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आजादी के दिन भारत का हिस्सा नहीं थीं ये रियासतें, कुछ को पाकिस्तान में शामिल करने की थी योजना, फिर कैसे हिंदुस्तान में हुआ इनका विलय, जानें

15 अगस्त 1947 को जब भारत आज़ाद हुआ, तब कुछ अहम रियासतें तुरंत देश का हिस्सा नहीं बनीं. इनमें से कुछ पाकिस्तान में जाने की सोच रही थीं, तो कुछ स्वतंत्र रहना चाहती थीं. लेकिन आगे की घटनाओं ने हालात बदल दिए और ये शहर भी भारत के नक्शे में शामिल हो गए.

15 अगस्त 1947 को आज़ादी के समय ब्रिटिश भारत की संप्रभुता समाप्त हो गई, और रियासतों को स्वतंत्र रहने, भारत या पाकिस्तान में जाने का विकल्प मिला. अधिकांश रियासतों ने भारत में विलय किया, लेकिन कुछ ने विलंबित किया या प्रथम चरण में ही अलग राह चुनी. आइए, विस्तार से जानते हैं वे पाँच:
 
जूनागढ़ 
  • जूनागढ़, गुजरात का एक प्रमुख रियासत, 15 अगस्त 1947 तक भारत का हिस्सा नहीं था और उसका नवाब पाकिस्तान में शामिल होने का ऐलान कर चुका था.
  • इस ऐलान के बाद भारत ने तत्काल विरोध जताया और जनता की इच्छा जानने के लिए जनमत-संग्रह कराने का निर्णय लिया. फरवरी 1948 में हुए जनमतदान में 91% मतदानदाताओं ने भारत में विलय का समर्थन किया, जिसके बाद जूनागढ़ भारत में शामिल हो गया.

हैदराबाद 

  • हैदराबाद उस समय सबसे बड़ा रियासत था, जिसके पास अपनी सेना, हवाई सेवा, मुद्रा और दूरसंचार था; लेकिन निआज़ी ने प्रारंभिक इच्छा व्यक्त की कि यह स्वतंत्र रहना चाहता है.
  • भारत सरकार ने इस फैसले को अस्वीकार करते हुए सितंबर 1948 में “ऑपरेशन पोलो” नामक सैन्य कार्रवाई शुरू की, जिसके चलते हैदराबाद सैन्य रूप से भारत में विलय हो गया. 
जम्मू और कश्मीर
  • महाराजा हरि सिंह ने स्वतंत्रता या विलंबित निर्णय का विकल्प चुना और कुछ समय तक स्थिति-वर्तमान (कंडीशन ऑफ स्टैंडस्टिल) बनाए रखा.
  • पाकिस्तान-प्रायोजित आक्रमण के दबाव में, महाराजा ने 26 अक्टूबर 1947 को भारत में विलय कर लिया. इस कदम ने सम्भवतः पहला भारत–पाकिस्तान युद्ध झोंक दिया और आज तक कश्मीर विवाद की जड़ बना रहा.
भोपाल
  • भोपाल रियासत ने भी स्वतंत्र रहने की आशा जताई और 1947 तक किसी भी मुल्क (भारत या पाकिस्तान) से विलय नहीं किया.
  • एक लोक आंदोलन और दबाव के बाद, अप्रैल 1949 में नवाब हामिदुल्ला खान ने भारत में विलय के लिए सहमति दी और 1 जून 1949 को यह रियासत भारत का हिस्सा बनी.  
ट्रावनकोर 
  • दक्षिण भारत की यह रियासत स्वतंत्र रहने की योजना बना रही थी; इसमें ट्रावनकोर ने शुरुआत में भारत में विलय से इंकार किया था.
  • हालांकि बाद में भारत सरकार के समझौतों और राजनीतिक संवादों के चलते ट्रावनकोर ने भारत में विलय कर लिया, और बाद में यह केरल राज्य का हिस्सा बना.
एकता और बाधाओं की कहानी
 
ये पाँच रियासतें—जूनागढ़, हैदराबाद, जम्मू और कश्मीर, भोपाळ, ट्रावनकोर—विलय प्रक्रिया में मुश्किलें पेश करती थीं और उनमें से प्रत्येक का अपना इतिहास, भौगोलिक स्थिति और राजनीतिक दृष्टिकोण था. इन उदाहरणों से साफ़ होता है कि सार्वभौम भारतीयता सिर्फ प्रशासनिक फैसला नहीं, बल्कि जनभावना, रणनीतिक स्थिरता और राजनीतिक समझदारी का परिणाम था.

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