IMF पाकिस्तान को बार-बार क्यों देता है कर्ज? कहां से आता है IMF के पास इतना पैसा है? जाने इसके फंडिंग मॉडल के बारे में सब कुछ
भारत-पाकिस्तान के बीच तनावपूर्ण हालातों के बीच इंटरनेशनल मॉनेटरी फंड (IMF) ने पाकिस्तान को एक और बार आर्थिक सहारा देते हुए 1 अरब डॉलर का कर्ज जारी कर दिया है. सवाल उठता है कि IMF के पास इतना पैसा आखिर आता कहां से है? इस रिपोर्ट में IMF के पूरे फाइनेंशियल सिस्टम और पाकिस्तान को बार-बार कर्ज मिलने के पीछे की पूरी कहानी समझेंगे.

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भारत और पाकिस्तान के तनावपूर्ण हालातों के बीच इंटरनेशनल मॉनेटरी फंड यानी IMF ने शुक्रवार को पाकिस्तान को 1 अरब डॉलर का नया कर्ज जारी कर दिया. जो देश खुद कर्ज में डूबा है, जो अपनी अर्थव्यवस्था को स्थिर नहीं रख पा रहा, उसे बार-बार IMF क्यों और कैसे कर्ज दे रही है? और सबसे अहम सवाल किसी भी देश को कर्ज देकर IMF कैसे अपनी तिजोरी भरता है. देश-विदेश को करोड़ों-अरबों डॉलर बांट देने वाले IMF के पास आखिर इतना पैसा आता कहां से है? इस रिपोर्ट में जानिए IMF की पूरी संरचना, कामकाज और इसका ग्लोबल फाइनेंसिंग मॉडल.
IMF क्या है और इसका पैसा कहां से आता है?
IMF यानी इंटरनेशनल मॉनेटरी फंड एक अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्था है जिसकी स्थापना जुलाई 1944 में ब्रेटन वुड्स सम्मेलन के दौरान की गई थी. इसका उद्देश्य था दुनिया की अर्थव्यवस्था को स्थिर बनाना, मुद्रा संकटों से देशों को निकालना और ग्लोबल फाइनेंशियल सिस्टम को संतुलन में बनाए रखना. आज IMF के कुल 191 सदस्य देश हैं, जिसमें भारत और पाकिस्तान दोनों शामिल हैं. लेकिन सबसे बड़ा सवाल ये है कि IMF के पास इतना पैसा आखिर आता कहां से है?
IMF का सबसे बड़ा स्रोत होता है “मेंबर कोटा” यानी सदस्य देशों का हिस्सा. जब कोई देश IMF का सदस्य बनता है, तो उसे एक निर्धारित रकम IMF को देनी होती है जो उस देश की GDP, आर्थिक ताकत और वैश्विक भागीदारी के हिसाब से तय की जाती है. इसी को कोटा कहते हैं. जितना ज्यादा कोटा, उतनी ही IMF में उस देश की अहमियत और वोटिंग पावर. यही पैसा IMF की तिजोरी को भरता है और जब किसी सदस्य देश को कर्ज देने की ज़रूरत होती है, तो IMF इसी फंड का उपयोग करता है.
कोटा ही नहीं, ब्याज से भी कमाई करता है IMF
IMF केवल कोटा से ही पैसा नहीं बनाता. जब यह किसी देश को कर्ज देता है तो उस पर ब्याज भी लेता है. यह ब्याज IMF के लिए कमाई का एक प्रमुख ज़रिया है. IMF समय-समय पर अपने नियमों के मुताबिक कर्ज पर ब्याज दर तय करता है, और उसी के अनुसार देनदारी बनती है. इसके अलावा IMF के पास दो और प्रमुख रास्ते होते हैं पैसे का इंतज़ाम करने के लिए. पहला है New Arrangements to Borrow (NAB) और दूसरा है Bilateral Borrowing Agreements (BBA).
जब IMF को अपने सामान्य संसाधनों से ज्यादा पैसे की जरूरत पड़ती है, तो वह NAB के जरिए कुछ सदस्य देशों से कर्ज लेता है. वहीं BBA के तहत वह कुछ चुनिंदा देशों के साथ विशेष समझौते के ज़रिए अतिरिक्त धनराशि जुटाता है. यानी IMF खुद भी कर्ज लेता है ताकि वह दूसरों को कर्ज दे सके. ये व्यवस्था उसे विश्व की सबसे बड़ी अंतरराष्ट्रीय ऋणदाता संस्था बनाती है.
