‘सुदर्शन चक्र’ करेगा दिल्ली की सुरक्षा, कैपिटल डोम के कवच से अभेद्य हो जाएगी राजधानी...जानें क्या है स्वदेशी IADWS
राजधानी दिल्ली की सुरक्षा अब अभेद्य होने जा रही है. सूत्रों के मुताबिक केंद्र सरकार दिल्ली को ‘सुदर्शन चक्र’ का कवच प्रदान करने जा रही है, जिसे कैपिटल डोम का नाम दिया जा रहा है. इसके जरिए ऐसा सुरक्षा घेरा तैयार किया जाएगा, जिससे कि परिंदा भी पर न मार सके.
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नई दिल्ली को हवाई खतरों से पूरी तरह सुरक्षित करने की दिशा में भारत एक बड़ा और निर्णायक कदम उठाने जा रहा है. केंद्र सरकार राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) के ऊपर एक विशेष, बहुस्तरीय वायु रक्षा ढांचा तैनात करने की तैयारी में है, जिसे अनौपचारिक तौर पर ‘कैपिटल डोम’ नाम दिया गया है. इस महत्वाकांक्षी परियोजना का उद्देश्य मिसाइलों से लेकर दुश्मन ड्रोन तक, हर तरह के हवाई खतरे से राजधानी की चौबीसों घंटे सुरक्षा सुनिश्चित करना है.
रक्षा सूत्रों के अनुसार, कैपिटल डोम के तहत दिल्ली के आसमान पर एक ऐसा सुरक्षा घेरा बनाया जाएगा, जो तेज रफ्तार बैलिस्टिक और क्रूज मिसाइलों के साथ-साथ कम लागत वाले छोटे ड्रोन जैसे असममित खतरों को भी नाकाम कर सकेगा. यह पूरी प्रणाली राजधानी और उसके आसपास के संवेदनशील क्षेत्रों को ध्यान में रखकर तैयार की जा रही है.
वहीं, न्यूज 18 की एक रिपोर्ट की मानें तो केंद्र सरकार ने दिल्ली के वीआईपी जोन, जैसे कि प्रधानमंत्री आवास, सेंट्रल विस्टा, संसद, इंडिया गेट और लाल किला—जैसे क्षेत्रों को सुरक्षित करने के लिए 5,181 करोड़ रुपये के स्वदेशी ‘इंटीग्रेटेड एयर डिफेंस वेपन सिस्टम’ (IADWS) की खरीद को मंजूरी दे दी है. सूत्रों के अनुसार, सरकार इसे ‘सुदर्शन चक्र’ (Sudarshan Chakra) पहल के तौर पर देख रही है. इसके तहत राजधानी के चारों ओर एक ऐसा सुरक्षा घेरा तैयार होगा, जिसे भेदना नामुमकिन होगा.
स्वदेशी तकनीक पर आधारित होगा कैपिटल डोम!
कैपिटल डोम की सबसे बड़ी खासियत यह है कि यह लगभग पूरी तरह स्वदेशी तकनीक पर आधारित होगा. रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) द्वारा विकसित प्रणालियां इस नेटवर्क की रीढ़ होंगी. पहले जहां विदेशी प्रणालियों पर निर्भरता अधिक थी, वहीं अब ‘मेक इन इंडिया’ के तहत विकसित हथियार और सेंसर दिल्ली की सुरक्षा की जिम्मेदारी संभालेंगे.
यह प्रणाली अलग-अलग दूरी और ऊंचाई पर आने वाले खतरों को रोकने के लिए कई स्तरों में काम करेगी. हर स्तर पर अलग-अलग तरह के इंटरसेप्टर और हथियार तैनात होंगे, जिससे किसी भी खतरे को शुरुआती चरण में ही निष्क्रिय किया जा सके.
QRSAM और VL-SRSAM चुटकियों में दुश्मन को खत्म कर देंगे!
इस वायु रक्षा नेटवर्क का मुख्य आधार दो उन्नत मिसाइल प्रणालियां होंगी-क्विक रिएक्शन सरफेस-टू-एयर मिसाइल (QRSAM) और वर्टिकली लॉन्च्ड शॉर्ट रेंज सरफेस-टू-एयर मिसाइल (VL-SRSAM).
QRSAM एक अत्यधिक मोबाइल प्रणाली है, जिसे 8x8 भारी वाहनों पर तैनात किया जाएगा. इसकी खासियत यह है कि यह चलते-चलते भी लक्ष्य की तलाश और ट्रैकिंग कर सकती है. करीब 25 से 30 किलोमीटर की मारक क्षमता वाली यह मिसाइल कम ऊंचाई पर उड़ने वाले क्रूज मिसाइलों, हेलिकॉप्टरों और लड़ाकू विमानों को बेहद कम समय में मार गिराने में सक्षम है.
