लॉस एंजिल्स में इमिग्रेशन रेड पर बवाल, विरोध को दबाने के लिए ट्रंप द्वारा सेना उतारे जाने पर एक्सपर्ट्स ने उठाए सवाल
लॉस एंजिल्स में राष्ट्रपति ट्रंप के इस निर्णय के बाद शहर में असहमति और विरोध की लहर तेज हो गई है. विशेषज्ञों का मानना है कि यह कदम आगामी दिनों में विरोध प्रदर्शनों पर गंभीर प्रभाव डाल सकता है. एक प्रमुख न्यूज़ एजेंसी की रिपोर्ट के मुताबिक, पुलिस और फेडरल बॉर्डर पेट्रोल एजेंट्स की प्रदर्शनकारियों से झड़प भी हुई, जिसके दौरान आंसू गैस के गोले छोड़े गए. इस घटनाक्रम के बाद से लॉस एंजिल्स के कई इलाकों में तनाव की स्थिति बनी हुई है.

अमेरिका के दूसरे सबसे बड़े शहर लॉस एंजिल्स में इमिग्रेशन रेड के खिलाफ शुरू हुआ प्रदर्शन अब और अधिक उग्र होता जा रहा है. हालात तब और तनावपूर्ण हो गए जब राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हाल ही में 2,000 नेशनल गार्ड्स की तैनाती का आदेश जारी किया. राष्ट्रपति ट्रंप के इस निर्णय के बाद शहर में असहमति और विरोध की लहर तेज हो गई है. विशेषज्ञों का मानना है कि यह कदम आगामी दिनों में विरोध प्रदर्शनों पर गंभीर प्रभाव डाल सकता है.
एक प्रमुख न्यूज़ एजेंसी की रिपोर्ट के मुताबिक, पुलिस और फेडरल बॉर्डर पेट्रोल एजेंट्स की प्रदर्शनकारियों से झड़प भी हुई, जिसके दौरान आंसू गैस के गोले छोड़े गए. इस घटनाक्रम के बाद से लॉस एंजिल्स के कई इलाकों में तनाव की स्थिति बनी हुई है. नॉर्थईस्टर्न यूनिवर्सिटी के लॉ स्कूल के प्रोफेसर डेनियल उरमैन का कहना है कि राष्ट्रपति ट्रंप को कानून के तहत 'विद्रोह' जैसी परिस्थितियों में नेशनल गार्ड्स तैनात करने का अधिकार है, लेकिन आमतौर पर यह फैसला राज्य के गवर्नर के अनुरोध पर ही लिया जाता है. प्रोफेसर उरमैन ने कहा, “लॉस एंजिल्स में विरोध प्रदर्शनों का स्तर अभी उस सीमा तक नहीं पहुंचा था कि सीधे राष्ट्रपति स्तर पर नेशनल गार्ड्स की तैनाती की जरूरत हो.”
विरोध दबाने की जल्दबाज़ी
प्रोफेसर डेनियल उरमैन ने राष्ट्रपति के इस निर्णय को “समय से पहले उठाया गया कदम” बताया है. उन्होंने कहा कि यह ऐसा प्रतीत होता है मानो इसका उद्देश्य विरोध प्रदर्शन को कुचलना हो, बजाय इसके कि स्थिति वास्तव में नियंत्रण से बाहर हो. वहीं, व्हाइट हाउस ने एक बयान जारी कर कहा है कि राष्ट्रपति ट्रंप ने "उस अराजकता को खत्म करने" के लिए 'प्रेसिडेंशियल मेमोरेंडम' (Presidential Memorandum) पर हस्ताक्षर किए हैं, "जिसे लंबे समय से पनपने दिया गया था.” हालांकि, कैलिफोर्निया के गवर्नर गेविन न्यूजम ने इस कदम की कड़ी आलोचना करते हुए इसे “जानबूझकर भड़काने वाला” करार दिया है. उन्होंने कहा कि राज्य की स्थिति राष्ट्रपति द्वारा प्रस्तुत की गई तस्वीर से कहीं अधिक स्थिर है, और ऐसी कोई ज़रूरत नहीं थी कि संघीय बल इस प्रकार हस्तक्षेप करें. वही सरकारी सूत्रों के अनुसार, प्रशासन ने अब तक 'विद्रोह कानून' (Insurrection Act) का औपचारिक रूप से उपयोग नहीं किया है. यह 1807 का एक पुराना अमेरिकी कानून है, जो राष्ट्रपति को विशेष परिस्थितियों में सेना तैनात कर कानून-व्यवस्था बहाल करने का अधिकार देता है. बता दें कि इस कानून का आखिरी बार उपयोग 1992 में लॉस एंजिल्स दंगों के दौरान कैलिफोर्निया के गवर्नर के अनुरोध पर किया गया था.
सेना की तैनाती से बिगड़ सकता है संघीय ढांचा
प्रोफ़ेसर उरमैन ने इस निर्णय को लेकर गंभीर चेतावनी दी है. उन्होंने कहा कि बिना राज्य सरकार की सहमति के सैन्य बलों की तैनाती से संघीय और राज्य सरकारों के बीच शक्ति-संतुलन पर असर पड़ सकता है .उरमैन ने कहा, “इससे संघीय सरकार को राज्य और स्थानीय सरकारों से अधिक अधिकार मिलने का खतरा है.” उन्होंने यह भी रेखांकित किया कि अमेरिकी संविधान एक संविधान समिति और स्पष्ट रूप से विभाजित अधिकारों वाली संघीय व्यवस्था का समर्थन करता है. Posse Comitatus Act का हवाला देते हुए उन्होंने स्पष्ट किया कि अमेरिका में सेना को नागरिकों पर बल प्रयोग करने की अनुमति तब तक नहीं है, जब तक कि कांग्रेस इसकी विशेष मंजूरी न दे या आत्मरक्षा की स्थिति न उत्पन्न हो. प्रोफेसर उरमैन ने इस कदम को First Amendment यानी अभिव्यक्ति और शांतिपूर्ण विरोध के अधिकारों के लिए भी खतरा बताया. उन्होंने कहा,“अगर अमेरिकी राष्ट्रपति हर बार अपने खिलाफ उठने वाले विरोध प्रदर्शनों पर सेना तैनात करते हैं, तो यह भविष्य में आम नागरिकों को विरोध करने से रोक सकता है.”
उनका यह बयान ऐसे समय पर आया है जब लॉस एंजिल्स में इमिग्रेशन रेड के खिलाफ प्रदर्शन और अधिक उग्र हो रहे हैं, और इस बीच नागरिक स्वतंत्रताओं को लेकर देशभर में बहस तेज़ हो चुकी है. अब यह देखना होगा कि ट्रंप प्रशासन इस आलोचना पर क्या रुख अपनाता है और क्या कांग्रेस या सुप्रीम कोर्ट से इस कदम की वैधता को लेकर कोई सवाल उठता है.फिलहाल, शहर में भारी सुरक्षा बल तैनात किया गया है और स्थिति पर बारीकी से निगरानी रखी जा रही है. स्थानीय प्रशासन और मानवाधिकार संगठनों ने प्रदर्शनकारियों से शांति बनाए रखने की अपील की है.