Uttarakhand में महादेव का रहस्यमयी अवतार ‘महासू’, चावल के दाने से पल में कर देते हैं चमत्कार
महासू देवता एक नहीं चार देवताओं का सामूहिक नाम है और स्थानीय भाषा में महासू शब्द 'महाशिव' का पर्याय है | चारों महासू भाइयों के नाम बासिक महासू, पबासिक महासू, बूठिया महासू और चालदा महासू है, जो कि भगवान शिव के ही रूप हैं |

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कहते हैं सुदूर पहाड़ी रास्तों की मंजिल बड़ी खूबसूरत होती है | कहते हैं रास्तों की थकान मंजिल तक पहुंचते पहुंचते रोमांच में बदल जाती है | कहते हैं पहाड़ों का सफर एक सा ही होता है बस अंत का अंतर ही अतुलनीय अनुभुती में बदल जाता है | यकीन मानिए यहां पहुंचकर ये सारे दावे धुंधले पड़ते नजर आए | यहां मंजिल ही नहीं रास्ते भी खूबसूरत हैं, रास्तों में भी रोमांच है औऱ यात्रा का आरंभ ही आपको एक अनोखी दुनिया में ले चलेगा | बीइंग घुमक्कड़ की टीम इस बार पहाड़ के जिस हिस्से की तरफ निकली है वहां पहले कभी नहीं गई और उत्तराखंड का ये वो हिस्सा है जो देश-विदेश के कई लोगों के लिए अनछुआ है |
ये खूबसूरती प्रकृति और धर्म की ऐसी त्रिवेणी जिसमें हर व्यक्ति को यहां आकर आनंद की एक डुबकी तो लगानी चाहिए | जी हां, प्रकृति के साथ धर्म भी और धर्म का अर्थ है यहां महासू देवता | प्रकृति की गोद जैसे मनोरम और इस मनमोहक वातावरण के बीच उत्तराखंड के सीमान्त क्षेत्र में टौंस नदी के तट पर बसा बासिक महाराज का भव्य मंदिर |
महासू देवता एक नहीं चार देवताओं का सामूहिक नाम है और स्थानीय भाषा में महासू शब्द 'महाशिव' का पर्याय है | चारों महासू भाइयों के नाम बासिक महासू, पबासिक महासू, बूठिया महासू और चालदा महासू है, जो कि भगवान शिव के ही रूप हैं |
बासिक महाराज का मंदिर दसों दिशाओं से बेहद खूबसूरत दिखता है | मन्दिर, कला और संस्कृति की अनमोल धरोहर है और जिम्मेदार लोगों के साथ-साथ स्थानीय लोगों ने इसकी विरासत आज यहां तक ला दिया है कि दुनिया के अलग-अलग कोनों से श्रद्धालु यहां दर्शन करने पहुंच रहे हैं और ऐसे ही बीइंग घुम्मकड़ की टीम भी यहां पहुंची | यहां हमारी मुलाकात आदित्य पंवार जी से हुई | यूं तो बासिक महाराज की गाथा मैंद्रथ गांव का चप्पा चप्पा कह रहा है, लेकिन उस रोज हम पर बासिक महाराज की विशेष कृपा बरस रही थी | इसे ऐसे भी समझिए की हम उस रोज मंदिर पहुंचे जिस दिन स्वर्ण कलश मंदिर में स्थापित होने थे, भगवान बासिक को मंदिर के अंदर बिरसू नृत्य की थापों पर ले जाना था और इस भव्य आयोजन का गवाह बनने गांव के गांव पहुंचे हुए थे |
लम्बे रास्ते की उकताहट और दुर्गम रास्ते से हुई थकान, मन्दिर में पहुंचते ही छूमन्तर हो गई और एक नयी ऊर्जा का संचार होने लगा | चारों तरफ ऊंचे-ऊंचे पहाड़, दूर तक नजर आते लोगों के सुंदर सुंदर घर, मंद प्रवाह के साथ बहती टोंस नदी, अनगितन कहानियों का गवाह रहा यहां का कण-कण और सबसे खास वो स्थान जहां हम हैं यानी मैंद्रथ गांव, महासू देवताओं की जन्मभूमी |
उत्तराखण्ड के उत्तरकाशी, संपूर्ण जौनसार-बावर क्षेत्र, रंवाई परगना के साथ साथ हिमाचल प्रदेश के सिरमौर, सोलन, शिमला, बिशैहर और जुब्बल तक महासू देवताओं की पूजा होती है | उत्तराखंड के इन क्षेत्रों में महासू देवता को न्याय के देवता और मन्दिर को न्यायालय के रूप में माना जाता है |
