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ग्लोबल स्लोडाउन के बीच भारत की चमक बरकरार, UN रिपोर्ट में खुलासा

संयुक्त राष्ट्र की हालिया रिपोर्ट ‘Trade and Development Report Update 2025’ में भारत को लेकर एक सकारात्मक भविष्यवाणी की गई है. रिपोर्ट के अनुसार, भले ही वैश्विक अर्थव्यवस्था 2025 में सिर्फ 2.3% की दर से बढ़ेगी, लेकिन भारत 6.5% की ग्रोथ दर के साथ सबसे तेज़ी से बढ़ने वाली बड़ी अर्थव्यवस्था बना रहेगा.
ग्लोबल स्लोडाउन के बीच भारत की चमक बरकरार, UN रिपोर्ट में खुलासा
जब पूरी दुनिया आर्थिक अनिश्चितता, मंदी और व्यापारिक तनावों की चपेट में आने की आशंका जता रही है, तभी एक खबर भारत के लिए उम्मीद की रौशनी बनकर सामने आई है. संयुक्त राष्ट्र (UN) ने अपनी ताज़ा रिपोर्ट में यह साफ कर दिया है कि भारत की अर्थव्यवस्था धीमी नहीं, बल्कि स्थिर गति से आगे बढ़ती रहेगी.


UNCTAD (United Nations Conference on Trade and Development) द्वारा जारी की गई ‘Trade and Development Report Update 2025’ में कहा गया है कि भारत 2025 में 6.5% की दर से ग्रोथ करेगा, जो उसे दुनिया की सबसे तेज़ी से बढ़ने वाली बड़ी अर्थव्यवस्था बनाए रखेगा.


दुनिया सुस्त, भारत दुरुस्त

इस रिपोर्ट के मुताबिक, वैश्विक आर्थिक विकास दर 2025 में घटकर महज 2.3% रहने की संभावना है. इसका सबसे बड़ा कारण है अंतरराष्ट्रीय व्यापार में खींचतान, अस्थिर वित्तीय बाजार, और नीति निर्धारण में अनिश्चितता. लेकिन इस अंधेरे में भारत एक ऐसा देश है जिसकी आर्थिक सेहत अपेक्षाकृत बेहतर बनी हुई है. भारत में निवेशकों का भरोसा मजबूत है, और सरकार की आर्थिक नीतियां फिलहाल स्थिर दिखाई दे रही हैं.


भारत की मजबूती के पीछे कौन-से स्तंभ हैं?

UN की रिपोर्ट साफ कहती है कि भारत की विकास दर को गति देने वाले दो बड़े कारण हैं सरकारी खर्च में इज़ाफा और ब्याज दरों में कटौती. रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) ने फरवरी 2025 में रेपो रेट में 0.25% की कटौती की थी. इससे बैंकों से कर्ज लेना सस्ता हुआ, जिससे न सिर्फ उपभोक्ताओं की क्रय शक्ति बढ़ी, बल्कि निजी निवेश को भी प्रोत्साहन मिला.

सरकार की ओर से बुनियादी ढांचे, कृषि और डिजिटल सेक्टर में बढ़ते निवेश ने भी रोज़गार और मांग दोनों को समर्थन दिया है. यही वजह है कि भले 2024 में विकास दर 6.9% थी और 2025 में 6.5% अनुमानित है, लेकिन यह गिरावट मामूली और स्वाभाविक है. रिपोर्ट में सिर्फ भारत ही नहीं, बल्कि पूरे दक्षिण एशिया की बात की गई है. 2025 में इस क्षेत्र की अनुमानित विकास दर 5.6% बताई गई है. मौद्रिक नीतियों में नरमी, ईंधन की कीमतों में स्थिरता और खाद्य मुद्रास्फीति में कमी जैसे कारकों ने पूरे क्षेत्र को कुछ हद तक राहत दी है.लेकिन सब कुछ इतना संतुलित नहीं. पाकिस्तान, बांग्लादेश और श्रीलंका जैसे देश भारी कर्ज, राजनीतिक अस्थिरता और महंगे खाद्य पदार्थों से जूझ रहे हैं. इन देशों की अर्थव्यवस्था पर बाहरी कर्ज का बोझ और घरेलू नीतिगत अस्थिरता भारी पड़ रही है.


क्या कहती है संयुक्त राष्ट्र की चेतावनी?

UNCTAD की रिपोर्ट में चेताया गया है कि यदि देशों ने आपसी सहयोग नहीं बढ़ाया और अपने व्यापारिक हितों को एकतरफा प्राथमिकता देना जारी रखा, तो वैश्विक मंदी की आशंका गहरा सकती है. संयुक्त राष्ट्र ने सुझाव दिया है कि देशों को अपनी वित्तीय नीतियों में पारदर्शिता लानी होगी, वैश्विक संस्थानों को नए व्यापार समझौते लाने होंगे, और साझा रणनीति बनाकर आर्थिक अस्थिरता को काबू में करना होगा. रिपोर्ट यह भी संकेत देती है कि निवेश की गति कमजोर हो रही है, जिससे नौकरियों की संख्या में भी गिरावट आ सकती है. अस्थिरता के इस दौर में भारत की स्थिरता दुनिया के लिए एक मिसाल बन सकती है — बशर्ते नीति-निर्धारण में निरंतरता बनी रहे.


क्या भारत इस ग्रोथ को बनाए रख पाएगा?

भारत के सामने भी चुनौतियां कम नहीं हैं. महंगाई पर नियंत्रण, किसानों की आय में वृद्धि, शहरी बेरोजगारी और वैश्विक मांग में गिरावट जैसे मसलों से निपटना जरूरी है. लेकिन भारत के पास एक बड़ा फायदा है युवा जनसंख्या और तेजी से बढ़ती डिजिटल इकोनॉमी. सरकार की योजनाएं जैसे PM Gati Shakti, Make in India, PLI स्कीम, और डिजिटल इंडिया भारत को उत्पादन और टेक्नोलॉजी में आत्मनिर्भर बना रही हैं. विदेशी निवेशक भी भारत को लेकर आशावादी हैं, क्योंकि चीन की घटती वैश्विक विश्वसनीयता ने भारत को एक विकल्प के रूप में उभारा है.


संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट केवल एक आंकड़ा नहीं है, यह एक वैश्विक मान्यता है कि भारत अपनी अर्थव्यवस्था, नीति और रणनीति के बल पर स्थिर गति से आगे बढ़ रहा है. जहां दुनिया मंदी के खतरों से घिरी है, वहीं भारत के सामने एक गोल्डन चांस है निवेश आकर्षित करने का, रोज़गार सृजन का, और वैश्विक सप्लाई चेन में अपनी भागीदारी बढ़ाने का.
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