हितों के टकराव को लेकर सेबी सतर्क, रिपोर्ट के बाद बदले जा सकते हैं नियम

SEBI: भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) ने कॉरपोरेट गवर्नेंस को और पारदर्शी व मजबूत बनाने की दिशा में एक बड़ा कदम उठाया है। सेबी ने हाल ही में एक हाई लेवल कमेटी का गठन किया है, जिसका मुख्य उद्देश्य है बोर्ड मेंबर्स के हितों के टकराव (Conflict of Interest) से संबंधित मामलों की गहराई से समीक्षा करना और इस पर एक व्यापक रिपोर्ट तैयार करना। यह कमेटी अगले तीन महीनों में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करेगी।
हितों के टकराव की समस्या क्या है?
किसी भी कंपनी या संस्थान के संचालन में हितों का टकराव तब होता है जब कोई निदेशक (Director) या बोर्ड मेंबर निजी हितों के कारण संस्था के व्यापक हितों से समझौता करता है। उदाहरण के लिए, कोई सदस्य ऐसी कंपनी में निर्णय ले रहा है जिसमें उसकी व्यक्तिगत हिस्सेदारी है, तो वह निष्पक्ष निर्णय नहीं ले पाएगा। इस तरह की परिस्थितियाँ कॉरपोरेट गवर्नेंस के लिए खतरनाक साबित हो सकती हैं
कमेटी का गठन क्यों हुआ?
SEBI को याह महसूस हुआ कि वर्तमान कॉरपोरेट गवर्नेंस ढांचे में हितों के टकराव की पहचान और रोकथाम को लेकर स्पष्टता और कठोरता की कमी है। कुछ उच्च-प्रोफ़ाइल मामलों और हालिया घटनाओं में इस प्रकार के टकराव उजागर हुए हैं, जिससे निवेशकों के बीच चिंता बढ़ी है। ऐसे में, निवेशकों के हितों की रक्षा और बोर्ड की पारदर्शिता बढ़ाने के लिए SEBI ने यह कदम उठाया है।
कमेटी में कौन-कौन शामिल होगा?
SEBI द्वारा गठित इस हाई लेवल कमेटी में कॉरपोरेट गवर्नेंस, लॉ, फाइनेंस और रिटेल इन्वेस्टमेंट से जुड़े विशेषज्ञों को शामिल किया गया है। इसमें पूर्व न्यायाधीश, सीनियर कॉर्पोरेट एग्जीक्यूटिव्स, चार्टर्ड अकाउंटेंट्स और सेबी के वरिष्ठ अधिकारी भी शामिल हैं। समिति का नेतृत्व एक अनुभवी पूर्व बेंच के जज कर सकते हैं, ताकि निष्पक्षता और कानूनी मजबूती बनी रहे।
तीन महीने में आएगी रिपोर्ट
SEBI ने इस कमेटी को तीन महीने के भीतर अपनी सिफारिशों के साथ एक विस्तृत रिपोर्ट सौंपने को कहा है। इस रिपोर्ट में संभावित बदलाव, नियमों में सुधार, और बोर्ड मेंबर्स के लिए नए दिशानिर्देश शामिल हो सकते हैं। यह रिपोर्ट आने के बाद SEBI इन सिफारिशों को लागू करने की प्रक्रिया शुरू कर सकता है।
क्या हो सकते हैं संभावित बदलाव?
कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर SEBI निम्नलिखित बदलाव कर सकता है:
1. डायरेक्टर्स की नियुक्ति के लिए अधिक पारदर्शी प्रक्रिया
2. स्वतंत्र निदेशकों की भूमिका और जिम्मेदारियों को फिर से परिभाषित करना
3. हितों के टकराव को लेकर रिपोर्टिंग और प्रकटीकरण की प्रणाली में सख्ती
4. बोर्ड मीटिंग्स में फैसलों को लेकर निगरानी बढ़ाना
नियामकीय उल्लंघनों पर कड़ी कार्रवाई के प्रावधान
SEBI का यह कदम कॉरपोरेट गवर्नेंस में सुधार लाने की दिशा में एक सकारात्मक प्रयास है। निवेशकों की सुरक्षा, कंपनियों की पारदर्शिता और बोर्ड मेंबर्स की जवाबदेही को बढ़ाने के लिए यह कमेटी अहम भूमिका निभा सकती है। अगले तीन महीनों में आने वाली रिपोर्ट पर पूरे बाजार की निगाहें रहेंगी, क्योंकि इसके बाद भारत की कॉरपोरेट नीतियों में महत्वपूर्ण बदलाव संभव हैं।