इस्लामिक कानून ने देश को बर्बाद कर दिया’, बांग्लादेश की लेखिका ने यूनुस को घेरा
Bangladesh में हिंदू अल्पसंख्यकों पर अत्याचार से जहां यूनुस सरकार इंकार करती रही वहीं, वहां के ही नागरिकों ने उनकी पोल खोल दी. बांग्लादेश में महिलाओं की हालत से लेकर हिंदुओं पर हमले तक एक एक राज खोला
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क्या हो जब नागरिकों के हितों के लिए उठी आवाज बगावत का रूप ले ले ? क्या हो जब सरकार के एक फैसले के खिलाफ शुरू हुई लड़ाई सरकार के साथ लड़ाई बन जाए ? एक कानून के लिए ऐसा विरोध की बाकी सारे कानून तोड़ दिए जाएं। देश का संविधान तार-तार हो जाए और देश को बर्बादी की कगार पर लाकर खड़ा कर दे। कुछ ऐसा ही हुआ बांग्लादेश के साथ। पिछले साल छात्रों के एक प्रदर्शन ने तत्कालीन शेख हसीना सरकार की नींव हिला दी।नतीजतन PM शेख हसीना को देश छोड़कर भारत की शरण लेनी पड़ी और वहां उदय हुआ यूनुस सरकार का। नोबेल प्राइस विनर मोहम्मद यूनुस बने वहां के सर्वेसर्वा। और उसी दिन से शुरू हुई बांग्लादेश की बर्बादी की कहानी।
आज बांग्लादेश के हालात किसी से छुपे नहीं हैं शेख हसीना सरकार के गिरते ही वहां कट्टरपंथियों के शासन ने देश को गर्त में धकेल दिया। जो बांग्लादेश भारत और भारतीयों के साथ सांप्रदायिक सौहार्द की भावना के रिश्ते साझा करता था वो ही बांग्लादेश हिंदू अल्पसंख्यकों के साथ बर्बर हो गया। हिंदुओं पर हमले हुए, महंत और पुजारियों को जेल में डाला गया। लेकिन यूनुस सरकार मूक बधिर रही। अब बांग्लादेश के अपने ही उसकी असलियत को उजागर कर रहे हैं। बांग्लादेश के मौजूदा हालात पर फेमस लेखिका तसलीमा नसरीन का दर्द छलका।उन्होंने खुलासा किया कि, देश की बर्बादी के पीछे इस्लामिक कानून है।
सोशल मीडिया X पर तसलीमा नसरीन ने एक लंबा चौड़ा पोस्ट साझा किया।जिसमें उन्होंने बताया कि कैसे महिला विरोधी सोच और इस्लामिक कानून देश की बर्बादी के लिए जिम्मेदार हो गए।तसलीमा ने लिखा। "जिस देश में इस्लामिक कानूनों को संविधान से ऊपर माना जाता है, जहां औरतों की बेइज्जती की जाती है वहां ऐसे हालात बनना कोई नई बात नहीं है। ब्रिटेन, न्यूजीलैंड, कनाडा जैसे देशों में कोई लिखित संविधान नहीं है लेकिन वो शानदार तरीके से चल रहे हैं। लेकिन बांग्लादेश में ऐसा क्या हुआ कि संविधान होने के बावजूद नहीं चल सका। संविधान का होना आखिरकार क्या मायने रखता है ? क्या इस देश ने कभी अपने संविधान का पूरी तरह पालन किया है ? संविधान के मूल सिद्धांत लोकतंत्र, समाजवाद, राष्ट्रवाद, और धर्मनिरपेक्षता थे क्या इस देश ने लोकतंत्र को बनाए रखा ? नहीं। लोकतंत्र का मतलब सिर्फ वोट देना नहीं होता। यह सबके समान अधिकारों के बारे में भी बताता है लेकिन क्या बांग्लादेश में महिलाओं को कभी समान अधिकार मिले ? नहीं मिले ।
तसलीमा नसरीन ने अपने पोस्ट में अल्पसंख्यकों पर लगातार हमले का भी जिक्र किया। उन्होंने दावा किया कि बांग्लादेश में हिंदू, बौद्ध और ईसाई धर्म को कमजोर किया गया। तसलीमा ने हिंदुओं पर अत्याचार को लेकर यूनुस सरकार से पूछा कि क्या हिंदुओं को प्रताड़ित नहीं किया गया ? हिंदुओं पर हमले को लेकर वैश्विक मंच से भारत की आलोचना की गई। लेकिन यूनुस सरकार इसे नकारती रही। यहां तक की UK की संसद में भी इस पर चिंता जताई गई।
शेख हसीना के बांग्लादेश छोड़ते ही वहां सेना और लोगों ने शासन अपने हाथ में ले लिया। मोहम्मद यूनुस तो जैसे मानों चेहरा मात्र बनकर रह गए। देश में फिर हिंसा भड़की, तोड़फोड़ आगजमी, हमले आम बात हो गई। इस्कॉन के पुजारी महंत चिन्मयानंद को अरेस्ट कर लिया गया। चिन्मयानंद की गिरफ्तारी के बाद हिंदू समाज के लोग सड़कों पर उतर आए लेकिन बांग्लादेश ये विरोध भला कहां सहने वाला था। चिन्मयानंद की गिरफ्तारी का विरोध कर रहे हिंदू समाज पर जमात के लोगों ने हमला कर दिया।
अपनी हरकतों से बांग्लादेश ने भारत से दूरी बना ली। रिश्तों में टकराव हुआ। संविधान को ताक पर रखकर कट्टरपंथियों की नफरती सोच से चलने वाला बांग्लादेश मानवता भूल गया। लेकिन नफरत की आग में जल रहे बांग्लादेश के लिए भारत ने मदद जारी रखी। आर्थिक संकट के बीच बांग्लादेश ने भारत से ही 2 लाख टन चावल निर्यात किए। बदले में भारत ने एक रुपया भी निर्यात शुल्क के रूप में नहीं लिया।
बहरहाल कंगाली और बर्बादी की राह पर खड़े बांग्लादेश की सच्चाई खुद उनके नागरिक बयां कर रहे हैं तस्वीरें पूरी दुनिया देख रही है जिस मोहम्मद यूनुस को शांति के लिए नोबेल प्राइस मिला था वो ही बांग्लादेश में अशांति और अस्थिरता को रोकने में नाकाम हैं. यहां नफरत की आग भड़क रही है इस्लामिक कानून के आगे संविधान दम तोड़ रहा है और अपने ही नागरिकों के अधिकारों का गला घोंट रहा है।
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