IMF आखिर कैसे और कब देता है कर्ज?
IMF का मकसद किसी भी देश को बर्बादी से पहले स्थिरता की ओर ले जाना होता है. इसके लिए वह आर्थिक संकट में फंसे सदस्य देशों को तीन प्रकार के कर्ज देता है – Rapid Financing Arrangement, Extended Fund Facility और Stand-By Arrangement. हर योजना की शर्तें अलग होती हैं और कर्ज पाने के लिए देश को IMF के निर्देशों का पालन करना जरूरी होता है.
IMF सिर्फ पैसे नहीं देता बल्कि उसकी शर्तें काफी सख्त होती हैं. वह उस देश की अर्थव्यवस्था पर नजर रखता है, वहां की सरकार को नीतिगत सुधार करने के लिए कहता है, सब्सिडी कम करने, टैक्स बढ़ाने या सरकारी खर्च घटाने जैसे कदम भी सुझाता है. यही वजह है कि IMF का कर्ज आम जनता के लिए राहत कम और सख्ती ज्यादा लेकर आता है.
कौन-कौन देश हैं IMF के सबसे बड़े कर्जदार?
अब सवाल आता है कि कौन हैं वो देश जो IMF से बार-बार मदद मांगते हैं? आंकड़ों के अनुसार इस समय IMF के सबसे बड़े कर्जदार देशों में पहले नंबर पर है अर्जेंटीना, जिसे IMF ने करीब 43 बिलियन डॉलर का कर्ज दे रखा है. उसके बाद यूक्रेन, मिस्र और फिर आता है पाकिस्तान का नाम. पाकिस्तान पर पहले से ही IMF का करीब 7 बिलियन डॉलर का कर्ज था और अब इस 1 बिलियन की नई किश्त से यह बोझ और बढ़ गया है. इसके अलावा इक्वाडोर, कोलंबिया, अंगोला, केन्या और बांग्लादेश जैसे देश भी IMF से लोन लेने वालों की सूची में शामिल हैं. खास बात ये है कि भारत ने 1993 के बाद कभी भी IMF से कोई कर्ज नहीं लिया. इसका मतलब भारत की आर्थिक स्थिति पिछले तीन दशकों से काफी संतुलित रही है.
पाकिस्तान को बार-बार क्यों देता है IMF कर्ज?
IMF के लिए पाकिस्तान एक ऐसा केस बन चुका है जो बार-बार ICU में आता है और IMF उसे ऑक्सीजन देता है. कारण है पाकिस्तान की आर्थिक नीतियों की अस्थिरता, फालतू सैन्य खर्च और भ्रष्टाचार. पाकिस्तान के पास डॉलर खत्म हो जाते हैं, विदेशी निवेशक भरोसा खो देते हैं, रिजर्व घट जाते हैं और फिर IMF ही एकमात्र सहारा बनता है. लेकिन अब भारत-पाक के मौजूदा हालात को देखते हुए यह सवाल उठता है कि क्या ये कर्ज पाकिस्तान को स्थिर करेगा या भारत के खिलाफ उकसाने में और साहस देगा? IMF अपनी रिपोर्ट्स में कहता है कि कर्ज देने का फैसला केवल आर्थिक आधार पर होता है, लेकिन इसके भू-राजनीतिक असर को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता.
आज IMF केवल एक वित्तीय संस्था नहीं बल्कि वैश्विक राजनीति और अर्थव्यवस्था का एक मजबूत हथियार बन चुका है. इसके पास पैसे की कोई खान नहीं है, लेकिन दुनियाभर से आए योगदान, कर्ज पर मिलने वाला ब्याज और खास वित्तीय समझौते उसे सबसे ताकतवर ऋणदाता बना देते हैं. पाकिस्तान को मिला ताजा कर्ज यह साबित करता है कि IMF उन देशों को बार-बार उबारता है जो खुद अपनी अर्थव्यवस्था को संभाल नहीं पाते. लेकिन इसके पीछे की शर्तें और राजनीतिक दवाब IMF की भूमिका को कहीं न कहीं विवादित भी बनाते हैं.