्था और विश्वास की पराकाष्ठा है। जी हां, हम बात कर रहे हैं निर्जला एकादशी की, जो इस वर्ष 2025 में 6 जून को पड़ रही है। यह दिन सिर्फ व्रत रखने का नहीं, बल्कि स्वयं को ईश्वर को समर्पित कर देने का दिन है। लेकिन अगर आपने इस दिन कुछ जरूरी बातों की अनदेखी की, तो ये पवित्र व्रत भी आपको वांछित फल नहीं देगा—बल्कि इसके उलट, जीवन में कष्ट और कठिनाइयां बढ़ सकती हैं।

निर्जला बिना जल के तपस्या

निर्जला एकादशी का नाम सुनते ही मन में सबसे पहले आता है—“पानी नहीं पीना?”
और हां, यही इस व्रत की सबसे बड़ी विशेषता भी है। सामान्य एकादशी व्रत में फलाहार और जल की अनुमति होती है, लेकिन निर्जला एकादशी का व्रत बिल्कुल कठोर है। इस दिन जल तक का त्याग किया जाता है।

पौराणिक मान्यता है कि अगर कोई भक्त पूरे वर्ष की एकादशियों का पालन नहीं कर पाता, तो उसे निर्जला एकादशी का व्रत अवश्य करना चाहिए, क्योंकि यह व्रत सभी एकादशियों का फल अकेले ही प्रदान करता है। इसे भीमसेनी एकादशी भी कहा जाता है, क्योंकि महाभारत के बलशाली पात्र भीम ने इसी दिन का व्रत रखा था।

कब और कैसे हुई व्रत की शुरुआत ?

निर्जला एकादशी का व्रत असल में दशमी की शाम से ही आरंभ हो जाता है। इस दिन भोजन में भी विशेष सावधानी बरती जाती है—सात्विक भोजन, बिना नमक या चावल के, और व्रत की भावना के साथ ग्रहण किया जाता है। व्रतधारी दशमी की रात्रि से ही बिस्तर का त्याग कर देते हैं और भूमि पर सोना शुरू करते हैं। एकादशी तिथि के दिन प्रातः स्नान करके भगवान विष्णु की पूजा की जाती है, और अगले दिन द्वादशी की सुबह व्रत का पारण किया जाता है।

न करें यह गलतियां 

1. दातुन या ब्रश से दांत न साफ करें
सामान्यतः हम सुबह उठते ही ब्रश या दातुन करते हैं, लेकिन शास्त्रों के अनुसार निर्जला एकादशी के दिन दातुन करना वर्जित है। खासकर लकड़ी की दातुन का प्रयोग तो बिल्कुल नहीं करना चाहिए। ऐसा करने से पेड़ों की शाखाओं का हनन होता है, जो कि इस दिन भगवान विष्णु को अप्रिय है। इसका विकल्प? आप गुनगुने पानी से कुल्ला कर सकते हैं या तुलसी पत्र चबाकर पवित्रता बनाए रख सकते हैं।

2. इन खाद्य पदार्थों से बनाएं दूरी
बहुत लोग मानते हैं कि इस दिन नमक और चावल नहीं खाने चाहिए, लेकिन धार्मिक ग्रंथों में और भी गहरी बातें दर्ज हैं। इस दिन मसूर की दाल, बैंगन, सेम, प्याज, और लहसुन जैसे तामसिक पदार्थों का भी सख्त वर्जन है। अगर आप फलाहार कर रहे हैं तो वो भी सात्विक और शुद्ध होना चाहिए। भोजन नहीं कर रहे हैं तो पूर्ण निर्जला व्रत रखें, और भगवान विष्णु से शक्ति की कामना करें।

3. बिस्तर का त्याग ना करना
एक और बड़ी भूल जो भक्त करते हैं, वह है दशमी की रात को भी सामान्य बिस्तर पर सोना। धार्मिक मान्यता है कि व्रत की शुरुआत दशमी से ही मानी जाती है, और इस दौरान आपको भूमि पर ही सोना चाहिए। यह त्याग और साधना का प्रतीक है। बिस्तर पर सोने से व्रत की शुद्धता में कमी आती है और पुण्य का प्रभाव घट जाता है।

4. मन में नकारात्मक विचार और व्यवहार
निर्जला एकादशी केवल बाहरी आचरण का ही नहीं, बल्कि अंतरात्मा की शुद्धि का पर्व है। अगर आप इस दिन क्रोध, द्वेष, ईर्ष्या, या किसी के प्रति बुरा सोचते हैं, तो आपके सारे तप निष्फल हो जाते हैं। इस दिन मांस-मदिरा का सेवन, झूठ बोलना, किसी से झगड़ा करना ये सब वर्जित हैं। वास्तव में, जिस घर में कोई एक व्यक्ति भी व्रत रखता है, वहां के अन्य सदस्यों को भी सात्विक जीवनशैली अपनानी चाहिए।

निर्जला एकादशी केवल उपवास नहीं, बल्कि आत्मशुद्धि की एक कठोर साधना है। यह दिन न केवल शरीर को तपाने का, बल्कि मन और आत्मा को भी पवित्र करने का है। अगर आप इन चार प्रमुख गलतियों से बचते हैं, तो निश्चित मानिए, भगवान विष्णु की कृपा आपके जीवन के हर कष्ट को हर लेगी। इस 6 जून 2025 को निर्जला एकादशी के अवसर पर न केवल स्वयं व्रत रखें, बल्कि परिवार और समाज को भी इसके महत्व से अवगत कराएं। क्योंकि जहां श्रद्धा होती है, वहां भगवान का वास होता है।

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