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क्या हैं रेयर अर्थ मिनरल्स? जिन पर चीन-अमेरिका में छिड़ा नया ट्रेड वॉर

रेयर अर्थ मिनरल्स, यानी दुर्लभ पृथ्वी तत्व, आज टेक्नोलॉजी और डिफेंस का नया ईंधन बन चुके हैं। चीन, जो दुनिया के 60% से ज्यादा REE (Rare Earth Elements) का उत्पादन करता है, उसने हाल ही में अमेरिका को इन खनिजों की सप्लाई पर रोक लगा दी है। यह कदम अमेरिका द्वारा चीनी प्रोडक्ट्स पर भारी टैरिफ लगाने के जवाब में उठाया गया है।
क्या हैं रेयर अर्थ मिनरल्स? जिन पर चीन-अमेरिका में छिड़ा नया ट्रेड वॉर
चीन की वाणिज्य मंत्रालय की वेबसाइट पर जैसे ही एक छोटा-सा अपडेट सामने आया. वैसे ही अमेरिका, जापान और यूरोप की कंपनियों के माथे पर पसीना छूटने लगी. खबर थी “चीन ने अमेरिका को रेयर अर्थ मिनरल्स (दुर्लभ पृथ्वी तत्वों) की सप्लाई रोक दी है.” इस एक फैसले ने न सिर्फ़ टेक्नोलॉजी और डिफेंस इंडस्ट्री में हलचल मचा दी, बल्कि वैश्विक राजनीति में एक नई तरह का युद्ध मिनरल वॉर शुरू कर दिया.

ये रेयर अर्थ मिनरल्स आखिर हैं क्या?

नाम से लगता है कि ये खनिज बहुत दुर्लभ होंगे. लेकिन असल में ऐसा नहीं है. रेयर अर्थ एलिमेंट्स (REEs) असल में 17 रासायनिक तत्वों का एक समूह हैं, जो धरती की पपड़ी में तो मौजूद हैं, लेकिन इतने बारीकी से फैले हुए होते हैं कि इन्हें निकालना और शुद्ध करना बेहद महंगा और जटिल होता है.

इनमें प्रमुख तत्व हैं नियोडिमियम, प्रेजोडायमियम, सेरियम, लैंथेनम, येट्रियम, स्कैंडियम आदि. इनका प्रयोग स्मार्टफोन, इलेक्ट्रिक वाहन, फाइटर जेट, सोलर पैनल, पवन टरबाइन, कंप्यूटर चिप्स, मिसाइल गाइडेंस सिस्टम जैसी हाईटेक चीज़ों में होता है. नियोडिमियम और प्रेजोडायमियम जैसे तत्व EV मोटर और स्थायी मैग्नेट्स में प्रयोग होते हैं. सेरियम का उपयोग गाड़ियों के कैटेलिटिक कन्वर्टर में होता है, जो प्रदूषण को कम करते हैं. लैंथेनम से बने कैमरा लेंस और टीवी डिस्प्ले आज हमारे जीवन का हिस्सा हैं.

चीन की बादशाहत क्यों डराती है दुनिया को?

चीन अकेले दुनिया के 60% से ज्यादा रेयर अर्थ खनिजों का उत्पादन करता है और प्रोसेसिंग में उसकी हिस्सेदारी 90% से ज्यादा है. ये ऐसे कच्चे पदार्थ हैं जिनके बिना आधुनिक तकनीक अधूरी है. 2023 में चीन ने 2.4 लाख टन से ज्यादा इन खनिजों का उत्पादन किया. इसका मुकाबला अमेरिका सिर्फ 43,000 टन के साथ कर पाया. ब्राजील, वियतनाम और भारत के पास भंडार तो हैं, लेकिन तकनीकी दक्षता, लागत और प्रोसेसिंग इन्फ्रास्ट्रक्चर के मामले में चीन अब भी सबसे आगे है.

