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18 साल से नहीं बन पाई थी मां, AI की मदद से हुई प्रेग्नेंट, करना पड़ा बस इतना खर्चा!

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) की इन दिनों खूब चर्चा हो रही है, वहीं हाल ही में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) की वजह से एक कपल आख़िरकार सालों बाद वो खुशी हासिल करने वाला है, जिसके इंतज़ार में वो सालों से बैठे हैं.

05 Jul, 2025
( Updated: 05 Jul, 2025
07:24 PM )
18 साल से नहीं बन पाई थी मां, AI की मदद से हुई प्रेग्नेंट, करना पड़ा बस इतना खर्चा!
कहते हैं चमत्कार सिर्फ सपनों में ही पूरे होते हैं, लेकिन असल जिंदगी में भी चमत्कार हो सकता है, ये भी साबित हो गया है. आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) की इन दिनों खूब चर्चा हो रही है, वहीं हाल ही में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) की वजह से एक कपल आख़िरकार सालों बाद वो खुशी हासिल करने वाला है, जिसके इंतज़ार में वो सालों से बैठे हैं. 
 
AI की मदद से माता-पिता बनने जा रहा कपल
दरअसल एक कपल जो पिछले 18 सालों से संतान सुख से वंचित था, अब फाइनली आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) की मदद से माता-पिता बनने जा रहा है. न्यूयॉर्क के कोलंबिया यूनिवर्सिटी फर्टिलिटी सेंटर में विकसित STAR (Sperm Tracking and Recovery) तकनीक ने उन शुक्राणुओं को खोज निकाला, जो पारंपरिक तरीकों से नहीं मिल पाए थे. 
 
STAR तकनीक खास तौर पर एजोस्पर्मिया (वीर्य में शुक्राणु न होना) से पीड़ित पुरुषों के लिए वरदान है. इसकी इंस्पिरेशन स्पेस रिसर्च से ली गई है. सेंटर के निदेशक डॉ. ज़ेव विलियम्स ने कहा, "हम ब्रह्मांड में जीवन खोजने वाली तकनीक को अब पृथ्वी पर जीवन रचने के लिए उपयोग कर रहे हैं.”
 
कैसे काम करती है STAR?
हाई-रिजॉल्यूशन इमेजिंग के जरिए वीर्य सैंपल की 8 मिलियन फ्रेम्स को एक घंटे से कम समय में स्कैन किया जाता है. AI ने इस दंपति के सैंपल में तीन जीवित शुक्राणु खोजे, जो पारंपरिक माइक्रोस्कोप से नहीं दिखे. इन शुक्राणुओं को माइक्रो-रोबोट द्वारा सावधानी से निकाला गया, ताकि 
उनकी गुणवत्ता बनी रहे. IVF प्रक्रिया के तहत इन शुक्राणुओं को महिला के अंडाणुओं के साथ मिलाया गया. अब वह महिला 5 महीने की गर्भवती है और दिसंबर 2025 में शिशु को जन्म दे सकती है.
 
महत्व और लागत
STAR तकनीक वर्तमान में केवल कोलंबिया यूनिवर्सिटी में उपलब्ध है. इसकी लागत लगभग 3,000 डॉलर (करीब 2.5 लाख रुपये) है, जो पारंपरिक IVF से सस्ती है. 
 
शुक्राणु संख्या में कमी की वजहें
अमेरिका में 10-15% पुरुष बांझपन से जूझ रहे हैं. विश्व स्तर पर शुक्राणु संख्या में कमी की वजहें मोटापा, खराब जीवनशैली, खानपान, और प्रदूषण हैं. 

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