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सैन्य विफलताओं को लेकर जिस असीम मुनीर की हो रही थी आलोचना, उसी को पाक सरकार ने बनाया फील्ड मार्शल, जानिए क्या है इसका मतलब?

पाकिस्तान सरकार ने सेना प्रमुख जनरल असीम मुनीर को फील्ड मार्शल के पद पर पदोन्नत कर दिया है, जो कि देश का सर्वोच्च सैन्य रैंक है. यह फैसला ऐसे समय पर आया है जब भारत ने ऑपरेशन सिंदूर के तहत आतंकवादी ठिकानों पर सटीक हमले किए हैं.

सैन्य विफलताओं को लेकर जिस असीम मुनीर की हो रही थी आलोचना, उसी को पाक सरकार ने बनाया फील्ड मार्शल, जानिए क्या है इसका मतलब?
पाकिस्तान में एक बड़ा सैन्य निर्णय लेते हुए प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ की सरकार ने जनरल असीम मुनीर को सेना के सर्वोच्च पद 'फील्ड मार्शल' पर पदोन्नत कर दिया है. यह वही असीम मुनीर हैं जिन्हें हाल ही में भारतीय सेना के साथ सीमा पर हुए टकरावों में पाकिस्तान की सैन्य विफलताओं को लेकर आलोचनाओं का सामना करना पड़ रहा था. लेकिन इसके बावजूद प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने उन्हें सर्वोच्च सैन्य रैंक देकर देश और दुनिया को यह संदेश देने की कोशिश की है कि वे सेना के साथ मजबूती से खड़े हैं.

असीम मुनीर की नियुक्ति के पीछे राजनीतिक समीकरण

पाकिस्तानी सेना और सियासत का गठजोड़ कोई नया नहीं है. लेकिन इस बार जो खेल हुआ है, वो एक हार को जीत के रूप में बेचने की रणनीति जैसा दिखता है. असीम मुनीर वही सैन्य अधिकारी हैं जिन्होंने इस साल फरवरी में हुए आम चुनावों में शहबाज शरीफ की पार्टी पीएमएल-एन को सत्ता में वापस लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. इस चुनाव में सेना की दखल पर सवाल भी उठे और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर आलोचना भी हुई. लेकिन शहबाज सरकार ने इसके बदले असीम मुनीर को ‘फील्ड मार्शल’ की उपाधि देकर उनके योगदान को सार्वजनिक मान्यता दे दी है.

भारत से टकराव और पाक सेना की नाकामी

हाल के महीनों में भारत और पाकिस्तान के बीच सीमा पर तनाव बढ़ा है. भारतीय वायुसेना ने पाकिस्तानी वायुसेना के 11 ठिकानों को सटीक निशाना बनाकर नुकसान पहुंचाया. ऐसे में पाकिस्तान की सेना और वायुसेना दोनों को रणनीतिक रूप से पीछे हटना पड़ा. इसके बावजूद पाकिस्तान सरकार ने न सिर्फ असीम मुनीर को पदोन्नत किया बल्कि वायुसेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल जहीर अहमद बाबर सिद्धू का कार्यकाल भी बढ़ा दिया. यह फैसला उस समय लिया गया जब सेना और सरकार, दोनों को जनता के गुस्से का सामना करना पड़ रहा है.

असीम मुनीर को लेकर पूरे पाकिस्तान में विरोध की लहर है. सोशल मीडिया से लेकर सड़कों तक लोग उन्हें सेना प्रमुख के पद से हटाने की मांग कर रहे हैं. लेकिन शहबाज सरकार ने फील्ड मार्शल की घोषणा कर यह साफ कर दिया है कि वे असीम के साथ हैं. यह कदम न केवल सेना के मनोबल को बनाए रखने की कोशिश है बल्कि सत्ताधारी सरकार की स्थिति को भी मजबूत करने का एक राजनीतिक हथियार बन गया है.

पंजाब कनेक्शन और सत्ता का संतुलन

असीम मुनीर और शहबाज शरीफ दोनों का संबंध पाकिस्तान के सबसे बड़े सूबे पंजाब से है. पाकिस्तान के सरकारी ढांचे में पंजाब की भागीदारी सबसे अधिक रही है और इसे लेकर देश के अन्य हिस्सों में नाराजगी भी देखी जाती रही है. ऐसे में यह 'पंजाबी गठबंधन' देश के भीतर अलगाव की भावना को और गहरा कर सकता है, खासकर बलूचिस्तान और खैबर पख्तूनख्वा जैसे इलाकों में. लेकिन इससे शहबाज सरकार को तत्कालिक रूप से सत्ता का संतुलन साधने में मदद जरूर मिलेगी.

शहबाज सरकार द्वारा लिया गया यह निर्णय एक दोधारी तलवार की तरह है. एक ओर यह सेना को सम्मान और आत्मविश्वास देने का प्रतीक है, दूसरी ओर यह उन नागरिकों को निराश करता है जो जवाबदेही की उम्मीद कर रहे थे. जब एक जनरल को नाकामी के बाद पुरस्कार के रूप में फील्ड मार्शल बना दिया जाए, तो यह न केवल लोकतंत्र के सिद्धांतों पर सवाल खड़े करता है बल्कि सेना की कार्यप्रणाली और जवाबदेही को लेकर भी चिंताएं बढ़ाता है.

जनरल असीम मुनीर को फील्ड मार्शल की पदोन्नति सिर्फ एक सैन्य फैसला नहीं, बल्कि पाकिस्तान की राजनीति में सेना के गहराते दखल का प्रतीक बन चुकी है. यह दिखाता है कि कैसे एक लोकतांत्रिक सरकार भी सत्ता में बने रहने के लिए सेना की ताकत का सहारा लेती है. पाकिस्तान के इस नए घटनाक्रम ने आने वाले दिनों में देश की सियासत और सैन्य संतुलन को किस दिशा में मोड़ दिया है, यह देखना बाकी है. पर इतना तय है कि इस फैसले ने पाकिस्तान की राजनीतिक-सैन्य चालों में एक नया अध्याय जोड़ दिया है.

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