चीन ने क्यों लगाया बैन?

दरअसल, अमेरिका ने हाल ही में चीन से आयात होने वाले इलेक्ट्रिक वाहनों, सोलर पैनल और कुछ अन्य हाईटेक सामान पर 145% तक का टैरिफ लगा दिया.
इसके जवाब में चीन ने भी अमेरिकी उत्पादों पर 125% टैक्स लगाया, लेकिन इससे भी बड़ा झटका था रेयर अर्थ मिनरल्स की सप्लाई रोक देना. ये वही हथियार है जिसका प्रयोग चीन 2010 में जापान के खिलाफ कर चुका है और तब भी असर गहरा पड़ा था. इस बार निशाना है अमेरिका, और खासतौर पर उसकी डिफेंस इंडस्ट्री.

कितनी बढ़ेगी अमेरिका की परेशानी?

अमेरिका की F-35 फाइटर जेट, मिसाइल सिस्टम, NAVY के रडार, सबमें REE इस्तेमाल होते हैं. EV सेक्टर में Tesla, Ford, General Motors जैसी कंपनियां भी इन्हीं खनिजों पर निर्भर हैं. बिना नियोडिमियम और डिस्प्रोसियम के इनका उत्पादन ठप हो सकता है या कम से कम बहुत महंगा.
यानी अमेरिका को अब दो ही रास्ते हैं  या तो अपने देश में तेज़ी से इनका उत्पादन बढ़ाए, या फिर ऑस्ट्रेलिया, भारत, ब्राजील, मेडागास्कर जैसे देशों से रणनीतिक साझेदारी करे.

भारत की क्या भूमिका बन सकती है?
बहुत कम लोग जानते हैं कि भारत के पास दुनिया का पांचवां सबसे बड़ा REE भंडार है. तमिलनाडु, केरल, झारखंड, आंध्र प्रदेश, ओडिशा में इन खनिजों की उपस्थिति है. लेकिन भारत का उत्पादन बहुत कम है क्योंकि तकनीक, नीति और पर्यावरणीय मंजूरी की जटिलताएं बीच में हैं. अब जब अमेरिका को चीन के विकल्प की जरूरत है, तो भारत के पास एक बड़ा मौका है कि वह खुद को एक भरोसेमंद सप्लायर के रूप में सामने लाए.

सरकार ने "क्रिटिकल मिनरल मिशन" की शुरुआत की है, जिसके तहत इन खनिजों की खोज, खनन और प्रोसेसिंग को बढ़ावा दिया जाएगा. रक्षा, अंतरिक्ष और ग्रीन एनर्जी क्षेत्र में भारत यदि आत्मनिर्भर बनना चाहता है, तो REE सेक्टर में निवेश और नीति सुधार ज़रूरी हैं.

क्या ये एक नया कोल्ड वॉर है?
पहले तेल युद्ध हुए थे, अब शायद खनिज युद्ध (Mineral War) की शुरुआत हो चुकी है. जिस तरह 20वीं सदी में तेल से देशों की अर्थव्यवस्थाएं बनती-बिगड़ती थीं, अब वही स्थिति रेयर अर्थ एलिमेंट्स के साथ बन रही है. जो देश इन खनिजों को नियंत्रित करेगा, वो अगली पीढ़ी की तकनीक और सुरक्षा का नेता बनेगा.

चीन का यह कदम सिर्फ एक व्यापारिक नीति नहीं, बल्कि एक भू-राजनीतिक चाल है. अमेरिका जवाब देगा, संभव है कि वर्ल्ड ट्रेड ऑर्गनाइजेशन (WTO) में मुद्दा उठे. शायद नए समझौते बनें, शायद नए सप्लायर सामने आएं लेकिन इतना तय है कि रेयर अर्थ मिनरल्स अब सिर्फ लैब की बात नहीं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय राजनीति का केंद्रीय बिंदु बन चुके हैं.
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