बांग्लादेश में सियासी दलों को हिंदुओं की चेतावनी, कहा– अब संसद में आरक्षण दो वरना...
बांग्लादेश में हिंदू समुदाय ने चेतावनी दी है कि जब तक उन्हें संसद में आरक्षित सीटें और अलग चुनाव व्यवस्था नहीं मिलती, वे किसी भी चुनाव में हिस्सा नहीं लेंगे. ढाका प्रेस क्लब के बाहर हुए प्रदर्शन में नेताओं ने मंदिरों की तोड़फोड़, जमीन कब्जा और महिलाओं पर अत्याचार जैसे मामलों पर सरकार की चुप्पी पर नाराज़गी जताई.

बांग्लादेश की राजधानी ढाका इस शुक्रवार को एक बार फिर गवाह बनी उस आवाज की जिसे सालों से दबाया गया, अनसुना किया गया और नजरअंदाज किया गया. ढाका स्थित नेशनल प्रेस क्लब के बाहर आयोजित मानव श्रृंखला और विरोध सभा में बांग्लादेश के अल्पसंख्यक हिंदू समुदाय ने अपनी पीड़ा को पूरे देश के सामने रखा. उन्होंने एलान कर दिया है कि अब अगर संसद में हमें आरक्षित सीटें और अलग चुनाव प्रणाली नहीं मिलती, तो हम किसी भी राष्ट्रीय चुनाव का हिस्सा नहीं बनेंगे.
हिंदू समुदाय की नाराज़गी चरम पर
बांग्लादेश नेशनल हिंदू महासभा के नेतृत्व में इस विरोध प्रदर्शन में हिस्सा लेने वाले सैकड़ों लोगों की आवाज़ एक थी. महासभा के अध्यक्ष दिनबंधु रॉय, कार्यकारी अध्यक्ष प्रदीप कुमार पाल, और महासचिव गोविंद चंद्र प्रमाणिक ने साफ शब्दों में कहा कि अब यह समुदाय चुप नहीं बैठेगा. इन नेताओं का कहना है कि हर बार चुनाव के दौरान हिंदू समुदाय को अनदेखा किया जाता है. न तो उनके पास संसद में प्रतिनिधित्व होता है, न ही उनकी समस्याओं को कोई मंच मिलता है. इस लिहाज से यह लोकतंत्र नहीं, बहुसंख्यक तंत्र बन गया है.
हिंदुओं का हुआ उत्पीड़न
प्रदर्शन में जिन मुद्दों को उठाया गया, वे केवल राजनीतिक नहीं थे. वहां मौजूद हर व्यक्ति के मन में गुस्सा और दर्द था. प्रदर्शन में यह भी बताया गया कि किस तरह बांग्लादेश में हिंदू मंदिरों को तोड़ा गया, मूर्तियों को क्षतिग्रस्त किया गया, हिंदू घरों पर हमले किए गए और महिलाओं के साथ हिंसा की गई. धार्मिक पहचान आज बांग्लादेश में एक अपराध बन गई है. इस प्रदर्शन के दौरान यह खुलासा हुआ कि अब तक करीब 26 लाख एकड़ जमीन को 'दुश्मन संपत्ति कानून' के तहत हिंदू समुदाय से छीन लिया गया है. यह कानून मूलतः भारत-पाकिस्तान विभाजन के बाद छोड़ी गई संपत्तियों पर लागू किया गया था. लेकिन बांग्लादेश में इसे अल्पसंख्यकों को परेशान करने का औजार बना लिया गया. ढाका समेत देश के कई हिस्सों में मंदिरों की जमीन, देवी-देवताओं की संपत्ति और धार्मिक स्थलों को अवैध रूप से कब्जा कर लिया गया है. यह न केवल धार्मिक स्वतंत्रता पर हमला है, बल्कि संविधान की आत्मा पर भी सवाल उठाता है.
लोकतंत्र पर बड़ा सवाल
बांग्लादेश सरकार के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हिंदू महासभा के नेताओं का यह भी कहना है कि बांग्लादेश की आज़ादी के वक्त सभी धर्मों को समान अधिकार देने की बात की गई थी. लेकिन आज सच्चाई यह है कि प्रशासनिक ढांचे से लेकर संवैधानिक बदलावों तक, किसी भी स्तर पर हिंदू समुदाय की भागीदारी नहीं है. संविधान में संशोधन होते हैं, लेकिन हिंदुओं से कभी राय नहीं ली जाती. इसके साथ ही नेताओं ने यह चेतावनी भी दी कि यदि सरकार ने उनकी मांगों को नहीं माना, तो हिंदू समुदाय न केवल चुनावों का बहिष्कार करेगा, बल्कि लोकतांत्रिक प्रक्रिया से खुद को पूरी तरह अलग कर लेगा. यह केवल एक चेतावनी नहीं, बल्कि एक सामाजिक विस्फोट की शुरुआत हो सकती है.
गौरतलब है कि बांग्लादेश के अंतरिम सरकार के प्रमुख मोहम्मद यूनुस बीते कई महीनों से अपने देश में चौतरफा विरोध का सामना कर रहे है. विपक्षी सियासी दलों से लेकर छात्रों के संगठन और आर्मी प्रमुख ने आम चुनाव को लेकर एक तरफ मोहम्मद यूनुस पर दबाव बनाया. वही देश में सरकारी कर्मचारी भी अपने मौजूदा सरकार के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे है. हालाँकि विरोध प्रदर्शन के दबाव में बकरीद की पूर्व संध्या पर मोहम्मद यूनुस ने आम चुनाव को लेकर ऐलान किया है कि अगले वर्ष अप्रैल महीने में आम चुनाव करवाए जाएंगे.