ट्रंप की चेतावनी: ईरानी तेल खरीदने वालों को भुगतना होगा खामियाजा, लगेगा सेकेंडरी प्रतिबंध
1 मई, 2025 को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने घोषणा की कि ईरान से तेल या पेट्रोकेमिकल्स खरीदने वाले किसी भी देश या व्यक्ति पर सेकेंडरी प्रतिबंध लगाए जाएंगे। उन्होंने कहा कि ऐसे देशों को अमेरिका के साथ किसी भी प्रकार का व्यापार करने की अनुमति नहीं होगी। यह कदम ईरान के परमाणु कार्यक्रम को रोकने और उसके तेल निर्यात को शून्य करने के उद्देश्य से उठाया गया है।

अमेरिका और ईरान के बीच का तनाव एक बार फिर खतरनाक मोड़ पर पहुंच गया है. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने Truth Social पर स्पष्ट शब्दों में ऐलान किया है कि अब कोई भी देश या व्यक्ति अगर ईरान से कच्चा तेल या पेट्रोकेमिकल उत्पाद खरीदता है, तो उसे अमेरिका की सेकेंडरी सैंक्शन्स का सामना करना पड़ेगा. ट्रंप ने चेताया है कि ऐसा कोई भी देश अमेरिका के साथ व्यापार नहीं कर सकेगा, चाहे वह किसी भी रूप में क्यों न हो.
ट्रंप के इस बयान के बाद विश्व मंच पर हलचल मच गई है. खासकर वे देश जो ईरान से तेल का आयात करते हैं, वे एक मुश्किल स्थिति में आ गए हैं. भारत, चीन, तुर्की जैसे देश जो वर्षों से ईरान से कच्चा तेल खरीदते आए हैं, अब नई कूटनीतिक चुनौती का सामना कर रहे हैं.
सेकेंडरी सैंक्शन्स क्या है, कितना गहरा होता है इसका असर?
सेकेंडरी सैंक्शन्स उन देशों या कंपनियों पर लगाई जाती हैं जो प्रतिबंधित देशों के साथ व्यापार करते हैं. इसका मतलब यह हुआ कि अगर कोई देश अमेरिका द्वारा प्रतिबंधित देश, जैसे ईरान से व्यापार करता है, तो अमेरिका उसे भी सजा देगा. यह सजा आर्थिक होती है, लेकिन असर इतना गहरा होता है कि कोई भी बड़ी कंपनी या बैंक इस जोखिम को उठाना नहीं चाहता.
ट्रंप के इस ऐलान का उद्देश्य साफ है – ईरान की अर्थव्यवस्था को पूरी तरह से घुटनों पर लाना. ईरान की कमाई का बड़ा हिस्सा तेल निर्यात से आता है. जब इसपर अमेरिका ने पहला प्रतिबंध लगाया था, तब भी ईरान को अरबों डॉलर का घाटा हुआ था. अब ट्रंप ने एक बार फिर इस नब्ज पर वार किया है.
तेल के बाजार पर पड़ेगा गहरा असर
दुनिया की बड़ी तेल कंपनियां और आयातक देश अब एक बड़े संकट के मुहाने पर खड़े हैं. अगर अमेरिका की बात मानें तो उन्हें ईरान से तेल खरीदना बंद करना होगा. लेकिन इसका विकल्प ढूंढ़ना आसान नहीं है. सऊदी अरब, रूस और अमेरिका जैसे देशों से तेल मंहगा पड़ता है. ऐसे में विकासशील देशों के लिए ईरान का तेल सबसे सस्ता और टिकाऊ विकल्प रहा है.
ट्रंप की धमकी ने न सिर्फ राजनीतिक बल्कि आर्थिक भूचाल ला दिया है. तेल के दामों में उतार-चढ़ाव शुरू हो चुका है. बाजार में अनिश्चितता का माहौल है. और इसका असर सबसे पहले आम उपभोक्ता की जेब पर पड़ता है.
भारत की मुश्किलें और आगे की रणनीति
भारत के लिए यह स्थिति बेहद नाजुक है. ईरान भारत का एक पुराना तेल आपूर्तिकर्ता रहा है. खासकर रिफाइन की गई पेट्रोलियम उत्पादों के लिए भारत ने हमेशा ईरान को प्राथमिकता दी है. लेकिन अब अमेरिका के इस फैसले के बाद भारत के सामने दो विकल्प हैं – या तो वह अमेरिका के साथ व्यापार जारी रखे और ईरान से दूरी बनाए, या फिर अमेरिका की नाराजगी झेले.
भारत सरकार अब ‘वेट एंड वॉच’ की नीति अपना सकती है. संभव है कि भारत अपने पुराने तेल साझेदारों से कीमत कम करवाने की कोशिश करे ताकि नुकसान को संतुलित किया जा सके.
क्या फिर भड़केगा मध्य पूर्व?
ट्रंप की धमकी पर अब दुनिया की निगाहें ईरान की प्रतिक्रिया पर टिक गई हैं. ईरान पहले ही अमेरिकी प्रतिबंधों से जूझ रहा है. लेकिन बार-बार के आर्थिक हमलों से वहां राजनीतिक अस्थिरता का खतरा भी बढ़ गया है. पहले भी ईरान ने बार-बार यह कहा है कि अगर उसे तेल बेचने से रोका गया तो वह होरमुज की खाड़ी बंद कर देगा – जो दुनिया का सबसे अहम तेल शिपिंग रास्ता है. अगर ऐसा होता है, तो पूरी दुनिया में तेल संकट उत्पन्न हो सकता है. ट्रंप की धमकी कोई सामान्य बयान नहीं, बल्कि वैश्विक सुरक्षा को प्रभावित करने वाला कदम है.
अब सवाल उठता है कि ट्रंप ने यह बयान क्यों दिया? क्या यह सिर्फ ईरान को कमजोर करने की रणनीति है या इसके पीछे घरेलू राजनीति भी है? ट्रंप की छवि एक सख्त राष्ट्रवादी नेता की रही है. अमेरिकी जनता में यह संदेश देने के लिए कि वे ईरान जैसे देशों को झुकाने की ताकत रखते हैं, ट्रंप बार-बार ऐसे बयान देते हैं. साथ ही अमेरिका की ‘अमेरिका फर्स्ट’ नीति का हिस्सा भी यही है कि वह चाहता है कि दुनिया उसके नियमों पर चले. ट्रंप यह दिखाना चाहते हैं कि अमेरिका के खिलाफ जाने वालों को माफ नहीं किया जाएगा, चाहे वह देश कोई भी हो.
ट्रंप का यह बयान निश्चित रूप से वैश्विक राजनीति और अर्थव्यवस्था में हलचल मचाने वाला है. लेकिन इसका समाधान केवल धमकियों में नहीं, बल्कि बातचीत और समझ में है. ईरान जैसे देशों को बातचीत की मेज पर लाना और समस्याओं का हल ढूंढ़ना ही एक जिम्मेदार वैश्विक नेता की पहचान है.