किस मुसलमान से मिलने हर साल अपने धाम से निकलकर आते हैं प्रभु जगन्नाथ ?
या आप जानते हैं कि रथ यात्रा में प्रभु जगन्नाथ खुद से यूपी के एक मुसलमान की मज़ार पर आकर हमेशा रुकते हैं.आप इसे भक्ति की भक्ति कह सकते हैं, जिसके लिए जगन्नाथ रथ यात्रा कुछ समय के लिए स्टॉप हो जाती है. कौन है ये मुस्लिम भक्ति , जिसकी नाराज़गी प्रभु जगन्नाथ के लिए बर्दाश्त के बाहर है ? इसी पर देखिये हमारी ये रिपोर्ट.

भक्ति में शक्ति होती है, इसका लाइव उदाहरण हर साल तब देखने को मिलता है जब जगत के नाथ प्रभु जगन्नाथ अपने धाम से बाहर आकर अपने भक्तों के बीच आते हैं…आषाढ़ शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि से जगन्नाथ रथ यात्रा का श्री गणेश हो चुका है, 12 दिनों तक चलने वाली इसी यात्रा में भक्तों का सैलाब उमड़ा हुआ है, हालाँकि रथ खींचने का सौभाग्य भी सभी को प्राप्त नहीं होता है..लेकिन क्या आप जानते हैं कि इसी रथ यात्रा में प्रभु जगन्नाथ खुद से यूपी के एक मुसलमान की मज़ार पर आकर हमेशा रुकते हैं. आप इसे भक्ति की भक्ति कह सकते हैं, जिसके लिए जगन्नाथ रथ यात्रा कुछ समय के लिए स्टॉप हो जाती है. कौन है ये मुस्लिम भक्ति , जिसकी नाराज़गी प्रभु जगन्नाथ के लिए बर्दाश्त के बाहर है ?
जो कि यहाँ की जगन्नाथ रथ यात्रा अनादि काल से निकाली जा रही है, मंदिर की परंपरा का सबसे अहम हिस्सा है, जिस कारण इस रथ यात्रा में रथ को खींचने का सौभाग्य जिस किसी को प्राप्त हुआ, समझों उसी क्षण उसे अपने तमाम पापों से मुक्ति मिल गई. रथ निर्माण कार्य का श्री गणेश अक्षय तृतीय से होता है , जिसमें ना ही एक कील तक गाड़ी जाती है और ना ही किसी प्रकार के धातु का इस्तेमाल होता है. और फिर जैसे भी रथ बनकर तैयार होते हैं, आगे-आगे बलभद्र और सुभद्रा जी चलते हैं और पीछे पीछे से प्रभु जगन्नाथ आते हैं.भक्तों के बीच उनके आराध्य के दिव्य रथ तालध्वज, दर्पदलन और नंदीघोष, ये अद्भुत नजारा साल में सिर्फ़ एक बार देखने को मिलता है और इन्हीं अद्भुत क्षणों में आसमानी चमत्कार तब देखने को मिलता है जब झमाझम बारिश होती है.इसी यात्रा में प्रभु जगन्नाथ का रथ यूपी के एक ऐसे मुसलमान की मज़ार के आगे रुकता है, जिन्हें आज दुनिया सालबेग के नाम से जानती है. इस पूरी रथ यात्रा का अद्भुत दृश्य उस वक़्त देखने को मिलता है, जब प्रभु जगन्नाथ का रथ मंदिर से चलकर क़रीब 200 मीटर की दूरी पर रुक जाता है.क्योंकि यही पर मौजूद है प्रभु जगन्नाथ के परम भक्त सालबेग की मज़ार. इस भक्त की भक्ति की कहानी कुछ ऐसी है कि ..
सालबेग एक मुस्लिम परिवार में जन्मे थे. उनके पिता तालबेग मुगल साम्राज्य के एक बड़े अधिकारी यानी सूबेदार थे. सालबेग की पढ़ाई-लिखाई वृंदावन में हुई, लेकिन एक बार वह किसी काम से पुरी आए जहां उन्होंने भगवान जगन्नाथ की महिमा सुनी, तो उनके मन में भी यह इच्छा जागी कि वे भगवान के दर्शन करें. जब सालबेग मंदिर पहुंचे, तो उन्हें दरवाजे पर ही रोक दिया गया, क्योंकि मंदिर में गैर-हिंदुओं का प्रवेश वर्जित है. इस बात से सालबेग को दुख तो हुआ, लेकिन साथ ही भगवान जगन्नाथ के लिए उनकी जिज्ञासा और भक्ति भी गहरी होती चली गई. उन्होंने मंदिर में प्रवेश न मिल पाने के बावजूद भगवान के प्रति अपनी भक्ति बनाए रखी. वह भजन, कीर्तन और प्रभु का नाम जपने लगे.एक रात सालबेग को सपना आया, जिसमें भगवान जगन्नाथ स्वयं प्रकट हुए और कहा, “मैं तुम्हारी भक्ति से बहुत प्रसन्न हूं. भले ही तुम मुझे मंदिर में नहीं देख सके, लेकिन मैं तुम्हें दर्शन दूंगा.” सालबेग ने भगवान से पूछा, “कब?” तब प्रभु ने कहा, “जब रथ यात्रा निकलेगी, तब मेरा रथ तुम्हारे सामने रुकेगा और सब जान जाएंगे कि तुम मेरे सच्चे भक्त हो.”समय बीता और एक दिन रथ यात्रा आई. जैसे ही भगवान जगन्नाथ का रथ उस जगह पहुंचा, जहां सालबेग ठहरे थे, रथ वहीं अटक गया. हजारों लोगों ने मिलकर भी रथ को आगे नहीं बढ़ा सके. तभी भगवान जगन्नाथ की फूलों की माला लेकर सालबेग तक पहुंचाई गई. तभी जाकर रथ आगे बढ़ा. लोगों को समझ में आ गया कि यह कोई संयोग नहीं था, बल्कि भगवान ने अपने भक्त को खुद दर्शन दिए. पंडों को भी इस बात का पछतावा हुआ कि उन्होंने एक सच्चे भक्त को मंदिर में प्रवेश से रोका था.
कहते हैं, भगवान की सेवा करते करते उनके भक्त सालबेग का निधन 1646 में हुआ और उसी साल पुरी के राजा ने उस स्थान पर सालबेग की मज़ार बनाई, उसी दिन से अपनी पूरी रथ यात्रा को लेकर प्रभु जगन्नाथ यही आकर रुकते हैं. और ये बताते भी है कि भक्ति में जात-पात नहीं, बल्कि निःस्वार्थ सेवा होती है और यही सेवा भक्त की शक्ति बन जाती है.