निचली अदालतों में जजों की नियुक्ति पर सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला, तीन साल की प्रैक्टिस जरूरी
इन फैसलों से स्पष्ट है कि सुप्रीम कोर्ट न्यायिक प्रणाली में पेशेवर अनुभव, योग्यता और समानता सुनिश्चित करने के लिए ठोस कदम उठा रही है. इससे न केवल बेहतर न्यायाधीश तैयार होंगे, बल्कि सेवानिवृत्त जजों को भी उनकी सेवाओं के लिए सम्मानजनक पेंशन मिलेगी.

Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट ने निचली अदालतों में जजों की नियुक्ति प्रक्रिया को लेकर एक अहम फैसला सुनाया है, जिससे न्यायिक प्रणाली में पारदर्शिता और गुणवत्ता बढ़ने की उम्मीद है. कोर्ट ने आदेश दिया है कि अब सिविल जज सीनियर डिवीजन के पद पर पदोन्नति ( प्रमोशन) के लिए विभागीय परीक्षा के जरिए चयन का कोटा 10% से बढ़ाकर 25% किया जाएगा. इसके लिए सभी उच्च न्यायालयों और राज्य सरकारों को सेवा नियमों में जरूरी बदलाव करने के निर्देश दिए गए हैं.
अब जरूरी होगी 3 साल की प्रैक्टिस
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि सिविल जज जूनियर डिवीजन परीक्षा में बैठने के लिए उम्मीदवार के पास कम से कम 3 साल का प्रैक्टिस अनुभव होना अनिवार्य होगा. यह अनुभव बार काउंसिल में पंजीकृत किसी वकील द्वारा प्रमाणित होना चाहिए, जो कम से कम 10 वर्षों से वकालत कर रहा हो. इतना ही नहीं, लॉ क्लर्क के रूप में काम किए गए अनुभव को भी अब गणना में शामिल किया जाएगा.
जज बनने से पहले मिलेगा 1 साल का प्रशिक्षण
न्यायपालिका की गुणवत्ता सुधारने की दिशा में एक और महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सिविल जज चुने जाने के बाद सभी को एक वर्ष का प्रशिक्षण लेना अनिवार्य होगा, ताकि वे अदालत में कार्यभार संभालने से पहले व्यवहारिक अनुभव प्राप्त कर सकें.
जहां प्रक्रिया शुरू हो चुकी, वहां लागू नहीं होंगे नए नियम
कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया है कि जहां पहले से ही सिविल जज जूनियर डिवीजन की नियुक्ति प्रक्रिया शुरू हो चुकी है, वहां 3 साल की प्रैक्टिस की नई शर्त लागू नहीं होगी. वहीं, जिन राज्यों में यह प्रक्रिया सुप्रीम कोर्ट के आदेश के कारण स्थगित थी, उन्हें अब संशोधित नियमों के तहत प्रक्रिया फिर से शुरू करनी होगी.
‘वन रैंक, वन पेंशन’ जजों के लिए भी
इसके अलावा, सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के सेवानिवृत्त जजों के लिए भी एक ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए ‘वन रैंक, वन पेंशन’ की व्यवस्था लागू करने का आदेश दिया है. कोर्ट ने कहा कि जजों की नियुक्ति भले ही जिला न्यायपालिका से हो या बार से, उन्हें हर साल कम से कम 13.65 लाख रुपये पेंशन मिलनी चाहिए. यह फैसला CJI जस्टिस बी.आर. गवई की अध्यक्षता वाली बेंच ने सुनाया.
इन फैसलों से स्पष्ट है कि सुप्रीम कोर्ट न्यायिक प्रणाली में पेशेवर अनुभव, योग्यता और समानता सुनिश्चित करने के लिए ठोस कदम उठा रही है. इससे न केवल बेहतर न्यायाधीश तैयार होंगे, बल्कि सेवानिवृत्त जजों को भी उनकी सेवाओं के लिए सम्मानजनक पेंशन मिलेगी.