अमेरिका में ट्रंप के खिलाफ अब तक का सबसे बड़ा प्रदर्शन, सड़कों पर उतरे लाखों लोग, क्या है 'नो किंग्स' प्रोटेस्ट
‘No Kings’ आंदोलन ने एक बार फिर यह दिखा दिया कि अमेरिका और दुनिया के नागरिक तानाशाही प्रवृत्तियों के खिलाफ चुप नहीं बैठेंगे. ये प्रदर्शन केवल ट्रंप के खिलाफ नहीं, बल्कि उस सोच के खिलाफ हैं जो लोकतंत्र को दबाने की कोशिश करती है
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अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की नीतियों के खिलाफ अमेरिका से लेकर ब्रिटेन तक हजारों लोग सड़कों पर उतर आए. इस प्रदर्शन को नाम दिया गया ‘No Kings’, यानी “हमारे देश में राजा नहीं होता.” यह विरोध ट्रंप की कई नीतियों जैसे माइग्रेशन, शिक्षा और सुरक्षा से जुड़े फैसलों के खिलाफ है. प्रदर्शनकारियों का कहना है कि ट्रंप एक तानाशाही तरीके से सरकार चला रहे हैं और लोकतंत्र की भावना को चोट पहुँचा रहे हैं.
दुनियाभर में एक साथ हुए 2600 से ज्यादा प्रदर्शन
इस विरोध की सबसे खास बात यह रही कि यह सिर्फ अमेरिका में ही नहीं, बल्कि दुनिया के कई देशों में एक साथ हुआ. आयोजकों के मुताबिक, अमेरिका सहित कुल 2600 से ज्यादा जगहों पर ‘नो किंग्स’ प्रदर्शन हुए. लंदन, मैड्रिड और बार्सिलोना जैसे बड़े शहरों में भी लोग बड़ी संख्या में जमा हुए और ट्रंप की नीतियों के खिलाफ आवाज़ उठाई. लंदन में अमेरिकी दूतावास के बाहर सैकड़ों लोग जमा हुए और हाथों में बैनर लेकर विरोध किया.
वॉशिंगटन डीसी में नज़ारा था खास
अमेरिका की राजधानी वॉशिंगटन डीसी में यह प्रदर्शन बेहद खास रहा. यहां लोगों ने अलग-अलग तरह की पोशाकें पहन रखी थीं और बैनर लेकर सड़कों पर मार्च कर रहे थे. यह मार्च पेंसिल्वेनिया एवेन्यू पर हुआ और इसमें लोगों ने शांति से लेकिन मजबूती से अपनी बात रखी. इस बड़े आयोजन को सफल बनाने के लिए 300 से ज्यादा स्थानीय संगठनों ने मिलकर तैयारी की थी.
ट्रंप की नीतियां क्यों बनी विरोध का कारण?
प्रदर्शनकारियों का गुस्सा ट्रंप की उन नीतियों को लेकर है जो उन्होंने राष्ट्रपति बनने के सिर्फ 10 महीनों के अंदर लागू कीं. उन्होंने माइग्रेशन के नियम और भी सख्त कर दिए हैं. कई कॉलेजों की विविधता नीति की वजह से उनकी फंडिंग रोकने की धमकी दी. साथ ही कई राज्यों में नेशनल गार्ड की तैनाती की अनुमति भी दी है. विरोध करने वालों का कहना है कि ये कदम अमेरिका को तानाशाही की ओर ले जा रहे हैं और लोगों के बीच बंटवारा पैदा कर रहे हैं.
'हमारे देश में राजा नहीं होता'
इस आंदोलन को शुरू करने वाले ग्रुप ‘Indivisible’ की सह-संस्थापक लीह ग्रीनबर्ग ने कहा कि अमेरिका की सबसे बड़ी खासियत यह है कि यहाँ कोई राजा नहीं होता. उन्होंने कहा कि लोग खुलकर अपने नेताओं की आलोचना कर सकते हैं और यही लोकतंत्र की खूबसूरती है. उन्होंने यह प्रदर्शन तानाशाही मानसिकता के खिलाफ शांतिपूर्ण विरोध बताया.
