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जनता के 204 करोड़ स्वाहा... लोकसभा में 37 घंटे और राज्यसभा में मात्र 47 घंटे हुआ काम, हंगामे की भेंट चढ़ा संसद का मानसून सत्र

संसद के मानसून सत्र में जमकर हंगामा हुआ. इसके चलते जिस लोकसभा को 120 घंटे चलना था, लेकिन काम सिर्फ 37 घंटे हुआ. 83 घंटे हंगामे में बर्बाद हो गए. यानी 31% कामकाज और 69% समय शोर-शराबे में निकल गया.राज्यसभा में भी यही हाल रहा. 120 घंटे के मुकाबले केवल 47 घंटे काम हुआ. बाकी 73 घंटे सांसदों की राजनीति की भेंट चढ़ गए.

22 Aug, 2025
( Updated: 06 Dec, 2025
06:15 AM )
जनता के 204 करोड़ स्वाहा... लोकसभा में 37 घंटे और राज्यसभा में मात्र 47 घंटे हुआ काम, हंगामे की भेंट चढ़ा संसद का मानसून सत्र
Parliament (File Photo)

देश में जब भी लोकसभा चुनाव यानी आम चुनाव आते हैं तो राजनीतिक दल और उनके प्रत्याशी जनता के बीच जाकर बड़े-बड़े वादे करते हैं. वे कहते हैं कि अगर जनता उन्हें वोट के रूप में आशीर्वाद देगी तो वे अपने क्षेत्र का विकास करेंगे और जनता से जुड़े मुद्दों को संसद में मजबूती से उठाएंगे. लेकिन इस बार तस्वीर कुछ बदली-बदली नजर आई है. विपक्षी दलों ने हर मुद्दे पर इतना हंगामा किया कि मानसून सत्र में जिस लोकसभा को 120 घंटे चलना था, वहां केवल 37 घंटे ही काम हो सका. ऐसी ही राजनीतिक हालातों के लिए एक समय बड़े समाजवादी नेता रहे डॉ. राम मनोहर लोहिया ने कहा था कि अगर सड़कें खामोश रहेंगी तो संसद आवारा हो जाएगी. उनका मतलब था कि लोकतंत्र को जिंदा और सक्रिय बनाए रखने के लिए जनता को खुद जागरूक रहना होगा. यही वजह है कि इस नारे को याद करते हुए हम आपको संसद के मानसून सत्र के आखिरी दिन का पूरा हाल बताना चाहते हैं.

संसद में हंगामा और घटता कामकाज

मानसून सत्र में लोकसभा के सांसदों को 120 घंटे देशहित के मुद्दों पर चर्चा करनी थी. लेकिन सच्चाई यह है कि केवल 37 घंटे ही काम हुआ. यानी 83 घंटे बर्बाद कर दिए गए. कुल मिलाकर 31 फीसदी काम हुआ और 69 फीसदी समय राजनीतिक हंगामे में निकल गया. यही हाल राज्यसभा का भी रहा. वहां 120 घंटे के एजेंडे में से सिर्फ 47 घंटे काम हुआ. यानी सांसदों ने 38 फीसदी काम किया और 62 फीसदी समय आपसी राजनीति की भेंट चढ़ गया. ऐसे में आम जनता संसद से सैकड़ों, हज़ारों किलोमीटर दूर छोटे शहरों और गांवों में बैठकर भी यही सोचती रही कि उनके चुने हुए प्रतिनिधि ही बदलाव की राह दिखाएंगे. वहां हालात इतने कठिन हैं कि बिजली न होने पर अस्पतालों में मरीजों का इलाज मोबाइल टॉर्च की रोशनी में करना पड़ता है. बावजूद इसके लोग भरोसा रखते हैं कि संसद में भेजे गए जनप्रतिनिधि बहस और फैसलों से उनके जीवन में सुधार लाएंगे.

जनता के करोड़ों रुपए नेताओं ने किए स्वाहा 

मानसून सत्र में संसद का कामकाज ठप रहा और इसका सीधा बोझ जनता की जेब पर पड़ा. लोकसभा में 83 घंटे काम नहीं हो सका. इसका मतलब है कि करीब 124 करोड़ 50 लाख रुपए व्यर्थ चले गए. वहीं राज्यसभा में 73 घंटे की बर्बादी हुई, जिससे लगभग 80 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ. यानी दोनों सदनों को मिलाकर जनता के करीब 204 करोड़ 50 लाख रुपए बेकार हो गए.

79वें स्वतंत्रता दिवस पर भी सुस्त रही संसद 

जब देश 79वां स्वतंत्रता दिवस मना रहा था, उसी दौरान संसद 79 घंटे भी नहीं चल सकी. आंकड़े बताते हैं कि हालात कितने गंभीर थे. 24 जुलाई को लोकसभा केवल 12 मिनट चली। 1 अगस्त को भी कामकाज महज 12 मिनट तक ही सीमित रहा. 23 जुलाई को लोकसभा 18 मिनट में स्थगित करनी पड़ी और 4 अगस्त को 24 मिनट में ही सदन की कार्यवाही खत्म हो गई. पूरे 21 दिनों में लोकसभा सिर्फ 5 दिन ही एक घंटे से ज्यादा चली. सवाल यह है कि जो सांसद एक घंटे बैठकर काम नहीं कर पाए, उन्हें जनता पांच साल की जिम्मेदारी क्यों सौंपे.


राजनीति बढ़ी, चर्चा घटी

संसद में वर्तमान में जो हंगामा चल रही है, वैसा पहले कम देखने को मिलता था. कभी संसद में कामकाज ज्यादा हुआ करता था, लेकिन धीरे-धीरे राजनीति और हंगामा बढ़ता गया और चर्चा घटती गई. भारत की पहली लोकसभा 14 सत्रों में 3784 घंटे चली थी. अगर आंकड़ों पर नजर डालें तो 1974 तक हर लोकसभा कार्यकाल में बैठकों की संख्या लगातार 100 से ज्यादा रही. लेकिन 1974 के बाद से 2011 तक केवल 5 बार ऐसा हुआ जब बैठकें 100 के पार पहुंच सकीं. पहली लोकसभा में 333 बिल पास हुए थे, जबकि 17वीं लोकसभा यानी 2019 से 2024 के बीच सिर्फ 222 बिल पास हो पाए. इस बार भी संसद में कुछ अहम बिल पास हुए, लेकिन विपक्ष के विरोध और हंगामे के बीच बिना चर्चा के. लेकिन सत्र के समाप्ति के बाद भी सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच हंगामा बरकरार है.

मालामाल हैं 93 फीसदी सांसद

आज संसद में बैठे 93 फीसदी सांसद करोड़पति हैं. उन्हें हर महीने एक लाख 24 हजार रुपए वेतन मिलता है. इसके अलावा 84 हजार रुपए संसदीय क्षेत्र भत्ता और 2500 रुपए प्रतिदिन का भत्ता दिया जाता है. वेतन और भत्ते जोड़कर देखा जाए तो हर सांसद को हर महीने करीब दो लाख 54 हजार रुपए जनता की कमाई से मिलते हैं.

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गौरतलब है कि संसद को लोकतंत्र का मंदिर कहा जाता है. यहां से देश की दिशा तय होती है. लेकिन जब बहस की जगह शोर और समाधान की जगह टकराव बढ़ जाए तो नुकसान सीधे जनता को होता है. अब सवाल यही है कि आने वाले सत्रों में सांसद जनता के भरोसे पर खरे उतरेंगे या फिर राजनीति की तकरार में एक और मौका गंवा देंगे.

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