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‘ब्रेस्ट पकड़ना, नाड़ा खोलना रेप की कोशिश नहीं’ HC का वो फैसला जिस पर भड़क गया सुप्रीम कोर्ट, दिया सख्त आदेश

नाबालिग से रेप की कोशिश मामले में हाईकोर्ट के रुख पर सुप्रीम कोर्ट ने कड़ी नाराजगी जताई है. इस मामले में कोर्ट ने अब बड़ा फैसला सुनाया है.

09 Dec, 2025
( Updated: 09 Dec, 2025
12:51 PM )
‘ब्रेस्ट पकड़ना, नाड़ा खोलना रेप की कोशिश नहीं’ HC का वो फैसला जिस पर भड़क गया सुप्रीम कोर्ट, दिया सख्त आदेश

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court ने इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) के एक फैसले को पलटते हुए कड़ी फटकार लगाई है. फैसला नाबालिग पीड़िता से जुड़ा है जिसके साथ दुष्कर्म की कोशिश की गई. इस सवेंदनशील मामले में हाईकोर्ट का बेहद असंवेदनशील रवैया सामने आया था. 

20 मार्च 2025 को इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस राम मनोहर मिश्र ने एक फैसले में कहा था, ‘किसी नाबालिग लड़की के ब्रेस्ट को पकड़ना, उसके पजामे का नाड़ा तोड़ना या उसे घसीटकर पुलिया के नीचे ले जाने की कोशिश करना. यह रेप या रेप की कोशिश का मामला नहीं बनता.’ इलाहाबाद हाईकोर्ट के इस फैसले पर कानून के जानकारों समेत सामाजिक कार्यकर्ता और अलग-अलग क्षेत्र से जुड़ीं महिलाओं ने कड़ा ऐतराज जताया था. अब सुप्रीम कोर्ट ने खुद संज्ञान लेते हुए नाराजगी जताई है. 

सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा? 

8 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट ने HC के इस फैसले को पलट दिया. चीफ जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की बेंच ने कहा, हाई कोर्ट की यह टिप्पणी न केवल असंवेदनशील है, बल्कि इसका चीलिंग इफेक्ट पड़ता है. मतलब ऐसी टिप्पणियां पीड़िताओं को शिकायत वापस लेने या गलत बयान देने के लिए मजबूर कर सकती हैं. 
SC ने कहा- हम हाईकोर्ट के आदेश को खारिज कर रहे हैं. अब इस केस में धारा 376 यानी रेप और POCSO एक्ट की धारा 18 (यानी रेप की कोशिश) के तहत ही सुनवाई होगी.

हाईकोर्ट के लिए गाइडलाइन जारी कर सकता है SC

चीफ जस्टिस सूर्यकांत ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस राम मनोहर मिश्र को सख्त लहजे में कहा, अदालतों को, खासकर हाई कोर्ट को फैसले लिखते समय और सुनवाई के दौरान ऐसी दुर्भाग्यपूर्ण टिप्पणियों से हर हाल में बचना चाहिए. ऐसी टिप्पणियां पीड़ित और समाज पर भयावह प्रभाव डालती हैं. CJI सूर्यकांत ने संकेत दिए कि ऐसी असंवेदनशील टिप्पणियों के मध्यनजर सुप्रीम कोर्ट देश की सभी अदालतों (विशेष तौर पर हाईकोर्ट) के लिए विस्तृत गाइडलाइंस जारी कर सकता है, ताकि जज यौन हिंसा से जुड़े मामलों में ऐसी टिप्पणी न करें जो पीड़ित के सम्मान को ठेस पहुंचाए. 

क्या था इलाहाबाद हाईकोर्ट का वो विवादित फैसला? 

दरअसल, यूपी के कासगंज की एक महिला ने 12 जनवरी, 2022 को एक शिकायत दर्ज कराई थी. महिला ने आरोप लगाया कि वह अपनी 14 साल की बेटी के साथ कासगंज में अपनी देवरानी के घर से लौट रही थीं. रास्ते में गांव के रहने वाले पवन, आकाश और अशोक नाम के लड़कों ने घर छोड़ने के बहाने उसकी बेटी को बाइक पर बिठा लिया. फिर रास्ते में एक पुलिया के पास बाइक रोककर नाबालिग का ब्रेस्ट को टच किया. फिर पजामे का नाड़ा तोड़ा. इसके बाद गलत इरादे से उसे पुलिया के नीचे खींचकर ले जाने की कोशिश की. 

महिला की FIR के मुताबिक, नाबालिग की चीख पुकार के बाद मौके पर लोग वहां आ पहुंचे. ऐसे में आरोपी डरकर वहां से भाग निकले. महिला का आरोप है कि मामले में कई दिनों तक को पुलिस ने केस ही दर्ज नहीं किया. इसके बाद उन्हें कोर्ट का रुख करना पड़ा. 

कोर्ट ने निचली अदालत को आदेश दिया कि पॉक्सो एक्ट के तहत चल रहे आरोपियों पर केस में संशोधन किया जाए. यानि अगर आरोपी ने नाबालिग के ब्रेस्ट को टच किया या पकड़ा है, उसका नाड़ा खोला या उसे पुल से खींचने की कोशिश की तो ये रेप की कोशिश नहीं होगी. अगर रेप या रेप की कोशिश का मामला दर्ज है तो उसे संशोधित किया जाए. 

कोर्ट ने आरोपियों को दी थी राहत 

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने इस फैसले के आधार पर कासगंज के तीन आरोपियों को बड़ी राहत देते हुए उनकी तरफ से दाखिल क्रिमिनल रिवीजन की अर्जी मंजूर कर ली. अपने फैसले में कोर्ट ने कहा कि, आरोपियों के खिलाफ रेप की कोशिश और पॉक्सो एक्ट की धारा 18 के तहत जारी किया गया समन गलत है. कोर्ट ने निचली अदालत को आदेश दिया कि वह आदेश में बदलाव करते हुए आरोपियों पर 354 (b) (नंगा करने के इरादे से हमला या आपराधिक बल का प्रयोग ) और POCSO एक्ट की धारा 9/10 (गंभीर यौन हमला) के तहत मुकदमा चलेगा. 

BJP सांसद समेत कई संगठनों ने जताया था विरोध 

महिला आयोग की पूर्व अध्यक्ष और BJP की राज्यसभा सांसद ने जस्टिस राम मनोहर नारायण मिश्रा की टिप्पणी पर ऐतराज जताया था. उन्होंने कहा था, अगर जज ही संवेदनशील नहीं होंगे तो महिलाएं और बच्चिया क्या करेंगी ? उन्हें किसी भी कृत्य के पीछे की मंशा को देखना चाहिए. इसके अलावा कांग्रेस प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत, कानूनी एक्सपर्ट, महिला संगठनों राजनीतिक दलों ने इसे न्याय की सोच पर कंलक करार दिया था. 

SC में उठा हाईकोर्ट की विवादित टिप्पणियों का मुद्दा

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इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस राममनोहर मिश्र के साथ-साथ देश की अन्य अदालतों की विवादित टिप्पणियों का मुद्दा भी सुप्रीम कोर्ट में उठा. इस केस की सुनवाई के दौरान महिला वकील ने केरल हाईकोर्ट, राजस्थान हाईकोर्ट, कलकत्ता हाईकोर्ट के विवादित स्टेटमेंट का भी जिक्र किया. इसी के बाद सुप्रीम कोर्ट ने गाइडलाइन जारी करने की बात कही. 

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