अब नहीं कहूंगा कि अमेरिका से दोस्ती रखो...PAK से पींगें, भारत से पंगा US को डुबा देगा, अमेरिकी विश्लेषक ने ट्रंप को बता दिया 'आत्मघाती'
अमेरिका के दिग्गज विश्लेषक और पूरी दुनिया में अपना डंका बजाने वाले फरीद जकारिया ने ट्रंप द्वारा भारत को लेकर लिए जा रहे फैसलों को 'आत्मघाती' बता दिया है. उन्होंने कहा कि जो हरकतें और जो काम ट्रंप ने किया है उसके बाद वो भारत के लोगों को नहीं कहेंगे कि अमेरिका से दोस्ती बढ़ाओ. उन्होंने मुनीर के अमेरिकी दौरे और ट्रंप से सीक्रेट मीटिंग की भी पोल खोली. जकारिया ने भारत को एक ताकत बताते हुए ट्रंप के उस बयान का जवाब भी दिया कि भारत एक डेड इकोनॉमी नहीं बल्कि तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था है!
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अमेरिका और भारत के बीच भरोसे और रणनीतिक सहयोग का पुल अब डगमगाने लगा है. ब्रिटेन से आजादी के बाद जब भारत को मदद और साथ की जरूरत थी, तब अमेरिका के जो व्यवहार और तौर-तरीके थे, उसे लोग भूले ही थे कि ट्रंप ने उसकी याद फिर से ताजा कर दी है. दशकों के प्रयास और कूटनीतिक मेहनत की बदौलत इसे ठीक करने का प्रयास किया गया लेकिन ट्रंप ने अपनी मूर्खतापूर्ण नीति, अकड़, हनक की बदौलत, सब चौपट कर दिया है. और यह कदम ट्रंप की सबसे बड़ी रणनीतिक चूक साबित होगी. अमेरिका के दिग्गज पत्रकार, एंकर, विश्लेष्क और कमेंटेटर, जिसकी पूरी दुनिया में पूछ है, ऐसे फरीद जकारिया ने ट्रंप पर तीखा हमला बोला है. जकारिया ने ट्रंप के अचानक पाकिस्तान प्रेम की भी पोल खोली और PAK Army चीफ मुनीर के लगातार हो रहे वॉशिंगटन दौरे की भी असल वजह बताई.
अंतरराष्ट्रीय मामलों के विशेषज्ञ और जाने-माने पत्रकार फरीद जकारिया ने डोनाल्ड ट्रंप के भारत पर 50% टैरिफ लगाने के फैसले को “रणनीतिक रूप से आत्मघाती कदम” बताया है. उन्होंने कहा है कि ट्रंप की ये नीति न केवल पिछले ढाई दशक में बने भारत-अमेरिका रिश्तों को कमजोर करेगी, बल्कि एशिया में चीन और रूस के प्रभाव को भी बढ़ाएगी. भारत ने भी इस कदम पर कड़ा विरोध दर्ज कराते हुए साफ कहा है कि यह “असंतुलित, अनुचित और मित्र देशों के साथ भेदभावपूर्ण” है.
ट्रंप ने हिला दी भारत-अमेरिका के बीच भरोसे की नींव: जकारिया
फरीद जकारिया ने पिछले 50 साल के भारत और अमेरिकी संबंधों में प्रगाढ़ता का लेखा जोखा देते हुए कहा कि “क्लिंटन प्रशासन से शुरू हुआ भारत के साथ अमेरिकी जुड़ाव, जॉर्ज बुश, बराक ओबामा और यहां तक कि ट्रंप के पहले कार्यकाल में भी आगे बढ़ा. यह एक स्थिर और दूरगामी रणनीति थी, जिसमें व्यापार, रक्षा और भू-राजनीति के मोर्चे पर लगातार प्रगति हुई और इसे हर सरकरा-हर प्रशासन और हर पार्टी ने बढ़ाया, लेकिन ट्रंप के मौजूदा रुख ने इस भरोसे की नींव को हिला दिया है.”
चीन को रोकने में सिर्फ भारत ही सक्षम
जकारिया ने याद दिलाया कि बिल क्लिंटन की 2000 की भारत यात्रा ने दोनों देशों के रिश्तों में नई ऊर्जा भर दी थी, जबकि जॉर्ज बुश के दौर में चीन के उभार को देखते हुए भारत को एशिया में सबसे अहम संतुलन के रूप में पहचाना गया. उन्होंने आगे कहा कि “ 2008 में बुश प्रशासन ने भारत को परमाणु समझौते के जरिए 1998 लगे सेंशन के कार हुए अंतरराष्ट्रीय अलगाव से बाहर निकाला. यह केवल कूटनीति नहीं, बल्कि भारत को वैश्विक शक्ति के रूप में स्वीकारना था.”
ओबामा से बाइडेन तक ने भारत की मानी ताकत
ओबामा प्रशासन ने भारत को एशिया-प्रशांत रणनीति में केंद्रीय स्थान दिया और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता का समर्थन किया. द्विपक्षीय व्यापार में भारी बढ़ोतरी हुई और रक्षा सहयोग गहरा हुआ. ट्रंप के पहले कार्यकाल में ‘क्वाड’ को नई मजबूती मिली और नरेंद्र मोदी के साथ उनकी व्यक्तिगत नजदीकी ने रिश्तों को और मजबूत किया. जो बाइडेन ने भी इसी रफ्तार को आगे बढ़ाया, रक्षा उत्पादन, तकनीकी साझेदारी और सेमीकंडक्टर निर्माण जैसे क्षेत्रों में भारत को प्रमुख भागीदार बनाया.
मेड इन स्मार्टफोन के मामले में चीन से आगे निकल रहा भारत!
