ट्रंप का नई जंग छेड़ने का प्लान! पूछा- चीन पर हमला किया तो कौन-कौन देगा साथ, जानें किस-किस से मिला जवाब
अमेरिका ने सवाल किया है कि अगर ताइवान को लेकर चीन के साथ युद्ध की नौबत आती है, तो ऐसे हालात में देशों की भूमिका क्या होगी? ये सवाल अमेरिका ने हिंद-प्रशांत क्षेत्र में उसके प्रमुख रणनीतिक साझेदार हैं और क्वाड (QUAD) गठबंधन का हिस्सा भी हैं, जिसमें भारत भी शामिल है, उससे पूछा है.
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अमेरिकी सरकार ने अपने दो भरोसेमंद सहयोगियों से एक ऐसा सवाल पूछा है, जिसका जवाब भविष्य की वैश्विक भू-राजनीतिक तस्वीर को तय कर सकता है. अमेरिका का सवाल था—अगर ताइवान को लेकर चीन के साथ युद्ध की नौबत आती है, तो ऐसे हालात में इन दोनों देशों की भूमिका क्या होगी? गौर करने वाली बात यह है कि ये दोनों देश हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अमेरिका के प्रमुख रणनीतिक साझेदार हैं और क्वाड (QUAD) गठबंधन का हिस्सा भी हैं, जिसमें भारत भी शामिल है.
अमेरिका ऐसा सवाल क्यों पूछ रहा है?
सवाल यह है कि अमेरिका अपने करीबी सहयोगियों से ऐसा सवाल क्यों पूछ रहा है? क्या ताइवान को लेकर अमेरिका और चीन के बीच टकराव की स्थिति सच में पैदा होने वाली है? रूस-यूक्रेन, इजरायल-हमास और ईरान-इजरायल जैसे संघर्षों के बाद क्या दुनिया एक और बड़े टकराव की ओर बढ़ रही है?
अमेरिका और चीन के बीच तनातनी क्यों?
ताइवान को लेकर अमेरिका और चीन के बीच तनातनी कोई नई बात नहीं है. अमेरिका खुद को ताइवान का सुरक्षा गारंटर बताता है, लेकिन यह समर्थन किसी स्वार्थ से खाली नहीं है. दरअसल, 1979 में बने ‘ताइवान रिलेशंस एक्ट’ के तहत अमेरिका ताइवान को हथियार और सैन्य सहयोग देता है ताकि वह चीन से अपनी रक्षा कर सके.
ताइवान पर अब अमेरिका खुलकर बोलने लगा है. हालांकि अब तक अमेरिका की नीति "रणनीतिक अस्पष्टता" पर आधारित रही है — यानी वह साफ नहीं करता कि अगर चीन ताइवान पर हमला करता है, तो वह सैन्य जवाब देगा या नहीं. इस रणनीति का मकसद चीन को रोकना और क्षेत्र में तनाव को काबू में रखना रहा है.
लेकिन हाल के वर्षों में अमेरिका ने ताइवान को हथियारों की सप्लाई बढ़ा दी है और क्वाड (QUAD) जैसे गठबंधनों के ज़रिए हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन के बढ़ते असर को रोकने की कोशिश तेज कर दी है.
अब अमेरिका खुलकर पूछ रहा है सवाल
फाइनेंशियल टाइम्स की रिपोर्ट बताती है कि, अमेरिकी रक्षा मंत्रालय के शीर्ष अधिकारी एल्ब्रिज कोल्बी का कहना है कि ताइवान पर चीन के बढ़ते दबाव को देखते हुए अब इस क्षेत्र में "सामूहिक रक्षा" का साफ संदेश देना जरूरी है. यानी अगर चीन हमला करे, तो सभी मिलकर ताइवान की रक्षा करें.
यह चीन के लिए भी एक चेतावनी
अमेरिका चाहता है कि उसके सहयोगी देश – जैसे जापान और ऑस्ट्रेलिया – न सिर्फ अपने रक्षा बजट को बढ़ाएं, बल्कि संभावित युद्ध की तैयारी के लिए ठोस योजनाएं भी बनाएं. यह सब "डेटरेंस" यानी चीन को डराकर रोकने की रणनीति का हिस्सा है.
सहयोगी देश असहज
जापान और ऑस्ट्रेलिया दोनों अमेरिका के करीबी साथी हैं, लेकिन वे चीन से अपने आर्थिक और कूटनीतिक रिश्तों को बिगाड़ना नहीं चाहते. इसलिए वे ताइवान पर किसी स्पष्ट सैन्य वादा देने से बच रहे हैं.