ट्रंप का जवाब – "मैं राजा नहीं हूं"
जब इन प्रदर्शनों के बारे में ट्रंप से पूछा गया, तो उन्होंने सीधे तौर पर ज्यादा प्रतिक्रिया नहीं दी. लेकिन फॉक्स बिजनेस चैनल को दिए गए इंटरव्यू में उन्होंने कहा कि "वे मुझे राजा कह रहे हैं, लेकिन मैं राजा नहीं हूं." इस बयान से ट्रंप ने यह दिखाने की कोशिश की कि वो खुद को तानाशाह नहीं मानते.
300 से ज्यादा संगठनों का समर्थन
इस आंदोलन को सफल बनाने में अमेरिकन सिविल लिबर्टीज यूनियन (ACLU) जैसे संगठनों का भी बड़ा हाथ रहा. उन्होंने हज़ारों वालंटियर्स को ट्रेनिंग दी, ताकि वे विरोध मार्च के दौरान मार्शल बनकर भीड़ को संभाल सकें. सोशल मीडिया पर भी इस प्रोटेस्ट को लेकर जमकर प्रचार हुआ, जिससे लाखों लोगों को जुड़ने का मौका मिला.
राजधानी के आसपास भी हुआ ज़ोरदार प्रदर्शन
वॉशिंगटन डीसी के आसपास जैसे उत्तरी वर्जीनिया और अर्लिंग्टन जैसे इलाकों में भी लोग सड़कों पर उतरे. अर्लिंग्टन नेशनल सेमेट्री के पास सैकड़ों लोग इकट्ठा हुए. यह वही जगह है जहां ट्रंप एक नया स्मारक द्वार बनाना चाहते हैं. इस योजना के विरोध में भी कई लोग जमा हुए.
बड़े नेताओं और हस्तियों का समर्थन
इस आंदोलन को अमेरिका के प्रगतिशील नेताओं का भी समर्थन मिला. बर्नी सैंडर्स, एलेक्ज़ेंड्रिया ओकासियो-कोर्टेज़ और हिलेरी क्लिंटन जैसे बड़े नेताओं ने खुलकर आंदोलन के साथ खड़े होने की बात कही. इसके अलावा कई जानी-मानी हस्तियों ने भी सोशल मीडिया पर इस प्रोटेस्ट का समर्थन किया.
रिपब्लिकन नेताओं की कड़ी आलोचना
दूसरी ओर, रिपब्लिकन पार्टी के नेता इन प्रदर्शनों से नाराज़ हैं. हाउस स्पीकर माइक जॉनसन ने इन विरोधों को “देशविरोधी रैली” कहा और आरोप लगाया कि डेमोक्रेटिक नेता अमेरिका को कमजोर कर रहे हैं. कुछ नेताओं ने चेतावनी दी कि ऐसे प्रदर्शनों से हिंसा भड़क सकती है, और ट्रंप समर्थक चार्ली कर्क की हत्या का उदाहरण भी दिया.
लोकतंत्र और तानाशाही के बीच खिंचती लकीर
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‘No Kings’ आंदोलन ने एक बार फिर यह दिखा दिया कि अमेरिका और दुनिया के नागरिक तानाशाही प्रवृत्तियों के खिलाफ चुप नहीं बैठेंगे. ये प्रदर्शन केवल ट्रंप के खिलाफ नहीं, बल्कि उस सोच के खिलाफ हैं जो लोकतंत्र को दबाने की कोशिश करती है. शांतिपूर्ण तरीकों से अपनी बात रखना और सरकार से सवाल पूछना हर नागरिक का अधिकार है, और शायद यही इस आंदोलन का सबसे बड़ा संदेश भी है.
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