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संजय गांधी की मौत के बाद मलबे के पास दो बार जाकर क्या खोज रहीं थीं पीएम इंदिरा ?

भारतीय राजनीति के सबसे अनसुलझे सवाल का जवाब, आख़िर बेटे की मौत के बाद घटना वाली जगह पर 2 बार क्यों गई PM ? बेटे की मौत के 72 घंटे बाद जब रोई PM तो क्या बोलती रही ? संजय गांधी की मौत और विमान दुर्घटना वाली जगह पर इंदिरा के 2 बार जाने का सच क्या है ? विस्तार से जानिए सबकुछ

11 Jul, 2025
( Updated: 11 Jul, 2025
01:18 PM )
संजय गांधी की मौत के बाद मलबे के पास दो बार जाकर क्या खोज रहीं थीं पीएम इंदिरा ?

23 जून 1980, ये वो मनहूस दिन था, जब आसमान से आफ़त टूटी थी और गांधी परिवार पर ऐसा दुख पड़ा था, जिसका ज़ख़्म कभी नहीं भर सकता, ये ज़ख़्म एक माँ-पिता, भाई बहन के लिए इतना दुखदायी था कि आज भी उसे याद करते हुए बरबस ही आँखों से आंसू निकल पड़ते है, क्योंकि ये वो तारीख़ थी, जिस दिन देश के सबसे ताकतवर परिवार पर दुखों का पहाड़ टूटा था और तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के बेटे संजय गांधी की मौत हो गई थी

भारतीय राजनीति के इतिहास में कई ऐसी घटनाएं घटी हैं, जिसकी चर्चा समय- समय पर होती रही है, इनमें से एक है संजय गांधी की मौत, संजय गांधी की मौत गांधी परिवार के लिए बहुत बड़ी त्रासदी थी, प्लेन क्रैश में एक तेज़ तर्रार नेता का यूँ चले जाना बहुत बड़ा आघात था, वो हादसा था या साजिश इसकी गुत्थी सही से कभी सुलझ ही नहीं पायी, लेकिन इतना जरुर रहा कि, उसके बाद कई राजनीतिक समीकरण बदल गए, या यूँ  कहें बतौर नेता संजय गांधी का जाना कांग्रेस के लिए सबसे बड़ी त्रासदी बन थी

सबसे बड़ा सवाल आज भी यही है कि, आख़िर उस दिन हुआ क्या था, क्या संजय गांधी के पास प्लेन उड़ाने का अनुभव नहीं था, या फिर कोई बड़ी साज़िश थी, ये तमाम सवाल संजय गांधी की मौत के साथ ही दब के रह गए 

संजय गांधी पहली बार 21 जून 1980 को पिट्स उड़ा रहे थे, इस दिन सफल तरीक़े से पिट्स उड़ाने के बाद उन्होंने 22 जून को फिर उड़ान भरी, इस दिन पत्नी मेनका गांधी, विशेष सहायक आरके धवन और धीरेंद्र ब्रह्मचारी उनके साथ थे, ये उड़ान भी सफल रही, इसके बाद आया 23 जून यानी दुर्घटना वाला दिन, संजय गाँधी सुबह 7 बजे उठे और कार लेकर दिल्ली फ्लाइंग क्लब के लिए निकल लिए, 23 जून की उड़ान के लिए पहले से तय था कि उनके साथ माधवराव सिंधिया उड़ान भरेंगे… लेकिन घर से कार लेकर निकले संजय गांधी का रास्ते में मूड बदला और वो माधवराव सिंधिया को छोड़कर दिल्ली फ्लाइंग क्लब के पूर्व इंस्ट्रक्टर सुभाष सक्सेना के घर पहुंच गए, और ये तय हुआ कि संजय गांधी और सुभाष सक्सेना उड़ान भरेंगे, इस उड़ान के बार में द रेड साड़ी किताब में स्पेनिश लेखर जेवियर मोरो लिखते हैं- दिल्ली फ्लाइंग क्लब के पूर्व इंस्ट्रक्टर सुभाष सक्सेना जानते थे कि संजय को अनुभव नहीं है, इसलिए वो उड़ान पर जाने से बचना चाहते थे, लेकिन संजय की जिद के आगे वो हार मान गए, इसके बाद 7 बजकर 58 मिनट पर पिट्स में दोनों ने उड़ान भरी, नई दिल्ली के आकाश में संजय 12 मिनट तक उड़ते रहे, फिर वह सफदरगंज रोड के उस मकान पर उड़े, जहां एक घंटा पहले इंदिरा गांधी ने उनसे कहा था, "सावधान रहना, सब कहते हैं कि तुम हड़बड़ी में काम करते हो"

किसे पता था कि इंदिरा गांधी का संजय गांधी पर संदेह यूँ सच साबित हो जाएगा, और संजय गांधी की 23 जून 1980 की उड़ान अधूरी रह जाएगी जो कभी नहीं पूरी होगी, लेकिन ये भी सच है कि, इंदिरा गांधी बेटे की मौत के 72 घंटे बाद रोई थी, आख़िरी ऐसा क्यों ?

संजय गांधी की मौत का सदमा बर्दाश्त के बाहर था, सोनिया गांधी उस वक़्त इटली में थी, ख़बर मिली तो आनन फ़ानन में भारत आई, राजीव गांधी भाई के जाने से टूट गए थे, माँ इंदिरा गांधी का बुरा हाल था, इतना बुरा हाल कि वो रो भी नहीं पा रही थी, बेटे के जाने के ग़म में इंदिरा के आंसू सूख गए थे, लेकिन संजय की मौत के 72 घंटे बाद जब वो रोई तो ख़ुद को रोक नहीं पायी, दरअसल बेटे की मौत के 72 घंटे बाद इंदिरा गांधी पार्टी के नेताओं के साथ कार्यालय में बैठी थीं, इसी मीटिंग में संजय का नाम आया तो फफक-फफक कर रो पड़ीं, ये पहली बार था जब इंदिरा गांधी का आंसू लोगों के सामने नजर आया,  उन्होंने किसी तरह खुद को संभाला, इसके बाद 27 जून को जब वो पहली बार अपने दफ्तर पहुंचीं, तब उन्होंने कहा था, "लोग तो आते जाते हैं, पर राष्ट्र सदैव जीवंत रहता है"

वहीं, जिस जगह संजय का विमान दुर्घटनाग्रस्त हुआ, वहां दूसरी बार इंदिरा गांधी क्या खोजने गईं थीं ? तो इसका कुछ बहुत प्रमाण नहीं मिलता, हां दावे बहुत सारे किए गए, लेकिन सच क्या है पता नहीं, तवलीन सिंह की किताब "दरबार" के अनुसार…. इंदिरा गांधी दुर्घटना के बाद घटनास्थल पर गई थीं और संजय की जेब में कुछ तलाश रही थीं, संभवतः एक बैंक लॉकर की चाबी, घड़ी और डायरी 

हालाँकि इसमें कितना सच है ये कह पाना बेहद मुश्किल है, कुछ स्रोतों में उल्लेख है कि वह मलबे के पास दो बार गईं, लेकिन यह नहीं बताया गया कि वह क्या ढूंढ रही थीं

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