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आखिर क्यों हर साल बसंत पंचमी पर पीले रंग से सजाई जाती है निजामुद्दीन दरगाह ?

ये त्यौहार है हिन्दूओं का लेकिन फिर क्यों हर साल बसंत पंचमी पर निजामुद्दीन की दरगाह को पीले फूलों, पीली मालाओं, पीले रंग से सजाया जाता है , ये सवाल तो आपके मन में भी जरुर आता होगा लेकिन इस दरगाह पर बंसत पंचमी मनाने के पीछे भी एक रोचक कहानी है जिसे आप सभी लोगों को जानना चाहिए। इस वीडियों में आप सभी को इन सभी सवालों के जबाव मिल जाऐंगे तो जानने के लिए देखते रहे धर्म ज्ञान ।

Created By: NMF News
03 Feb, 2025
( Updated: 03 Feb, 2025
12:25 PM )
आखिर क्यों हर साल बसंत पंचमी पर पीले रंग से सजाई जाती है निजामुद्दीन दरगाह ?
क्या आपने कभी सोचा है बसंत पंचमी तो हिंदूओं का त्योहार है लेकिन फिर क्यों हर साल बसंत पंचमी पर हजरत निजामुद्दीन की दरगाह पीले फूलो से सजाई जाती है, और सकल बन फूल रही सरसों  गाने का हजरत निज़ामुद्दीन से क्या कनेक्शन है। चलिए हम आपको बताते है।

वैसे तो आपने सुना ही होगा कि हिन्दूओं के लिए बसंत पंचमी बहुत महत्वपूर्ण होती है इस दिन मां सरस्वती की पूजा की जाती है, पीला रगं, पीला खाना सब कुछ पीला ही इस्तेमाल किया जाता है।

लेकिन दिल्ली के मशहूर हजरत निज़ामुद्दीन दरगाह पर भी बसंत पंचमी खूब धूमधाम से मनाई जाती है। इस दिन दरगाह को पीले रंग से सजाया जाता है। अब ऐसा किया क्यों जाता है, आख़िर क्यों एक हिंदू त्योहार को मुस्लिम दरगाह पर मनाया जाता है।


कहते हैं कि एक बार हजरत निज़ामुद्दीन बीमार थे। उनके भांजे ने अल्लाह से दुआ माँगी कि मेरे सुल्तान यानी हजरत निज़ामुद्दीन को उनकी उम्र लग गए, कुछ दिन बाद हजरत निज़ामुद्दीन स्वस्थ हो गए लेकिन उनके भांजे की मौत हो गई। जिसके बाद हजरत निज़ामुद्दीन ने एकांतवास में चले गए, उन्होंने लोगों से मिलना, हंसना, बात करना बंद कर दिया। 

अपने उस्ताद को इस हाल में देखकर उनके शागिर्द अमीर खुसरो को अच्छा नहीं लगा, वो अपने गुरु अपने मुर्शद को हो हंसाने के बहाने ढूँढने लगे। 
एक दिन उन्होंने देखा कि कुछ लोग हाथों में पीले फूल लेकर  गले में माला डालकर और ढोल बजाते गीत हुए जा रहे हैं उन्होंने उनसे पूछा कि आप पीले कपड़े पहनकर, पीले फूल और ढोल बजाते हुए कहा जा रहे है तो उन्होंने बताया कि ये हमारे भगवान को बहुत पसंद है इसलिए उन्हें ये अर्पित करने जा रहे हैं फिर क्या अमीर खुसरों को अपने गुरु को हंसाने का उन्हें मनाने का एक मौक़ा मिल गया। 

खुसरों ने कुछ पीले फूल लिए, अपना दस्तार यानी पगड़ी खोली, बाल बिखेरे, कमर पर पटका बांधा और सकल बन फूल रही सरसों गाते हुए हजरत निज़ामुद्दीन औलिया के हुजरे यानी कमरे के सामने पहुँचे, हजरत ने जब अपने शागिर्द को इस हाल में देखा तो हंसी नहीं रोक पाए, तब से ही हजरत निज़ामुद्दीन की दरगाह पर बसंत पंचमी का त्यौहार खूब धूमधाम से मनाया जाता है।

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