नागेश्वर ज्योतिर्लिंग: द्वारका के पास स्थित शिव का वह स्वयंभू रूप, जहां भक्तों को मिलता है मोक्ष और नाग दोष से मुक्ति
नागेश्वर ज्योतिर्लिंग केवल एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि यह वह पवित्र स्थान है जहां श्रद्धा, शांति और शिव की कृपा एक साथ अनुभव होती है. अरब सागर के किनारे स्थित यह स्वयंभू शिवलिंग हजारों वर्षों से अनगिनत भक्तों की आस्था का केंद्र रहा है. यहां आने वाला हर श्रद्धालु, चाहे वह किसी भी उद्देश्य से आया हो, मानसिक शांति, दोषों से मुक्ति, या मोक्ष की तलाश में - शिव की छाया में आकर स्वयं को आध्यात्मिक रूप से समृद्ध पाता है

नागेश्वर ज्योतिर्लिंग गुजरात के द्वारका शहर से 17-20 किलोमीटर दूर एक प्रसिद्ध शिव मंदिर है. यह भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है. नागेश्वर ज्योतिर्लिंग को "नागेश्वर" इसलिए कहते हैं क्योंकि यह भगवान शिव का वो रूप है, जो "नागों का राजा" या "नागों का ईश्वर" माना जाता है. "नाग" मतलब सांप और "ईश्वर" मतलब भगवान. नागेश्वर का मतलब है शिव का वो रूप, जो सांपों पर राज करता है और भक्तों को हर तरह के जहर (शारीरिक और मानसिक) से बचाता है. यह मंदिर द्वारका, गुजरात में है और भक्त यहां शांति व आशीर्वाद के लिए आते हैं.
मंदिर की खास बातें
मंदिर में त्रि-मुखी रुद्राक्ष के आकार का शिवलिंग है, जिस पर चांदी का सांप बना है. यह लगभग 40 सेमी ऊंचा और 30 सेमी चौड़ा है. मंदिर के बाहर भगवान शिव की 25 मीटर (80 फीट) ऊंची मूर्ति है, जो ध्यान की मुद्रा में है. इसे दूर से देखा जा सकता है. यह मंदिर काले पत्थर से बना है, जिसमें सुंदर नक्काशी और संगमरमर की जालियां हैं. यह 110 फीट ऊंचा है और पश्चिमी व वैदिक शैली में बना है. शिवलिंग का मुंह दक्षिण की ओर और गोमुखम (जल चढ़ाने की जगह) पूर्व की ओर है, जो बहुत खास है.
मंदिर से जुड़ी पौराणिक कहानी
शिव पुराण के अनुसार, प्राचीन समय में दारुकावन (देवदार वन) में दारुक नाम का एक क्रूर राक्षस रहता था. उसकी पत्नी दारुकी को माता पार्वती से वरदान मिला था, जिसके कारण वह बहुत शक्तिशाली थी. दारुक ने एक शिव भक्त व्यापारी सुप्रिया को समुद्र के नीचे दारुकावन में कैद कर लिया. सुप्रिया ने जेल में भी भगवान शिव की भक्ति नहीं छोड़ी और लगातार "ॐ नमः शिवाय" का जाप किया. उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट हुए. उन्होंने सुप्रिया को पाशुपत अस्त्र दिया, जिससे दारुक का नाश हुआ. इसके बाद माता पार्वती ने दारुकी को आशीर्वाद देकर दारुकावन को पवित्र बनाया. भगवान शिव ने इस स्थान पर हमेशा के लिए नागेश्वर ज्योतिर्लिंग के रूप में रहने का वरदान दिया. इस कथा के कारण मंदिर को "नागेश्वर" कहा जाता है, क्योंकि शिव ने सांपों से सजा रूप धारण किया था.
स्थान और यात्रा जानकारी
नागेश्वर ज्योतिर्लिंग गुजरात के द्वारका के पास समुद्र तट के समीप स्थित एक पवित्र धार्मिक स्थल है, जो लगभग 17 से 20 किलोमीटर दूरी पर है. यह स्थान अपनी शांतिपूर्ण और आध्यात्मिक महत्ता के कारण श्रद्धालुओं के बीच अत्यंत लोकप्रिय है. हवाई मार्ग से आने वाले यात्री निकटतम जामनगर हवाई अड्डे का उपयोग कर सकते हैं, जो नागेश्वर से लगभग 135 किलोमीटर दूर है. जामनगर से द्वारका तक बस या टैक्सी द्वारा यात्रा कर मंदिर पहुंचा जा सकता है. रेल मार्ग से यात्रा करने वालों के लिए द्वारका रेलवे स्टेशन सबसे सुविधाजनक पड़ाव है, जहां से स्थानीय परिवहन द्वारा मंदिर तक पहुँचना आसान है. सड़क मार्ग से भी द्वारका कई प्रमुख शहरों से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है, जिससे श्रद्धालु आराम से यहां तीर्थ यात्रा कर सकते हैं.
आध्यात्मिक महत्व
नागेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन से शारीरिक और आध्यात्मिक विष (जैसे सर्पदंश, क्रोध, पाप) से मुक्ति मिलती है. यह मंदिर खासकर उन लोगों के लिए महत्वपूर्ण है, जिनकी कुंडली में कालसर्प दोष या सर्प दोष है. सावन, महाशिवरात्रि और कार्तिक पूर्णिमा पर विशेष पूजा और मेले लगते हैं. भक्त धातु के सांप चढ़ाकर और अभिषेक करके मनोकामनाएं मांगते हैं.
धार्मिक और ज्योतिषीय महत्व
नागेश्वर ज्योतिर्लिंग, भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक, द्वारका, गुजरात में स्थित है और इसे "नागों का ईश्वर" कहा जाता है. धार्मिक दृष्टि से, यह मंदिर भक्तों को शारीरिक और आध्यात्मिक विष जैसे सर्पदंश, क्रोध, पाप और माया से मुक्ति दिलाता है, जैसा कि शिव पुराण में वर्णित है. ज्योतिषीय रूप से, यह कालसर्प दोष और सर्प दोष से पीड़ित लोगों के लिए विशेष महत्व रखता है; धातु के सांप चढ़ाने और अभिषेक से दोष निवारण होता है. सावन, महाशिवरात्रि और कार्तिक पूर्णिमा पर होने वाली पूजा और मेले भक्तों को मनोकामना पूर्ति और आंतरिक शांति प्रदान करते हैं.
नागेश्वर ज्योतिर्लिंग केवल एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि यह वह पवित्र स्थान है जहां श्रद्धा, शांति और शिव की कृपा एक साथ अनुभव होती है. अरब सागर के किनारे स्थित यह स्वयंभू शिवलिंग हजारों वर्षों से अनगिनत भक्तों की आस्था का केंद्र रहा है. यहां आने वाला हर श्रद्धालु, चाहे वह किसी भी उद्देश्य से आया हो, मानसिक शांति, दोषों से मुक्ति, या मोक्ष की तलाश में - शिव की छाया में आकर स्वयं को आध्यात्मिक रूप से समृद्ध पाता है. यदि आप जीवन में कठिनाइयों से जूझ रहे हैं, आत्मिक शांति की तलाश में हैं, या बस भगवान शिव के दिव्य दर्शन करना चाहते हैं, तो एक बार नागेश्वर धाम अवश्य आइए. यह वह स्थल है जहां न केवल आपकी प्रार्थनाएं सुनी जाती हैं, बल्कि आपको स्वयं भगवान शिव का सान्निध्य भी मिलता है.