Advertisement

बांग्लादेश का मुश्किल हुआ दाना-पानी... अब यूनुस सरकार ने बदला सुर, भारत से खरीदेगा 50000 टन चावल

भारत विरोधी रुख और अव्यावहारिक कदमों के बाद अब बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के तेवर नरम पड़ते दिख रहे हैं. यूनुस सरकार ने संकेत दिए हैं कि वह राजनीतिक बयानबाजी से हटकर आर्थिक हितों को प्राथमिकता देते हुए भारत के साथ रिश्तों में सुधार की दिशा में काम कर रही है.

Muhammad Yunus (File Photo)

भारत के खिलाफ लगातार कई साज़िशें रचने और कई अव्यावहारिक कदम उठाने के बाद अब बांग्लादेश की अंतरिम सरकार को हालात की गंभीरता समझ में आती दिख रही है. यूनुस सरकार की सोच में बदलाव के संकेत साफ नजर आने लगे हैं और भारत के साथ रिश्तों को लेकर अब एक सकारात्मक रुख सामने आया है. सरकार के वित्त सलाहकार सालेहुद्दीन अहमद ने कहा है कि मुख्य सलाहकार मुहम्मद यूनुस दोनों देशों के बीच बढ़े तनाव को कम करने की दिशा में प्रयास कर रहे हैं. उनके मुताबिक, प्रशासन अब राजनीतिक बयानबाजी से आगे बढ़कर आर्थिक हितों को प्राथमिकता दे रहा है और इसी समझ के तहत भारत के साथ व्यापारिक संबंधों को आगे बढ़ाने पर जोर दिया जा रहा है.

यूनुस सरकार ने क्या कहा?

मंगलवार को अपने कार्यालय में सरकारी खरीद से जुड़े सलाहकार परिषद समिति की बैठक के बाद पत्रकारों से बातचीत में सालेहुद्दीन अहमद ने कहा कि मुख्य सलाहकार भारत के साथ राजनयिक रिश्तों में सुधार के लिए अलग-अलग हितधारकों से बातचीत कर रहे हैं. जब उनसे पूछा गया कि क्या मुहम्मद यूनुस ने सीधे तौर पर भारत से बातचीत की है, तो उन्होंने बताया कि प्रत्यक्ष बातचीत भले ही न हुई हो, लेकिन इस मुद्दे से जुड़े कई महत्वपूर्ण लोगों से संपर्क जरूर किया गया है.

राजनीति के कारण व्यापार प्रभावित 

वित्त सलाहकार ने इस बात पर खास जोर दिया कि बांग्लादेश की व्यापार नीति किसी राजनीतिक दबाव या भावनात्मक फैसलों पर आधारित नहीं है. उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि यदि भारत से चावल आयात करना वियतनाम या किसी अन्य देश की तुलना में सस्ता पड़ता है, तो आर्थिक रूप से भारत से खरीदारी करना ही समझदारी होगी. अहमद के मुताबिक, भारत के बजाय वियतनाम से चावल मंगाने पर प्रति किलोग्राम लगभग 10 टका यानी करीब 0.082 अमेरिकी डॉलर अधिक खर्च आता है, जो कुल लागत को काफी बढ़ा देता है.

भारत से चावल क्यों ख़रीदना चाहती है यूनुस सरकार?

इसी आर्थिक तर्क के तहत बांग्लादेश सरकार ने मंगलवार को भारत से 50000 टन चावल खरीदने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है. सरकार का मानना है कि यह फैसला देश की खाद्य सुरक्षा को मजबूत करने के साथ-साथ दोनों देशों के बीच रिश्तों को बेहतर दिशा में ले जाने में भी मदद करेगा. सालेहुद्दीन अहमद ने कहा कि इस तरह के व्यावहारिक कदम न केवल बांग्लादेश के लिए फायदेमंद हैं, बल्कि क्षेत्रीय सहयोग को भी मजबूती देते हैं.

भारत और बांग्लादेश के रिश्तों का सबसे खराब दौर 

यह बयान ऐसे समय में आया है, जब कूटनीतिक जानकारों का दावा है कि ढाका और नई दिल्ली के बीच संबंध 1971 में पाकिस्तान से बांग्लादेश की आजादी के बाद अपने सबसे निचले स्तर पर पहुंच गए हैं. हाल के महीनों में दोनों देशों ने एक-दूसरे के राजनयिकों को तलब किया है और दोनों राजधानियों सहित कई जगहों पर विरोध प्रदर्शन भी देखने को मिले हैं. इन घटनाओं ने संबंधों में तनाव की धारणा को और गहरा किया है. हालांकि, वित्त सलाहकार सालेहुद्दीन अहमद इस आकलन से पूरी तरह सहमत नहीं दिखे. उन्होंने कहा कि स्थिति उतनी खराब नहीं है, जितनी बाहर से दिखाई देती है. उनके अनुसार, कई बार कुछ बयान या घटनाएं ऐसी होती हैं, जिन्हें पूरी तरह रोका नहीं जा सकता. लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि दोनों देशों के रिश्ते टूटने की कगार पर हैं.

हम चाहते हैं भारत के साथ बेहतर रिश्ते

यूनुस के सलाहकार से पूछा गया कि क्या भारत विरोधी बयान लोगों या किसी बाहरी ताकत के इशारे पर दिए जा रहे हैं, तो अहमद ने साफ कहा कि बांग्लादेश किसी भी तरह की कड़वाहट नहीं चाहता. उन्होंने चेतावनी देते हुए कहा कि यदि कोई बाहरी तत्व भारत और बांग्लादेश के बीच तनाव बढ़ाने की कोशिश कर रहा है, तो यह किसी के हित में नहीं होगा. उनके मुताबिक, ऐसे बयान राष्ट्रीय भावना का प्रतिनिधित्व नहीं करते, बल्कि वे बांग्लादेश के लिए अनावश्यक जटिलताएं पैदा करते हैं. अहमद ने दोहराया कि सरकार का मकसद व्यावहारिक सोच और आर्थिक तर्कों के आधार पर फैसले लेना है.पड़ोसी देशों के साथ स्थिर, संतुलित और सहयोगपूर्ण रिश्ते बनाए रखना ही बांग्लादेश की प्राथमिकता है. भारत से चावल खरीदने का फैसला इसी नीति का हिस्सा माना जा रहा है.

बताते चलें कि बांग्लादेश सरकार का यह रुख साफ संकेत देता है कि वह राजनीतिक तनावों के बावजूद क्षेत्रीय स्थिरता और आर्थिक लाभ को तरजीह दे रही है. भारत के साथ व्यापारिक सहयोग बढ़ाकर ढाका यह संदेश देना चाहता है कि संवाद और व्यावहारिक फैसलों के जरिए रिश्तों में सुधार की गुंजाइश अभी भी पूरी तरह मौजूद है.

Advertisement

यह भी पढ़ें

Advertisement

अधिक →