Advertisement

बूढ़े मां-बाप को किया परेशान तो कोर्ट छीन सकता है बच्चों से संपत्ति का हक, जानिए क्या कहता है कानून

समाज को भी इस दिशा में संवेदनशील बनने की ज़रूरत है. बच्चों को चाहिए कि वे सिर्फ कानून के डर से नहीं, बल्कि इंसानियत और रिश्तों की गरिमा को समझते हुए अपने माता-पिता की सेवा करें. याद रखिए, संपत्ति से ज्यादा कीमती होता है सम्मान और रिश्तों की गर्मी.

24 Jun, 2025
( Updated: 24 Jun, 2025
11:47 AM )
बूढ़े मां-बाप को किया परेशान तो कोर्ट छीन सकता है बच्चों से संपत्ति का हक, जानिए क्या कहता है कानून

Property Rights From Children: संस्कृति में माता-पिता को भगवान का दर्जा दिया गया है. बचपन से ही हम यह सीखते आए हैं कि मां के चरणों में स्वर्ग होता है और पिता का हाथ ईश्वर की छाया के समान है. लेकिन क्या यही "भगवान" बुज़ुर्ग होने पर अपने ही घर में अपमान, तिरस्कार और उपेक्षा का जीवन जीने के लिए मजबूर हो जाएं? यह सवाल न केवल भावनात्मक रूप से झकझोरता है, बल्कि सामाजिक चेतना पर भी गंभीर चोट करता है.

समाज की विडंबना यही है कि जिन माता-पिता ने अपने बच्चों की हर जरूरत को पूरा करने में अपना जीवन खपा दिया, वही माता-पिता आज कई बार उपेक्षित महसूस करते हैं. वृद्धावस्था में जब उन्हें सबसे ज़्यादा सहारे की ज़रूरत होती है, तो कुछ संतानें उन्हें बोझ समझने लगती हैं. लेकिन अब कानून ने ऐसे माता-पिता के हाथों में एक मज़बूत अधिकार सौंपा है, जिससे वे न केवल अपना सम्मान, बल्कि अपनी संपत्ति भी वापस पा सकते हैं.

भारत में बुजुर्गों के अधिकार: कानून का सहारा

भारत सरकार ने वर्ष 2007 में “मेंटेनेंस एंड वेलफेयर ऑफ पेरेंट्स एंड सीनियर सिटीज़न्स एक्ट” लागू किया. इस कानून का उद्देश्य स्पष्ट है—बुजुर्गों को एक सुरक्षित, गरिमामय और आत्मनिर्भर जीवन प्रदान करना.

इस कानून के तहत, किसी भी ऐसे बुजुर्ग नागरिक को अधिकार है कि यदि उनके बच्चे या वारिस उनकी देखभाल नहीं कर रहे, तो वे उनसे मासिक भरण-पोषण की मांग कर सकते हैं. इतना ही नहीं, यदि संपत्ति इस शर्त पर दी गई थी कि संतान उनकी सेवा करेंगी, लेकिन बाद में वे उपेक्षा, दुर्व्यवहार या हिंसा पर उतर आएं, तो माता-पिता उस संपत्ति को कानूनी रूप से वापस लेने के लिए याचिका दाखिल कर सकते हैं.

वरिष्ठ नागरिकों को मिले कानूनी अधिकार

भारत में 60 वर्ष या उससे अधिक आयु वाले नागरिकों को "वरिष्ठ नागरिक" और 80 वर्ष से ऊपर के लोगों को "अति वरिष्ठ नागरिक" माना गया है. इनके अधिकारों की सुरक्षा के लिए सिर्फ एक कानून ही नहीं, बल्कि “नेशनल पॉलिसी फॉर ओल्डर पर्सन” भी बनाई गई है. इस नीति के तहत उन्हें निम्नलिखित सुरक्षा सुनिश्चित की जाती है:

आर्थिक सुरक्षा: पेंशन, ब्याज में छूट, टैक्स में राहत जैसे लाभ

स्वास्थ्य सेवाएं: वरिष्ठ नागरिकों के लिए विशेष हेल्थ स्कीम्स और सब्सिडी

आवास: वृद्धाश्रम और सीनियर सिटीजन फ्रेंडली आवास योजनाएं

सुरक्षा: शारीरिक और मानसिक शोषण से सुरक्षा के लिए पुलिस और अन्य संस्थागत सहायता

संपत्ति छीनने का अधिकार: बुज़ुर्ग लाचार नहीं हैं

कई बार माता-पिता अपनी संपत्ति अपने बच्चों को यह सोचकर दे देते हैं कि वे जीवन भर उनकी सेवा करेंगे. पर जब यही बच्चे अपने कर्तव्यों से मुंह मोड़ लेते हैं, तब यही भरोसा एक बोझ बन जाता है. इस परिस्थिति में "मेंटेनेंस एंड वेलफेयर ऑफ पेरेंट्स एंड सीनियर सिटिज़न्स एक्ट, 2007" बुजुर्गों को यह अधिकार देता है कि वे अपनी दी हुई संपत्ति को वापस मांग सकें.

यह संपत्ति चाहे वसीयत से मिली हो या गिफ्ट डीड के तहत दी गई हो. अगर उसका उपयोग बुज़ुर्ग के सम्मान और भरण-पोषण के विरुद्ध हो रहा है, तो सीनियर सिटीजन ट्राइब्यूनल में याचिका देकर उसे वापस लिया जा सकता है. खास बात यह है कि इसके लिए हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट नहीं, बल्कि विशेष ट्राइब्यूनल में ही सुनवाई होती है, जो तेज़ और कम खर्चीली प्रक्रिया होती है. जो माता-पिता एक समय अपने बच्चों के लिए अपना सब कुछ छोड़ देते हैं, उन्हें अपने जीवन के अंतिम समय में अपमान, हिंसा या तिरस्कार झेलने की कोई आवश्यकता नहीं है. अब वे कानून का सहारा लेकर न्याय प्राप्त कर सकते हैं.

समाज को भी इस दिशा में संवेदनशील बनने की ज़रूरत है. बच्चों को चाहिए कि वे सिर्फ कानून के डर से नहीं, बल्कि इंसानियत और रिश्तों की गरिमा को समझते हुए अपने माता-पिता की सेवा करें. याद रखिए, संपत्ति से ज्यादा कीमती होता है सम्मान और रिश्तों की गर्मी. और जब कोई बच्चा अपने मां-बाप से उनका सम्मान छीनने की कोशिश करता है, तो अब मां-बाप के पास भी विकल्प है , सम्मान से जीने का और कानूनी हक से लड़ने का.

Tags

Advertisement
Advertisement
कुरान के लिए हिंदू मुसलमान नहीं बनते, मिशन अभी मुसलमानों को पता भी नहीं है!
Advertisement
Advertisement
शॉर्ट्स श्रेणियाँ होम राज्य खोजें