महाकुंभ की धरती से अधोरी कालपुरुष बाबा ने ऐसा क्या बोला जो कांपने लगे हैं शक्तिशाली देश ?
महाकुंभ आकार एक अघोरी बाबा ने विश्व को भविष्य का एक ऐसा आईना दिखाया है, जिसे देख हर कोई भयभीत है। अबकी बार कालपुरुष नाम के एक अघोरी बाबा ने प्रकृति की जिस दबी आवाज़ को सुनाना चाहा है, उसमें विनाश ही विनाश है। देखिये इस पर हमारी ये ख़ास रिपोर्ट..

इन दिनों संगम नगरी प्रयागराज विश्व का सेंटर ऑफ अट्रैक्शन बना हुआ है। अबकी बार महाकुंभ की भव्यता और दिव्यता ऐसी है कि, यूरोप से लेकर इस्लामिक वर्ल्ड की नज़रें संगम की रेती पर आकर गढ़ चुकी है। यहाँ आकर हर कोई ख़ुद को धन्य समझ रहा है।साधु-संतों के इस मेले में होने वाली प्रत्येक घटना इंटरनेश्नल मीडिया की सुर्ख़ियाँ बन रहीं है। यहाँ से उठने वाली हर एक आवाज़ विश्व में गूंज रही है, इसी कड़ी में महाकुंभ आकार एक अघोरी बाबा ने विश्व को भविष्य का एक ऐसा आईना दिखाया है, जिसे देख हर कोई भयभीत है। अबकी बार कालपुरुष नाम के एक अघोरी बाबा ने प्रकृति की जिस दबी आवाज़ को सुनाना चाहा है, उसमें विनाश ही विनाश है, देखिये इस पर हमारी ये ख़ास रिपोर्ट..
144 साल बाद आए महाकुंभ को लेकर हर कोई उत्साहित है। इस दुर्लभ मौक़े पर दुनियाभर के साधु-संत अघोरी और नागा सन्यासी तीर्थ नगरी प्रयागराज में पहुँचे हुए है। विदेशियों से लेकर आम आदमी, मतलब ये कि मानवता का सबसे बड़ा जमावड़ा यहाँ लगा हुआ है। यहाँ जो आ रहा है, उसे मन और तन की शुद्धि प्राप्त हो रही है। आध्यात्म की शक्ति को महसूस करने के लिए और सनातन की गहराई को जानने के लिए लोग नागा और अघोरी के बीच जा रहा हैं। इन सबके बीच महाकुंभ की मिट्टी से धूनी लगाएँ एक बाबा ऐसे हैं, जिनकी ज़ुबान हर किसी की ध्यान अपनी ओर खींच रही है। डरावना रूप धारण किये और रहस्यमय जीवन जीने वाले ये हैं, बाबा कालपुरुषजो ख़ुद एक अघोरी है। ज़िंदगी के 94 साल बीता चुके हैं। 95 साल में चल रहे हैं। अपने हाथ में एक मानव खोपड़ी धारण किये हुए हैं, उसी से जल ग्रहण करते हैं और प्रकृति के संकेतों को भाँप कर भविष्य की ख़ौफ़नाक तस्वीर दिखा रहे हैं।
अघोरियों की टोली में ज़्यादातर अघोरी स्वयम् की मुक्ति पर ध्यान देते हैं, लेकिन कुछ ऐसे अघोरी भी होते हैं, जिन्हें समाज की चिंता होती है। इन्हीं अघोरियों में एक कालपुरुष बाबा,जिनकी वर्षों की तपस्या आज समाज को भविष्य का आईना दिखा रही है। हिमालय की पहाड़ियों पर अपना जीवन बिताने वाले कालपुरुष अधोरी बाबा ने महाकुंभ आकर प्रकृति के इंशारे को भाँपते हुए कुछ ऐसी भविष्यवाणियाँ की हैं, जिसमें अंत और आरंभ दोनों है।
तमाम मीडिया चैनलों पर कालपुरुष अघोरी बाबा के हवाले से भविष्यवाणियाँ की जा रही है..भविष्यवाणी में बाबा का कहना है। जो इंसान भूल जाता है, वो नदी याद रखती है। गंगा जब रोएगी, तो उसके आँसू धरती पर कहर ढाएंगे। इसकी शुरुआत हो चुकी है।मैं पिछले सात महाकुंभों में आया हूँ। इस बार संकेत अलग हैं। चिता के पास कौवे अजीब सुर में गा रहे हैं। मृत आत्माएँ बेचैन हैं।पृथ्वी अपनी साँसें बदल रही है। नदियाँ अपने रास्ते बदलेंगी, और शहरों को एहसास होगा कि वे उधार की ज़मीन पर बसे हैं। आने वाले चार साल बड़े बदलाव लेकर आएंगे।पहाड़ धीरे धीरे अपनी बर्फ छोड़ देंगे। नदियाँ नए रास्ते खोजेंगी। कई मंदिर धरती में समा जाएंगे। लेकिन हर बदलाव विनाशकारी नहीं होगा। जो पीढ़ियाँ पुरानी चीज़ें भूल चुकी हैं, आने वाली पीढ़ियाँ उन्हें फिर से सीखेंगी। युवा पीढ़ी आकाश को पढ़ना
सीखेगी और प्रकृति से जुड़ेगी।
ऐसा नहीं है कि अघोरी बाबा ने सिर्फ़ मानवजाति के संदर्भ में ही भविष्यवाणी की है, उनकी ज़ुबान से महाकुंभ को लेकर जो भविष्यवाणी हुई, उसे सुनकर भी हर कोई अचंभित है। बाबा ने अपनी भविष्यवाणी में महाकुंभ का वेन्यू ही बदल दिया है। इस बात का संकेत दिया है कि इस संगम का स्थान बदलेगा। समय के साथ कुंभ रेगिस्तान में होगा। जहां आज पानी नहीं है, वहीं कल कुंभ मेला लगेगा। अघोरी बाबा की यहीं भविष्यवाणियाँ इस बात का संकेत है कि आने वाला समय मानव जाती के लिए भयंकर है, प्रकृति की मार विनाश के मुहाने पर लेकर जाएगी। जीवन देने वाला जल ही भविष्य की सबसे बड़ी चुनौती होगी। अब सवाल उठता है कि क्या अघोरियों की ज़ुबान पर यक़ीन किया जा सकता है? इसको लेकर अघोरी परंपराओं का अध्ययन करने वाले एक्सपर्ट डॉ. राजेंद्र प्रसाद का कहना है कि अघोरी साधुओं की भविष्यवाणियाँ पर्यावरण और आध्यात्म का अनोखा मिश्रण होती हैं।वर्षों की तपस्या के बल पर ये लोग प्रकृति के संकेतों को समझने में माहिर होते हैं।