ऑस्ट्रेलिया ने तो ऐसे सवालों को "काल्पनिक" बताकर टाल दिया. इधर जापान ने भी कहा कि भविष्य की परिस्थितियों पर अभी कुछ कहना मुश्किल है.
हालांकि इसी बीच ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री एंथनी अल्बनीज चीन दौरे पर हैं. उन्होंने कहा है कि ऑस्ट्रेलिया का सबसे बड़ा निर्यात साझेदार चीन है और चीन इस व्यापारिक दोस्ती को आगे ले जाना चाहता है.
This week I’m representing Australia’s interests in China. Here’s why. pic.twitter.com/HHtC1jYtmN
— Anthony Albanese (@AlboMP) July 13, 2025
ताइवान बना सबसे बड़ा सैन्य तनाव का केंद्र
विशेषज्ञों के मुताबिक, ताइवान इस वक्त दुनिया का सबसे खतरनाक सैन्य टकराव वाला क्षेत्र बन गया है — जिसे ‘फ्लैशपॉइंट’ कहा जाता है. यहां पारंपरिक युद्ध ही नहीं, परमाणु युद्ध की आशंका भी जताई जा रही है.
फिलहाल युद्ध की संभावना कम हालांकि, ज्यादातर विश्लेषकों का मानना है कि हालात तनावपूर्ण जरूर हैं, लेकिन युद्ध अभी तुरंत नहीं होगा. चीन और अमेरिका दोनों को पता है कि अगर ताइवान पर जंग छिड़ी, तो उसका असर पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था और स्थिरता पर बहुत बुरा होगा.
रक्षा विशेषज्ञ का बयान
रक्षा विशेषज्ञ ब्रह्म चेलानी ने एक्स पर लिखा है कि, "पेंटागन द्वारा ऑस्ट्रेलिया पर ताइवान को लेकर संभावित अमेरिका-चीन युद्ध में अपनी भूमिका के लिए दबाव डालना एक महत्वपूर्ण वास्तविकता की ओर इशारा करता है: AUKUS गठबंधन में रणनीतिक दायित्व शामिल हैं जिससे कैनबरा आसानी से बच नहीं सकता, हालांकि ऑस्ट्रेलिया रणनीतिक अस्पष्टता की स्थिति को बनाए रखने की कोशिश कर सकता है, लेकिन अमेरिका के साथ उसका गहराता सैन्य गऑजोड़ ताइवान संघर्ष में तटस्थता को लगातार अस्थिर कर रहा है."
That the Pentagon is pressing Australia on the role it would play in a potential U.S.-China war over Taiwan underscores a critical reality: the AUKUS alliance entails strategic obligations that Canberra cannot easily sidestep. While Australia may seek to hedge or maintain…
— Dr. Brahma Chellaney (@Chellaney) July 13, 2025
क्या कहते हैं चीन के थिंक टैंक?
चाइनीज एकेडमी ऑफ सोशल साइंसेज के रिसर्च फेलो लू जियांग ने रविवार को ग्लोबल टाइम्स को बताया कि अमेरिका की अपने सहयोगियों पर की जा रही मांग एक तरह की ज़बरदस्ती है और दबाव की रणनीति है. इसका उद्देश्य दोनों देशों को चीन को उकसाने के लिए मजबूर करना है जिससे चीन-जापान और चीन-ऑस्ट्रेलिया संबंधों में प्रगति कमजोर हो रही है.
लू जियांग ने कहा, "अमेरिका की अपनी धारणा में चीन को बाधा पहुंचाने वाले फैक्टर लगातार कमजोर होते जा रहे हैं." लू ने कहा कि इन दोनों देशों के प्रति अमेरिका की मांगें इन सहयोगियों के साथ उसके संबंधों को लेकर आंतरिक चिंता को दर्शाती हैं. लू के अनुसार, गठबंधनों को जबरन बांधने से अंततः समस्याएं पैदा होंगी और ऐसा कदम इस बात का संकेत है कि ये रिश्ते कमजोर होते जा रहे हैं.
क्या ये कोल्बी की निजी राय है?
रॉयटर्स के अनुसार कोल्बी हार्डलाइनर माने जाते हैं. उनका तर्क है कि अमेरिकी सेना को चीन के साथ प्रतिस्पर्धा को प्राथमिकता देनी चाहिए और अपना ध्यान मध्य पूर्व और यूरोप से हटाकर यहां लगाना चाहिए. चाइना फॉरेन अफेयर्स यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर ली हैदोंग ने ग्लोबल टाइम्स को बताया कि यह देखना बाकी है कि यह कोल्बी की निजी राय है या मौजूदा अमेरिकी प्रशासन का रुख.