Akhilesh Yadav का एक बयान और फिर जिंदा हुआ 30 साल पुराना ‘कांड’ !
BSP की नींव रखने वाले कांशीराम ने क्यों कहा था मुलायम सिंह यादव एक पंचायत लेवल के आदमी हैं जिसे मैंने मुख्यमंत्री बना दिया और आज तीस साल बाद उनके इस बयान की क्यों हो रही चर्चा, देखिये ये खास रिपोर्ट !

उत्तर प्रदेश की राजनीति में सपा और बसपा की दोस्ती कोई नई बात नहीं. नब्बे के दशक में जहां मुलायम और कांशीराम की दोस्ती के चर्चे थे. तो वहीं साल 2019 के लोकसभा चुनाव दे दौरान यूपी वालों ने बुआ भतीजे यानि अखिलेश और मायावती की सियासी दोस्ती भी देखी है. लेकिन अब हालात बदल गये हैं. और जिस बसपा के दम पर साल 2019 के लोकसभा चुनाव में सपा 5 सीटों पर जीत हासिल की थी. अब उसी बसपा के संस्थापक कांशीराम पर निशाना साधते हुए सपाई मुखिया अखिलेश यादव उन पर किये गये मुलायम के अहसान की याद दिला रहे हैं.
सपाई गढ़ इटावा में खड़े होकर अखिलेश यादव 1991 की याद दिलाते हुए बता रहे थे कि कैसे मुलायम सिंह यादव और इटावा के लोगों ने कांशीराम को चुनाव जिताया था. जिसके बाद अब सोशल मीडिया पर कांशीराम का एक बयान तेजी से वायरल हो रहा है. जब एक इंटरव्यू में उन्होंने तत्कालीन सपा अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव के खिलाफ बयान देते हुए कहा था कि "मुझे ऐसा लगता है कि वो पंचायत लेवल का आदमी था मुझे कुछ आखिरी दिनों में लगने लगा है कि पंचायत लेवल के आदमी को मैंने चीफ मिनिस्टर बना दिया, लेकिन उसकी दिलचस्पी पंचायत में ज्यादा है"
पत्रकार सचिन सिंह गौर ने कांशीराम के इसी बयान को सोशल मीडिया पर शेयर करते हुए लिखा "पंचायत लेवल के आदमी का बेटा कह रहा है हमने कांशीराम को सबसे पहले लोकसभा भेजा"
अखिलेश पर पलटवार के तौर पर कांशीराम के जिस बयान को सोशल मीडिया पर शेयर किया जा रहा है ये बयान उन्होंने साल 1995 में दिया था जब गेस्ट हाउस कांड के बाद सपा और बसपा अलग हो गई थीं.और कांशीराम ने बीजेपी की मदद से यूपी में सरकार बनाई तो वहीं पहली बार मायावती यूपी की मुख्यमंत्री बनीं.
दरअसल 6 दिसंबर 1992 को अयोध्या में हुए बाबरी विध्वंस के बाद यूपी की कल्याण सिंह सरकार को बर्खास्त कर दिया गया था. और जब 1993 में विधानसभा चुनाव हुआ तो सपा बसपा दोनों ने मिलकर चुनाव लड़ा. और जीत कर सत्ता में भी लौटे. लेकिन मुख्यमंत्री का पद मुलायम सिंह यादव ने संभाला. हालांकि ये गठबंधन सरकार ज्यादा दिन तक नहीं चल सकी. जल्द ही सपा बसपा में मनमुटाव की खबरें आने लगीं और एक दिन ऐसा आया जब दो जून 1995 को मायावती ने सरकार से समर्थन वापस लेने का ऐलान कर दिया. तो वहीं दूसरी तरफ मीराबाई गेस्ट हाउस में बीएसपी विधायकों के साथ मायावती बैठक करने लगीं. इस बात की भनक जैसे ही सपाई नेताओं को मिली उन्होंने गेस्ट हाउस पर हमला बोल दिया. जिसे आज गेस्ट हाउस कांड के नाम से जाना जाता है. इस गेस्ट हाउस कांड के बाद मुलायम सरकार गिर गई और बीजेपी के समर्थन से पहली बार मायावती यूपी की मुख्यमंत्री बनीं. ये करीब तीस साल पुराने इतिहास के पन्ने इसलिये पलटे जा रहे हैं क्योंकि 12 अप्रैल को ही अखिलेश यादव ने बयान दिया कि कांशीराम को कहीं से जीत नहीं मिल पा रही थी उन्हें मुलायम और इटावा वालों की वजह से पहली बार लोकसभा चुनाव जीत मिली थी. जिस पर डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य ने भी पलटवार करते हुए कहा कि "आधा सच बताने की बीमारी से ग्रस्त हैं सपा बहादुर श्री अखिलेश यादव, सच यह है कि 1991 के लोकसभा चुनाव में नेताजी ने अगर इटावा में मान्यवर कांशीराम की मदद की तो मान्यवर कांशीराम ने भी जसवंतनगर से बसपा का उम्मीदवार न देकर नेताजी को जिताने में मदद की थी। लेकिन इससे बड़ा सपा का काला सच यह है कि 2 जून, 1995 को सपा के गुंडों ने लखनऊ के स्टेट गेस्टहाउस में दलितों की सबसे बड़ी नेता बहन मायावती की आबरू लूटने और उनकी हत्या की कोशिश की थी। लेकिन दलितों के सम्मान में सदा समर्पित भाजपा ने सपाई गुंडों को छठी का दूध याद दिलाकर उसके मंसूबों को विफल कर बहन जी की लाज और जीवन दोनों को बचाया था। ऐसे ही अपने पालतू गुंडों की फौज पर श्री अखिलेश जी आज भी इतराते हैं।सपा पिछड़ों दलितों वंचितों की असल दुश्मन है"
राजधानी लखनऊ में 1995 में हुए गेस्ट हाउस कांड की चर्चा देश की राजनीति में आज भी होती है. और जब भी होती है तो समाजवादी पार्टी को ही कठघरे में खड़ा किया जाता है. क्योंकि सपा नेताओं पर ही मायावती पर हमले के आरोप लगे थे. हालांकि धीरे धीरे वक्त बदला. और वक्त के साथ राजनीति भी बदल गई. जब साल 2019 के लोकसभा चुनाव में अखिलेश यादव और मायावती की पार्टी यूपी में एक साथ चुनाव लड़ी और 15 सीटों पर जीत भी हासिल की. हालांकि अब दोनों ही पार्टियां अलग हो गई हैं.इसी बात से समझ सकते हैं कि राजनीति एक ऐसा खेल है जहां कभी भी कुछ भी हो सकता है.