नो कॉल्स, नो ईमेल… ऑफिस के बाद बेफिक्र होकर इग्नोर करें बॉस का कॉल! लोकसभा में पेश राइट टू डिस्कनेक्ट बिल
देश में लंबे समय से ड्यूटी की अवधी (Duration) पर बहस चल रही है. दिग्गज टेक कंपनी इंफोसिस के मालिक नारायण मूर्ति ने हफ्ते में 72 घंटे काम करने की वकालत की थी. उनके इस तर्क का कई लोगों ने विरोध किया था.
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अगर आप नौकरीपेशा हैं तो ये खबर आपके लिए है. अमूमन नौकरीपेशा लोगों को ड्यूटी के समय के बाद भी ड्यूटी करनी पड़ जाती है. मतलब ऑफिस से जाने के बाद भी बॉस की कॉल को इग्नोर नहीं कर पाते. अर्जेंट है, जरूरी है, आज ही पूरा करना है… बोलकर बॉस आपको काम बताते हैं और वो करना भी पड़ता है, लेकिन अब आप बॉस की कॉल डिस्कनेक्ट कर पाएंगे और ऐसा करने पर आपसे कोई जवाब भी नहीं मांगा जाएगा.
संसद के शीतकालीन सत्र में सांसद नौकरीपेशा लोगों के हितों से जुड़ा बड़ा बिल लेकर आए हैं. राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) की सुप्रिया सुले ने ‘राइट टू डिस्कनेक्ट बिल 2025’ पेश किया है. अगर संसद के दोनों सदनों से यह बिल पास हो जाता है तो कॉरपोरेट जगत के लिए यह बहुत बड़ा बदलाव होगा.
राइट टू डिस्कनेक्ट बिल में क्या है?
लोकसभा में एक प्राइवेट मेंबर बिल पेश किया गया. जिसमें कर्मचारियों को ऑफिस समय के बाद काम से जु़ड़े फोन कॉल्स और ईमेल्स का जवाब न देने की आजादी है. इस बिल में कर्मचारियों के लिए वेलफेयर अथॉरिटी बनाने का प्रस्ताव भी है. जो ऑफिस समय के बाद या छुट्टी में काम से इंकार की इजाजत देता है. इस बिल को लाने का मकसद बेहतर क्वालिटी ऑफ लाइफ है.
‘पर्सनल लाइफ में बड़ा खतरा’
बिल पेश करने वालीं सांसद सुप्रिया सुले ने एक्स पोस्ट पर जानकारी देते हुए लिखा, सुप्रिया सुले ने एक्स पर लिखा, 'इस बिल का उद्देश्य लोगों को बेहतर क्वालिटी ऑफ लाइफ और स्वस्थ वर्क-लाइफ बैलेंस देना है, ताकि आज के डिजिटल कल्चर से पैदा होने वाले बर्नआउट को कम किया जा सके.' उन्होंने कहा, डिजिटल और कम्युनिकेशन टेक्नोलॉजी जहां काम को फ्लेक्सिबल बनाती है, वहीं यह पर्सनल और प्रोफेशनल जीवन की सीमाओं को धुंधला करने का बड़ा खतरा भी पैदा करती है.
Introduced three forward-looking Private Member Bills in the Parliament:
— Supriya Sule (@supriya_sule) December 5, 2025
The Paternity and Paternal Benefits Bill, 2025, introduces paid paternal leave to ensure fathers have the legal right to take part in their child's early development. It breaks the traditional model,… pic.twitter.com/YjrWw4LFwf
सुप्रिया सुले ने बताया, बिल के प्रावधानों के अनुसार, किसी भी तरह की अवहेलना (नॉन-कम्प्लायंस) के केस में संबंधित कंपनी या सोसायटी पर उसके कर्मचारियों की टोटल सैलरी का 1 प्रतिशत जुर्माना लगाया जाएगा. यह बिल हर कर्मचारी को काम से जुड़े इलेक्ट्रॉनिक कम्युनिकेशन- जैसे कॉल, ईमेल और मैसेज से दूर रहने का अधिकार देता है.
कौन ला सकता है बिल?
लोकसभा और राज्यसभा दोनों के सांसद प्राइवेट मेंबर बिल ला सकते हैं. इसमें जनता से जुड़ा कोई भी जरूरी मुद्दा हो सकता है. दोनों सदनों से मंजूरी मिलने के बाद कानून बनाया जाता है. हालांकि प्राइवेट मेंबर बिल के ज्यादातर मामलों में बिल वापस ही लिए जाते हैं.
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देश में लंबे समय से ड्यूटी समय पर बहस चल रही है. दिग्गज टेक कंपनी इंफोसिस के मालिक नारायण मूर्ति ने हफ्ते में 72 घंटे काम करने की वकालत की थी. उनके इस तर्क का कई लोगों ने विरोध किया था. ऑफिस में काम के ज्यादा घंटे शरीर और दिमाग दोनों पर बुरा असर डाल सकते हैं. इससे काम की क्वालिटी भी खराब हो सकती है. इसके खिलाफ ‘मी टाइम, पर्सनल टाइम, पर्सनल-प्रोफेशनल लाइफ बैलेंस’ जैसे तर्क भी दिए गए. ऐसे में अगर संसद में राइट टू डिस्कनेक्ट बिल पास होता है तो यह नारायण मूर्ति के तर्कों को भी धराशायी करेंगे.
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