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'मुल्लाओं देश छोड़ो, तानाशाही मुर्दाबाद', ईरान में खामेनेई रिजीम के खिलाफ विद्रोह शुरू, US-इजरायल पर लगे आरोप

ईरान में सड़कों पर उतरकर क्लर्जी निजाम के खिलाफ भयंकर विरोध प्रदर्शन शुरू रहे हैं. सरकार और धार्मिक नेतृत्व के खिलाफ ‘मुल्लाओं को ईरान छोड़ना होगा’ और ‘तानाशाही मुर्दाबाद’ जैसे नारे लगाए जा रहे हैं.

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31 Dec 2025
( Updated: 31 Dec 2025
04:21 PM )
'मुल्लाओं देश छोड़ो, तानाशाही मुर्दाबाद', ईरान में खामेनेई रिजीम के खिलाफ विद्रोह शुरू, US-इजरायल पर लगे आरोप
Iran Protest / X

शिया बहुल इस्लामी देश ईरान में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए हैं. ऐसा लगता है कि ईरानी सरकार को इस बात की पहले से आशंका थी. ईरान के राष्ट्रपति मसूद पेजेशकियान ने इस संबंध में आशंका भी व्यक्त की थी कि अमेरिका, इजरायल और यूरोपीय देश ईरान में स्थिति बिगड़ने और अशांति फैलने का इंतजार कर रहे हैं, ताकि वे अपने हमलों को जायज ठहरा सकें. आपको बता दें कि लोग सड़कों पर उतरकर क्लर्जी निजाम के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं. इस दौरान सरकार और धार्मिक नेतृत्व के खिलाफ ‘मुल्लाओं को ईरान छोड़ना होगा’ और ‘तानाशाही मुर्दाबाद’ जैसे नारे लगाए जा रहे हैं.

ईरान में हो रहे प्रदर्शन के वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे हैं. इनमें देखा जा सकता है कि लोग एकजुट होकर इस्लामिक रिपब्लिक के खिलाफ आवाज उठाते दिख रहे हैं. लोगों का कहना है कि वे अब मौजूदा व्यवस्था से पूरी तरह थक चुके हैं.

क्या है ईरान का हालिया संकट?

आपको बता दें कि करीब 9.2 करोड़ की आबादी वाला ईरान गंभीर आर्थिक और वित्तीय संकट से गुजर रहा है. उसकी मुद्रा रियाल डॉलर की तुलना में अपने अब तक के सबसे निचले स्तर पर पहुंच गई है. पहले से ही खाने-पीने की चीजें महंगी थीं, दवाइयां भी आम लोगों की पहुंच से दूर हो रही थीं, ऐसे में हालिया जंग और प्रतिबंधों ने रोजमर्रा की जरूरतों को भी आम लोगों की पहुंच से बाहर कर दिया है. यही कारण है कि लोगों का गुस्सा अब सातवें आसमान पर पहुंच गया है.

क्या IRGC इस बार भी प्रदर्शन को दबा देगा?

इसे ईरान में हाल के दिनों में हुए विरोध प्रदर्शनों में से एक और सबसे बड़ा माना जा रहा है. ऐसा ही एक आंदोलन और प्रदर्शन 2022-23 में एंटी हिजाब कार्यकर्ता महसा अमीनी की मौत के बाद हुआ था. हालांकि, उसे सरकार ने सुरक्षा बलों और IRGC की सैन्य ताकत का इस्तेमाल कर दबा दिया था. करीब तीन साल बाद तेहरान, मशहद, शिराज और इस्फहान जैसे शहरों में प्रदर्शनकारियों और सुरक्षा बलों के बीच झड़पें शुरू हो गई हैं. इस बार भी पुलिस ने प्रदर्शनकारियों पर बल प्रयोग किया और लाठीचार्ज व आंसू गैस का इस्तेमाल किया.

मालूम हो कि ईरान में हालात इतने बद से बदतर होते जा रहे हैं कि सेंट्रल बैंक प्रमुख मोहम्मद रजा फरजीन को इस्तीफा देना पड़ा है. वहीं आम लोगों के बाद अब व्यापारियों, दुकानदारों और छोटे कारोबारियों का भी धैर्य जवाब दे गया है. उन्होंने भी खुलकर इसका विरोध करना शुरू कर दिया है. लोगों का कहना है कि महंगाई, बेरोजगारी और भ्रष्ट व्यवस्था ने जीना मुश्किल कर दिया है.

क्यों भड़का विद्रोह?

हालांकि विषय के जानकारों का मानना है कि ये हालिया प्रदर्शन अमेरिका के प्रतिबंधों के कारण शुरू हुए लगते हैं. आपको बता दें कि अमेरिका ने ईरान के साथ 2015 में हुए परमाणु समझौते से ट्रंप के पहले कार्यकाल में बाहर निकलने का फैसला किया था. उस दौरान ट्रंप प्रशासन ने ईरानी रेजीम के खिलाफ “मैक्सिमम प्रेशर” नीति अपनाने का निर्णय लिया था. इसके बाद कई नए तरह के प्रतिबंध लगाए गए, जिस कारण ईरान की अर्थव्यवस्था को बड़ा झटका लगा. ऐसे में अब, जब ट्रंप दूसरी बार अमेरिका के राष्ट्रपति बने हुए हैं, तो तेहरान पर दबाव और बढ़ गया है. ऊपर से अमेरिका के हमलों और इजरायल के साथ जंग ने हालात और बिगाड़ दिए हैं.

क्या इजरायल-यूएस हैं विरोध के पीछे?

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विशेषज्ञ मानते हैं कि ईरान की मौजूदा हालत अमेरिका के प्रतिबंधों से जुड़ी है. डोनाल्ड ट्रंप के पहले कार्यकाल में 2015 के परमाणु समझौते से बाहर निकलने और “मैक्सिमम प्रेशर” नीति अपनाने से ईरान की अर्थव्यवस्था को बड़ा झटका लगा था. अब ट्रंप के दोबारा राष्ट्रपति बनने के बाद दबाव और बढ़ गया है. ऐसे में देखने वाली बात होगी कि महसा अमीनी की मौत के बाद शुरू हुए प्रदर्शनों को ताकत के बल पर दबाने वाली ईरानी सरकार अब फिर से उठे विरोध के इस तूफान को कैसे रोकेगी.

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