पौराणिक कथा के अनुसार किरमिक नामक राक्षस के आंतक से क्षेत्रवासीयो को छुटकारा दिलाने के लिए हुणाभाट नामक ब्राह्मण ने भगवान शिव और शक्ति की तपस्या की | भगवान शिव और शक्ति के प्रसन्न होने पर मैंद्रथ गांव में चार भाई महासू की उत्पत्ति हुई और महासू देवता ने किरमिक राक्षस का वध कर क्षेत्रीय जनता को इस राक्षस के आंतक से मुक्ति दिलाई | कहते हैं यही वो पत्थर है जहां किरमिक राक्षस का अंत हुआ था | तभी से लोगो ने महासू देवता को अपना कुल आराध्य देवता माना और पूजा अर्चना शुरू की |
आइये अब महासू देवताओं के बारे में थोड़ा और विस्तार से जानते हैं | इनमें बासिक महासू सबसे बड़े हैं, जबकि बौठा महासू, पबासिक महासू व चालदा महासू दूसरे, तीसरे और चौथे नंबर के हैं | बासिक महासू का मंदिर मैंद्रथ में, बौठा महासू का मंदिर हनोल में, और पबासिक महासू का मंदिर बंगाण क्षेत्र के ठडियार व देवती-देववन में है। जबकि, चालदा महासू हमेशा जौनसार-बावर, बंगाण, फतह-पर्वत व हिमाचल क्षेत्र के प्रवास पर रहते हैं |
एक और अनुभव जो आपको पहाड़ों में आकर जीना चाहिए वो देवी-देवताओं की पालकी या डोली का है | इनका यहां बहुत ज्यादा महत्व है और जब देवी-देवताओं को मंदिर में पुनः स्थापित किया जाता है तो वो नजारा कुछ ऐसा ही होता है | मैंद्रथ गांव और तमाम स्थानीय लोगों ने इसमें कैसे बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया वो बहुत कुछ बताता है | लेकिन सबसे अहम है आस्था और विश्वास, किसी भी मान्यता के ये सबसे जरूरी स्तंभ हैं | और हो भी क्यों न? लोगों का ऐसा मानना है कि यहां सच्चे दिल से अपनी इच्छा रखने वाला शख्स कभी भी महासू देवताओं की दहलीज से खाली हाथ नहीं लौटा |
चमत्कारों से भरा है ये इलाका, यहां लोगों की जुबान में बासिक महाराज के जयकारों के बीच वो तमाम मनोकामनाएं भी हैं जो आज पूरी हो चुकी हैं, स्थानीय लोगों से भी पूछेंगे तो वो चमत्कार के किस्से बताते हैं, भूतों के किस्से बताते हैं |
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अब एक और जरूरी चीज और वो है रास्ता, ट्रेन या प्लेन से आ रहे हैं तो देहरादून आखिरी पड़ाव होगा | देहरादून से महासू देवता के मंदिर तक पहुंचने के लिए तीन सड़क मार्ग हैं। पहला 210 किमी लंबा मार्ग देहरादून, विकासनगर, चकराता व त्यूणी होते हुए हनोल से होता हुआ यहां तक आता है। दूसरा देहरादून, मसूरी, नैनबाग, पुरोला व मोरी होते हुए हनोल पहुंचता है और फिर आप यहां आ सकते हैं, जिसकी लंबाई 200 किमी है। जबकि, तीसरा 190 किमी लंबा मार्ग देहरादून से विकासनगर, छिबरौ डैम, क्वाणू, मिनस, हटाल व त्यूणी होते हुए हनोल और फिर वहां से मैंद्रथ गांव पहुंचता है |
तो ये थी घुमक्कड़ी एक ऐसे स्थान की जहां देव कृपा को अलग-अलग पहलुओं से आप देख सकते हैं - मंदिरों के लिहाज से भी, मैंद्रथ ग्राम के लिहाज से भी, खूबसूरत नजारों के लिए भी, मनमोहक रास्तों के लिए भी | यहां हो सकता है कि आप किसी एक चीज के लिए आएं लेकिन जब यहां से लौटेंगे तो सिर्फ एक सा अनुभव लेकर नहीं लौटेंगे, ये हमारी घुमक्कड़ी बताती है|