स्टूडेंट्स की आत्महत्या रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट का बड़ा कदम, देशभर के स्कूल-कॉलेजों के लिए जारी कीं गाइडलाइंस
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला लाखों छात्रों और उनके परिवारों के लिए राहत की उम्मीद लेकर आया है. यह कदम छात्रों को मानसिक रूप से मजबूत बनाने, उन्हें दबाव में न टूटने देने और समय रहते उनकी मदद करने की दिशा में बड़ा प्रयास है.

Follow Us:
15 Guidelines will be Implemented from Coaching to College: देश में छात्रों के बीच बढ़ती आत्महत्या की घटनाएं अब चिंता का गंभीर विषय बन चुकी हैं. चाहे वो स्कूल हो, कॉलेज हो या निजी कोचिंग सेंटर शैक्षणिक दबाव, मानसिक तनाव और संस्थागत बेरुखी के कारण हजारों छात्र हर साल आत्महत्या कर रहे हैं. इसी गंभीर समस्या को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसला लेते हुए देशभर के सभी शैक्षणिक संस्थानों में छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य की सुरक्षा को लेकर 15 बिंदुओं वाली गाइडलाइन जारी की है.
ये दिशा-निर्देश इसलिए भी खास हैं क्योंकि इसमें सिर्फ स्कूल-कॉलेज ही नहीं, कोचिंग सेंटर, विश्वविद्यालय, ट्रेनिंग इंस्टिट्यूट और छात्रावासों तक को शामिल किया गया है. अब इन सभी जगहों पर मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े उपाय, काउंसलिंग, शिकायत निवारण प्रणाली और नियामक ढांचा लागू करना जरूरी होगा.
2022 में 13 हजार से ज्यादा छात्रों ने की खुदकुशी
सुप्रीम कोर्ट का ये फैसला NCRB (नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो) की उस रिपोर्ट के आधार पर लिया गया है, जिसमें छात्रों की आत्महत्या से जुड़ी बेहद दुखद जानकारी सामने आई थी. रिपोर्ट के अनुसार, साल 2022 में देशभर में कुल 1,70,924 लोगों ने आत्महत्या की, जिनमें से 13,044 छात्र थे. यानी हर 100 आत्महत्याओं में लगभग 8 छात्र शामिल थे.
सबसे चौंकाने वाली बात यह रही कि इनमें से 2,248 छात्रों ने सिर्फ इसलिए जान दे दी, क्योंकि वे परीक्षा में फेल हो गए थे. यह आंकड़े साफ दिखाते हैं कि देश की मौजूदा शिक्षा प्रणाली और संस्थान छात्रों को मानसिक तौर पर मजबूत बनाने के बजाय और ज्यादा दबाव में डाल रहे हैं.
सुप्रीम कोर्ट ने माना - ये एक "प्रणालीगत विफलता" है, नजरअंदाज नहीं किया जा सकता
जस्टिस विक्रमनाथ और जस्टिस संदीप मेहता की बेंच ने इस मामले में कड़ा रुख अपनाते हुए कहा कि यह सिर्फ एक व्यक्तिगत समस्या नहीं, बल्कि पूरे सिस्टम की नाकामी है. कोर्ट ने माना कि छात्र शिक्षा के बोझ, सामाजिक दबाव, संस्थानों की बेरुखी और अकेलेपन की वजह से आत्महत्या जैसा कठोर कदम उठा रहे हैं. इसलिए अब पूरे देश में मानसिक स्वास्थ्य के उपाय और काउंसलिंग सेवाएं अनिवार्य की जाएंगी.कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 32 और 141 का इस्तेमाल करते हुए यह साफ कर दिया कि उसके ये दिशा-निर्देश तब तक देश का कानून माने जाएंगे जब तक कि संसद या राज्य सरकारें इस पर कोई अलग कानून नहीं बना देतीं.
NEET छात्रा की मौत से जुड़ा है यह मामला, अब सीबीआई करेगी जांच
यह ऐतिहासिक निर्णय एक दुखद मामले से जुड़ा हुआ है. आंध्र प्रदेश के विशाखापत्तनम में स्थित आकाश-बायजू कोचिंग सेंटर में पढ़ रही एक 17 वर्षीय NEET छात्रा की आत्महत्या के बाद यह मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा. छात्रा हॉस्टल में रहकर मेडिकल परीक्षा की तैयारी कर रही थी. उसकी संदिग्ध मौत के बाद पिता ने स्थानीय पुलिस पर भरोसा न करते हुए सीबीआई जांच की मांग की थी. हालांकि आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने उनकी याचिका खारिज कर दी थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इसे गंभीर मानते हुए सीबीआई को जांच सौंपने का आदेश दे दिया. कोर्ट ने माना कि इस घटना के पीछे केवल एक छात्र की मौत नहीं, बल्कि एक बड़ा सिस्टमिक फेल्योर छिपा हुआ है.
अब हर स्कूल-कॉलेज में होंगे मेंटल हेल्थ उपाय और काउंसलिंग
सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिए हैं कि सभी शैक्षणिक संस्थानों में छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य को प्राथमिकता दी जाए. इसके लिए इन कदमों को जरूरी किया गया है:
1.नियमित काउंसलिंग सेशन
2. प्रशिक्षित मेंटल हेल्थ प्रोफेशनल्स की नियुक्ति
3. छात्र शिकायत निवारण प्रणाली
4. संवेदनशील और सहयोगी स्टाफ की ट्रेनिंग
5. मानसिक दबाव से जूझ रहे छात्रों के लिए हेल्पलाइन और सपोर्ट सिस्टम
यह सभी उपाय उस राष्ट्रीय टास्क फोर्स की सिफारिशों के अनुरूप हैं, जिसका गठन सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज रवींद्र एस. भट्ट की अध्यक्षता में किया गया था.
यह भी पढ़ें
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला लाखों छात्रों और उनके परिवारों के लिए राहत की उम्मीद लेकर आया है. यह कदम छात्रों को मानसिक रूप से मजबूत बनाने, उन्हें दबाव में न टूटने देने और समय रहते उनकी मदद करने की दिशा में बड़ा प्रयास है.अब वक्त है कि स्कूल-कॉलेज, कोचिंग सेंटर और सरकार मिलकर छात्रों के लिए एक ऐसा माहौल तैयार करें जहां पढ़ाई के साथ-साथ उनके भावनात्मक और मानसिक स्वास्थ्य का भी पूरा ध्यान रखा जाए. यही असली शिक्षा है और यही सच्ची जिम्मेदारी भी.