दूसरी ओर, VL-SRSAM को मूल रूप से नौसेना के लिए विकसित किया गया था, लेकिन अब इसे थल आधारित वायु रक्षा के लिए भी अनुकूलित किया गया है. इसकी सबसे बड़ी ताकत इसकी 360 डिग्री वर्टिकल लॉन्च क्षमता है, जिससे यह किसी भी दिशा से आने वाले खतरे पर तुरंत हमला कर सकती है. घनी आबादी वाले शहरी क्षेत्र जैसे दिल्ली में, जहां खतरा किसी भी ओर से आ सकता है, यह क्षमता बेहद अहम मानी जा रही है. यह मिसाइल ‘अस्त्र’ तकनीक पर आधारित है और इसमें एक्टिव रडार होमिंग सिस्टम लगा है, जो उच्च सटीकता सुनिश्चित करता है.
ड्रोन की सुनामी से चुटकियों में निपटेगा लेजर वेपन
कैपिटल डोम की एक और खास और आधुनिक विशेषता है डायरेक्टेड एनर्जी वेपन्स (DEWs), यानी लेजर और हाई-पावर माइक्रोवेव सिस्टम का इस्तेमाल. आधुनिक युद्ध के दौरान छोटे व्यावसायिक ड्रोन जासूसी और तोड़फोड़ के लिए तेजी से इस्तेमाल किए जा रहे हैं. ऐसे में हर ड्रोन पर मिसाइल दागना न केवल महंगा है, बल्कि शहरी इलाकों में जोखिम भरा भी हो सकता है.
ऑपरेशन सिंदूर के दौरान देखा गया कि कैसे पाकिस्तान ने तुर्की और अन्य देशों से खरीदे गए सस्ते, लगभग 20–40 हजार रुपये में आने वाले ड्रोन को सैकड़ों की संख्या में एक साथ या बारी-बारी से छोड़ा. ऐसे में भारत इन छोटे ड्रोन को रोकने के लिए अपने मल्टी-मिलियन डॉलर मिसाइल और रॉकेट का इस्तेमाल नहीं करेगा. इसी वजह से इन्हें निष्क्रिय करने के लिए लेजर तकनीक बेहद कारगर साबित होने वाली है.
लेजर आधारित हथियार इन ड्रोन को बेहद कम समय में निष्क्रिय कर सकते हैं-या तो उनकी इलेक्ट्रॉनिक प्रणाली को फेल करके या उनके ढांचे को क्षतिग्रस्त करके. इन प्रणालियों का सबसे बड़ा फायदा यह है कि इनमें गोला-बारूद की कोई सीमा नहीं होती और मलबा गिरने से होने वाले नुकसान की आशंका भी बहुत कम रहती है. राजधानी जैसे संवेदनशील क्षेत्र के लिए यह तकनीक बेहद उपयुक्त मानी जा रही है.
इंटिग्रेटेड कमांड एंड कंट्रोल सिस्टम से होगी निगरानी
कैपिटल डोम की सफलता और प्रभावशीलता इसकी नेटवर्क आधारित संरचना पर निर्भर करेगी. रडार, इलेक्ट्रो-ऑप्टिकल सेंसर और संचार प्रणालियां मिलकर एक साझा हवाई तस्वीर तैयार करेंगी, जिसे एक केंद्रीय कमांड एंड कंट्रोल सिस्टम संचालित करेगा. यह सिस्टम स्वतः तय करेगा कि किस खतरे के लिए कौन सा हथियार सबसे उपयुक्त है—छोटे ड्रोन के लिए लेजर और बड़े व तेज लक्ष्यों के लिए मिसाइल.
रणनीतिक आत्मनिर्भरता की ओर बड़ा कदम
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कैपिटल डोम के पूरी तरह लागू होने के बाद नई दिल्ली दुनिया के सबसे सुरक्षित और मजबूत वायु रक्षा कवच से लैस शहरों में शामिल हो जाएगी. यह परियोजना न केवल दिल्ली की सुरक्षा को अभेद्य बनाएगी, बल्कि दुश्मन की मंशा को पहले ही नेस्तनाबूद करने में सक्षम होगी. देश की सुरक्षा के लिहाज से दिल्ली की सुरक्षा अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि दिल्ली न केवल देश की राजधानी है, बल्कि सत्ता और शासन-प्रशासन का केंद्र भी है. इसकी सुरक्षा से न तो समझौता किया जा सकता है और न ही इसे नजरअंदाज किया जा सकता है.
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