पहले पति से नहीं हुआ था तलाक… महिला ने लिव इन पार्टनर से मांगा हर्जाना, इलाहाबाद हाई कोर्ट ने दे दिया बड़ा आदेश
इलाहाबाद हाई कोर्ट के जस्टिस मदन पाल ने कानपुर की एक महिला की याचिका पर सुनवाई की थी. महिला करीब 10 साल से लिव इन रिलेशनशिप में रह रही थी.
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Allahabad High Court Verdict: अगर किसी महिला की पहली शादी अभी तक खत्म नहीं हुई है और वह किसी दूसरे शख्स के साथ कई सालों में रह रही है. तो वह उस शख्स से भरण पोषण नहीं मांग सकती. ये फैसला है इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सुनाया है. महिला ने जिला कोर्ट के आदेश के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील की थी लेकिन यहां उसे बड़ा झटका लगा. कोर्ट का ये फैसला लिव इन रिलेशनशिप में हर्जाना और पहली शादी की वैधता से जु़ड़ा है क्या है पूरा मामला समझते हैं.
शादीशुदा महिला को पहली शादी जारी रखने पर लिव इन पार्टनर से भरण पोषण का हक नहीं मिलेगा. भले ही महिला कई सालों से लिव इन रिलेशनशिप में रह रही हो और पहले पति से रिश्ते पूरी तरह खत्म कर दिए हों. जब तक महिला का तलाक नहीं हो जाता वह धारा 125 क्रिमिनल प्रोसीजर कोड के तहत भरण-पोषण का दावा नहीं कर सकती.
क्या है पूरा मामला?
इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस मदन पाल ने कानपुर की एक महिला की याचिका पर सुनवाई की थी. महिला करीब 10 साल से लिव इन रिलेशनशिप में रह रही थी. याचिका में उसने लिव इन पार्टनर से भरण पोषण की मांग की थी. महिला ने कहा था कि वह पिछले दस सालों से लिव इन रिलेशनशिप पति पत्नी की तरह रह रही थी. महिला ने पार्टनर पर शादी का झूठा वादा कर धोखा देने का भी आरोप लगाया है. कोर्ट में महिला के पार्टनर ने भी अपना पक्ष रखा. उसने कहा, महिला पहले से शादीशुदा है और उसने अपने पति से कानूनी रूप से तलाक नहीं लिया है.
महिला की याचिका पर कोर्ट ने क्या कहा?
कोर्ट ने महिला की याचिका को खारिज करते हुए कहा, मान लें कि शादी हुई भी हो, तो भी यह अवैध होगा. क्योंकि पहली शादी से कानूनी रूप से तलाक नहीं लिया गया है. लंबे समय तक लिव इन में रहने से पत्नी का वैधानिक दर्जा नहीं मिलता.
इस दौरान कोर्ट ने हिंदू विवाह अधिनियम का भी हवाला दिया. जस्टिस मदन पाल ने कहा, हिंदू विवाह अधिनियम के तहत जीवन साथी के जीवित रहते किया गया विवाह अमान्य माना जाता है. ऐसी मांगे मानी गई तो हिंदू पारिवारिक कानून की नैतिक और सांस्कृतिक नींव की कमजोर होगी. अगर समाज में यह प्रथा स्वीकार की जाती है कि महिला एक व्यक्ति से कानूनी रूप से विवाहित रहते हुए दूसरे व्यक्ति के साथ रह सकती है और बाद में उससे भरण-पोषण मांग सकती है, तो धारा 125 CrPC का मूल उद्देश्य और विवाह संस्था की कानूनी और सामाजिक गरिमा कमजोर हो जाएगी.
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कोर्ट में महिला के वकील ने दावा किया था कि लिव इन पार्टनर के कागजों में महिला का नाम दर्ज है. जिसमें आधार और पासपोर्ट शामिल हैं. वकील ने दावा किया कि समाज के सामने ये रिश्ता पति पत्नी का ही था, बाद में उसी शख्स ने महिला को उसके बच्चों के साथ घर से निकाल दिया था. महिला ने लिव इन पार्टनर पर क्रूरता, उत्पीड़न और धोखे का आरोप लगाया. लेकिन कोर्ट ने इसे शादी मानने से तो इंकार कर दिया. बात ये भी थी कि पहली शादी कानूनी रूप से नहीं टूटी ऐसे में सवाल ही नहीं कि महिला को लिव इन पार्टनर से भरण पोषण मिलेगा.
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