अफसर नहीं कहलाएंगे ‘माननीय’… इलाहाबाद हाईकोर्ट की सख्त टिप्पणी, सरकार से मांग लिया जवाब
अदालत ने साफ-साफ कह दिया है, नहीं बाबू… आपको ‘माननीय’ नहीं कहा जा सकता है. आप अधिकारी हैं. यानी नेताओं का मनभावन शब्द वही इस्तेमाल कर पाएंगे.
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नेताओं का मनभावन शब्द ‘माननीय’ अब अफसरशाही का हिस्सा नहीं बनेगा. यानी जिन अफसर, बाबुओं को माननीय कहलवाना पसंद है उन्हें कोर्ट ने निराश कर दिया है. अदालत ने साफ-साफ कह दिया है, नहीं बाबू… आपको ‘माननीय’ नहीं कहा जा सकता है. आप अधिकारी हैं.
दरअसल, एक याचिका पर सुनवाई करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) अफसरों को माननीय कहे जाने पर कड़ी आपत्ति जताई है. हाईकोर्ट ने कहा, माननीय शब्द किसी नौकरशाह या अफसर के लिए नहीं है. कोर्ट ने इसको लेकर UP सरकार से भी जवाब मांगा है.
क्या है पूरा मामला और कोर्ट की टिप्पणी?
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि माननीय शब्द का इस्तेमाल केवल मंत्रियों और संप्रभु अधिकारियों के मामले में किया जाएगा. ये कोई पहले ही बता चुका है. माननीय शब्द अधिकारियों के मामले में लागू नहीं होता है. जस्टिस अजय भनोट और जस्टिस गरिमा प्रसाद की बेंच ने योगेश शर्मा नाम के शख्स की याचिका पर ये टिप्पणी की.
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दरअसल, इटावा के DM की ओर से कानपुर के मंडलायुक्त को माननीय मंडलायुक्त के तौर पर संदर्भित किया गया था. इसमें प्रमुख सचिव को निर्देश देते हुए इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा, कोर्ट को बताएं कि क्या उन अधिकारियों के लिए कोई प्रोटोकॉल है जो अपने पदों या नाम के पहले माननीय शब्द लगा सकते हैं?
जानें कोर्ट ने पूरी टिप्पणी क्या की?
कोर्ट ने याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि यह एक सूक्ष्म लेकिन निश्चित तरीका है, जिससे संवैधानिक प्राधिकरणों और अदालतों की गरिमा कम होती है. हाल के दिनों में यह प्रवृत्ति बढ़ी है कि राज्य के अधिकारियों के पदनाम के साथ, निचले स्तर से लेकर उच्च स्तर तक, पत्राचार और आदेशों में माननीय शब्द जोड़ा जा रहा है. कोर्ट ने साफ किया कि माननीय तो मंत्री ही कहलाएंगे न कि राज्य सरकार के अधिकारी. खैर अधिकारियों को भले ही न्यायालय की ये टिप्पणी खटक रही हो, लेकिन मंत्रीगण खुश हैं. वह माननीय कहलाते रहेंगे, मान मनौव्वल करवाते रहेंगे. हालांकि अफसरशाही में माननीय शब्द का चलन न के बराबर ही है. अब कोर्ट ने इसके आधिकारिक इस्तेमाल पर बड़ी टिप्पणी कर दी है.
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