सिलेबस से बाहर हुआ हिंदू राष्ट्रवाद और इस्लाम का अध्ययन, DU में बड़ा बदलाव
शिक्षा नीति विशेषज्ञों का कहना है कि ये संशोधन भारत सरकार की नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) के अनुरूप किए जा रहे हैं। NEP का उद्देश्य उच्च शिक्षा में भारतीय दृष्टिकोण को बढ़ावा देना और पाठ्यक्रमों को “भारतीय ज्ञान प्रणाली” के साथ समन्वयित करना है. इसी दिशा में DU द्वारा की जा रही यह कवायद शिक्षा में वैचारिक दिशा बदलने की कोशिश के रूप में देखी जा रही है.

DU Syllabus: दिल्ली विश्वविद्यालय (DU) एक बार फिर अपने पाठ्यक्रम में व्यापक बदलाव की तैयारी में है. इस बार बदलाव का असर पोस्टग्रेजुएट (PG) स्तर पर पॉलिटिकल साइंस और इतिहास जैसे महत्वपूर्ण विषयों पर पड़ने जा रहा है. विश्वविद्यालय की स्थायी समिति ने कई ऐसी पुस्तकों और विषयों को पाठ्यक्रम से हटाने की सिफारिश की है, जिन्हें "विवादास्पद" या "संवेदनशील" माना गया है. इन बदलावों को लेकर शैक्षणिक हलकों में बहस तेज हो गई है.
हिंदू राष्ट्रवाद पर आधारित पुस्तक को हटाने की तैयारी
पॉलिटिकल साइंस विभाग के सिलेबस में शामिल फ्रांसीसी विद्वान क्रिस्टोफ़ जैफ़रलॉट की चर्चित पुस्तक Hindu Nationalism: A Reader को पाठ्यक्रम से हटाने की सिफारिश की गई है. इस पुस्तक में हिंदू राष्ट्रवाद, धर्मनिरपेक्षता, धार्मिक रूपांतरण और प्रवासी समुदायों में हिंदू पहचान जैसे मुद्दों की गंभीर पड़ताल की गई है. समिति का मानना है कि यह विषय “संवेदनशील” हैं और छात्रों पर इसका प्रभाव विचारणीय है.
नर्मदा आंदोलन और आदिवासी संस्कृति पर लिखी पुस्तक भी निशाने पर
प्रसिद्ध समाजशास्त्री अमिता बाविस्कर की पुस्तक In the Belly of the River को भी पाठ्यक्रम से हटाने की बात चल रही है. यह किताब नर्मदा बचाओ आंदोलन और भारत के आदिवासी समुदायों के "हिंदूकरण" पर गहन अध्ययन प्रस्तुत करती है. समीक्षा समिति ने इस पुस्तक को भी "संवेदनशील" श्रेणी में रखते हुए इसे हटाने की सिफारिश की है. पुस्तक में पर्यावरणीय आंदोलनों और आदिवासी विरोध की आवाज़ों को विस्तार से दिखाया गया है.
गांधी और दक्षिणपंथ पर सवाल उठाने वाली किताब पहले ही हटाई जा चुकी है
इतना ही नहीं, ज्ञानेंद्र पांडे की पुस्तक Routine Violence को पहले ही पाठ्यक्रम से हटा दिया गया है. इस किताब में भारत में दक्षिणपंथी विचारधारा के उदय, सावरकर और गोलवलकर जैसे विचारकों की भूमिका, और गांधी की राजनीतिक दृष्टि की आलोचनात्मक व्याख्या की गई है. पांडे का तर्क था कि स्वतंत्रता के बाद भी भारत एक हिंदू-बहुल ढांचे में जकड़ा रहा, जिससे अल्पसंख्यक समुदाय हाशिए पर चले गए.
इतिहास पाठ्यक्रम में भी कटौती, इस्लामी प्रभाव वाले विषय हटाने का प्रस्ताव
सिर्फ पॉलिटिकल साइंस ही नहीं, इतिहास विभाग के सिलेबस में भी कई महत्वपूर्ण बदलाव प्रस्तावित हैं. फिलिप वेगनर का लेख Sultan Among Hindu Kings, जिसमें विजयनगर साम्राज्य की दरबारी संस्कृति में इस्लामी प्रभाव की बात की गई है, उसे भी हटाया जा सकता है. इसके अलावा रिचर्ड ईटन की पुस्तक The Rise of Islam and the Bengal Frontier, जिसमें इस्लाम के प्रसार को जबरन धर्मांतरण के बजाय सामाजिक और आर्थिक बदलाव के रूप में समझाया गया है, उसे भी पाठ्यक्रम से हटाने की योजना है.
पाकिस्तान, चीन और इस्लाम जैसे विषय पाठ्यक्रम से बाहर
जून के अंत में विश्वविद्यालय प्रशासन ने पॉलिटिकल साइंस पाठ्यक्रम से एक पूरा पेपर ही हटा दिया, जिसमें निम्नलिखित विषय शामिल थे:
पाकिस्तान और विश्व राजनीति
समकालीन विश्व में चीन की भूमिका
इस्लाम और अंतर्राष्ट्रीय संबंध
धार्मिक राष्ट्रवाद और राजनीतिक हिंसा
इन विषयों को हटाने के पीछे तर्क यह दिया गया कि वे छात्रों में विभाजनकारी दृष्टिकोण उत्पन्न कर सकते हैं या राजनीतिक रूप से अत्यधिक संवेदनशील हो सकते हैं.
विश्वविद्यालय प्रशासन का पक्ष: 'निष्पक्ष और वस्तुनिष्ठ अध्ययन जरूरी'
इन सभी बदलावों का बचाव करते हुए विश्वविद्यालय की स्थायी समिति की सदस्य डॉ. मोनामी सिन्हा ने कहा कि सोशल साइंस का उद्देश्य जटिल विषयों पर चर्चा करके समाधान निकालना है. उनका मानना है कि विषय असहज हों या संवेदनशील, हमें उन्हें निष्पक्ष रूप से पढ़ाना चाहिए. समिति द्वारा प्रस्तावित हर बदलाव को पहले अकादमिक परिषद और फिर कार्यकारी परिषद की मंजूरी लेनी होती है.
राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) के अनुरूप बदलाव
शिक्षा नीति विशेषज्ञों का कहना है कि ये संशोधन भारत सरकार की नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) के अनुरूप किए जा रहे हैं। NEP का उद्देश्य उच्च शिक्षा में भारतीय दृष्टिकोण को बढ़ावा देना और पाठ्यक्रमों को “भारतीय ज्ञान प्रणाली” के साथ समन्वयित करना है. इसी दिशा में DU द्वारा की जा रही यह कवायद शिक्षा में वैचारिक दिशा बदलने की कोशिश के रूप में देखी जा रही है.