जकारिया ने कहा, “भारत ने हाल ही में अमेरिका को चीन से अधिक स्मार्टफोन निर्यात किए. यह दोनों देशों की आर्थिक निकटता का स्पष्ट संकेत था. लेकिन अब यह सिलसिला अचानक टूटता दिख रहा है.”
जब अमेरिका ने PAK को धन और हथियार दिए, तब रूस उसके साथ था: जकारिया
फरीद जकारिया ने भारत के साथ संबंधों को लेकर कहा ये इतना आसान नहीं है. यह पश्चिम के उपनिवेश और प्रभुत्व में रहा, और दो शताब्दियों तक ब्रिटेन ने इस पर शासन किया. उन्होंने नई दिल्ली के मॉस्को की तरफ झुकाव की वजह बताते हुए कहा कि भारत की आज़ादी के बाद, सोवियत संघ ने इसका खुलकर समर्थन किया, जबकि अमेरिका ने उसके विरोधी पड़ोसी पाकिस्तान को धन और हथियार दिए. एक विशाल, विविध और अव्यवस्थित लोकतंत्र होने के नाते, भारत के हमेशा से ही कुछ घरेलू हित रहे हैं जिन्हें उसके नेता नज़रअंदाज़ नहीं कर सकते. इन सबके बावजूद, वाशिंगटन नई दिल्ली को और करीब लाने में कामयाब रहा, जिससे दोनों देशों के हित और कार्य अधिक सुसंगत हो गए.
भारत पर गरम, आतंकिस्तान पर नरम? क्या वजह है?
फरीद ने ट्रंप की आलोचना करते हुए कहा कि उन्होंने अमेरिकी राजनयिकों की दशकों की कड़ी मेहनत पर पानी फेर दिया है. ट्रंप ने भारत को अमेरिकी टैरिफ लिस्ट की सबसे ऊंची श्रेणी में रखा, जो अब सीरिया और म्यांमार की तरह 50 प्रतिशत हो गई है, जबकि पाकिस्तान (जो अब चीन का करीबी सहयोगी है) के लिए 19 प्रतिशत का शुल्क तय किया है और वहाँ तेल की खोज के लिए संयुक्त, शायद निरर्थक, प्रयासों की घोषणा की है.
फरीद ने मौलाना मुनीर के अमेरिकी दौरे की भी पोल खोली और कहा कि दाल में कुछ तो काला है. उन्होंने आगे कहा कि ट्रंप ने पाकिस्तान के सेना प्रमुख से निजी तौर पर मुलाकात की. हैरानी की बात ये है कि ट्रम्प परिवार द्वारा समर्थित एक फर्म (कंपनी) के पाकिस्तान क्रिप्टो काउंसिल से संबंध रहे हैं - जिससे यह संदेह और गहरा गया है कि हो सकता है ट्रंप-मुनीर की बैठक के दौरान गुप्त सौदे हुए हों.
भारत की प्रतिक्रिया और ‘ऑपरेशन सिंदूर’
विदेश मंत्रालय ने इस टैरिफ फैसले को “अनुचित और अस्वीकार्य” बताते हुए अमेरिका से तुरंत पुनर्विचार की मांग की है. साथ ही, सरकारी सूत्रों ने संकेत दिया है कि भारत “ऑपरेशन सिंदूर” नामक एक समग्र कूटनीतिक-आर्थिक पैकेज पर विचार कर रहा है. इस योजना के तहत अमेरिकी निर्यात पर जवाबी शुल्क, वैकल्पिक बाजारों की खोज, और रक्षा व तकनीकी सहयोग समझौतों में अमेरिका की प्राथमिकता घटाने जैसे कदम शामिल हो सकते हैं.
भारत वैश्विक शक्ति
भारत वर्तमान में दुनिया की सबसे तेज़ी से बढ़ती बड़ी अर्थव्यवस्था है और फिलहाल चौथे स्थान पर है. 2028 तक इसके जर्मनी को पीछे छोड़ तीसरे स्थान पर पहुंचने का अनुमान है. यह दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा हथियार आयातक और स्मार्टफोन उपभोक्ता है. जकारिया का कहना है, “भारत को नज़रअंदाज़ करना किसी भी महाशक्ति के लिए रणनीतिक भूल होगी. यह न केवल एक विशाल बाजार है, बल्कि एशिया में शक्ति संतुलन का मुख्य स्तंभ है.”
अब भारत के पास क्या विकल्प हैं?
विशेषज्ञों का मानना है कि अगर ट्रंप का यह रुख जारी रहा, तो भारत रूस के साथ अपने पारंपरिक संबंधों को और गहरा करेगा और चीन के साथ सीमित सहयोग की दिशा में बढ़ सकता है. “भारत ऐतिहासिक रूप से गुटनिरपेक्ष रहा है, लेकिन मोदी सरकार के मल्टी-अलाइनमेंट मॉडल में अमेरिका का स्थान महत्वपूर्ण था. अब वह स्थान खाली हो सकता है,” फरीद जकारिया ने कहा.
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अब मैं भारतीयों को नहीं समझा पाउंगा
फरीद जकारिया ने अंत में कहा, “मैं हमेशा भारतीय नेताओं से कहता था कि दुनिया के सबसे बड़े और सबसे पुराने लोकतंत्र का गठजोड़ इतिहास रच सकता है. लेकिन ट्रंप की इस नीति के बाद, यह बात उन्हें समझाना बेहद कठिन होगा. अगर हालात ऐसे ही रहे, तो यह ट्रंप की विदेश नीति की सबसे बड़ी हार के रूप में दर्ज होगी, और भारत अपने हित सुरक्षित करने के लिए नए रास्ते अपनाएगा.”
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