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पहले चरण के चुनाव में बंपर वोटिंग के पीछे असली खिलाड़ी कौन? महिला वोटर, SIR या प्रशांत किशोर- समझें हर फैक्टर

Bihar Election 2025: बिहार विधानसभा चुनाव के पहले चरण में 18 जिलों की 121 सीटों पर 64.7% वोटिंग हुई, जो पिछले चुनाव से करीब 8% अधिक है. यह बढ़ोतरी राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण संकेत देती है. आमतौर पर वोटिंग बढ़ने को सत्ता-विरोधी लहर माना जाता है, लेकिन इस बार इसका असर प्रशासनिक सुविधा, कानून व्यवस्था, महिलाओं की भागीदारी, जनसुराज और प्रवासी मतदाताओं की वापसी से भी जोड़कर देखा जा रहा है.

Bihar Election

बिहार विधानसभा चुनाव के पहले चरण की वोटिंग ने सभी राजनीतिक दलों को चौंका दिया है. इस चरण में 18 जिलों की 121 सीटों पर करीब 64.7 प्रतिशत मतदान दर्ज किया गया है, जो पिछले चुनाव की तुलना में लगभग 8 प्रतिशत अधिक है. यह बढ़ोतरी न सिर्फ आंकड़ों में दिलचस्प है बल्कि राजनीतिक रूप से भी बहुत ही महत्वपूर्ण संकेत दे रही है. अब बड़ा सवाल यह उठ रहा है कि क्या यह बढ़ी हुई वोटिंग सत्तारूढ़ गठबंधन के पक्ष में है या मौजूदा सरकार को उखाड़ फेंकने के संकेत है?

वोट प्रतिशत बढ़ने का क्या होता हैं असली प्रभाव? 

विधानसभा चुनावों में वोटिंग प्रतिशत बढ़ने को आम तौर पर यह माना जाता है कि यह सत्ता-विरोधी लहर का इशारा है. यानी लोग मौजूदा सरकार को बदलना चाहते हैं. लेकिन बिहार की राजनीति हमेशा से समीकरणों और जातीय संतुलन पर टिकी रही है. कई बार देखा गया है कि अधिक वोटिंग का फायदा सत्तारूढ़ दलों को भी मिला है. राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि बिहार में इस बार वोटिंग में बढ़ोतरी के कई कारण हैं. प्रशासनिक सुविधा, बेहतर कानून व्यवस्था, महिलाओं की भागीदारी, जनसुराज का उभार और प्रवासी बिहारी वोटरों की वापसी भी है. 

पहले चरण में बेगूसराय आगे, शेखपुरा पीछे

चुनाव आयोग द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक, बिहार के अलग-अलग जिलों में मतदान का उत्साह देखने लायक रहा. मधेपुरा में 65.74%, सहरसा में 62.65%, दरभंगा में 58.38%, मुजफ्फरपुर में 65.23%, गोपालगंज में 64.96%, सीवान में 57.41%, सारण में 60.90%, वैशाली में 59.45%, समस्तीपुर में 66.65%, बेगूसराय में सर्वाधिक 67.32%, खगड़िया में 60.65%, मुंगेर में 54.90%, लखीसराय में 62.76%, शेखपुरा में न्यूनतम 52.36%, नालंदा में 57.58%, पटना में 55.02%, भोजपुर में 53.24% और बक्सर में 55.10% वोटिंग हुई है. इन आंकड़ों से यह साफ झलकता है कि बिहार के ग्रामीण और अर्ध-शहरी इलाकों में लोकतंत्र का जोश शहरों से कहीं ज्यादा रहा.

महिलाओं की भूमिका और 'M फैक्टर’ होगा निर्णायक

पहले चरण में बढ़े हुए वोट प्रतिशत का एक बड़ा कारण महिलाओं की मतदान में सक्रिय भागीदारी मानी जा रही है. पिछले विधानसभा चुनाव की तरह इस बार भी महिलाओं ने पुरुषों से अधिक संख्या में मतदान किया. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पिछले वर्षों में महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए कई योजनाएं चलाई हैं. हाल ही में 1 करोड़ 21 लाख महिलाओं के अकाउंट में डायरेक्ट 10 हज़ार रुपए  ट्रांसफर किया गया, जिसने ग्रामीण इलाकों में नीतीश सरकार के प्रति सकारात्मक माहौल बनाया है. वहीं विपक्ष ने भी महिलाओं को साधने के लिए कई लोकलुभावन घोषणाएं की हैं. तेजस्वी यादव ने कहा है कि अगर उनकी सरकार बनी तो 1.37 करोड़ जीविका दीदियों को 30 हजार रुपये सैलरी के साथ स्थाई नौकरी दी जाएगी. साथ ही महिलाओं को एकमुश्त 30 हजार रुपये और फ्री इंश्योरेंस की सुविधा देने का वादा भी किया गया है. ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि इस चुनाव में 'महिला वोटर यानी M फैक्टर' निर्णायक साबित हो सकता है.

प्रशांत किशोर ने भी किया बेहतर प्रयास 

इस बार का चुनाव इसलिए भी अलग है क्योंकि प्रशांत किशोर का जनसुराज आंदोलन पहली बार पूरे 243 सीटों पर मैदान में है. प्रशांत किशोर ने बेरोजगारी, पलायन और भ्रष्टाचार जैसे मुद्दों पर जोर देकर युवाओं के बीच मजबूत पकड़ बनाई है. राजनीतिक विशेषज्ञ मानते हैं कि जनसुराज का असर सीधे तौर पर वोट प्रतिशत में दिखाई दे रहा है. हर विधानसभा क्षेत्र में बूथ स्तर तक कार्यकर्ता तैनात करना आसान काम नहीं है. हालांकि यह कहना अभी जल्दबाजी होगी कि जनसुराज को कितनी सीटें मिलेंगी, लेकिन यह तय है कि उनकी मौजूदगी ने पूरे चुनाव को त्रिकोणीय मुकाबले में बदल दिया है.

वोटर लिस्ट में सुधार ने भी बदला समीकरण

पहले चरण में बढ़े हुए वोट प्रतिशत को Special Intensive Revision (SIR) से भी जोड़ा जा रहा है. इस प्रक्रिया के तहत ऐसे मतदाताओं के नाम हटाए गए हैं जो वास्तव में मौजूद नहीं थे. यानी 'फर्जी वोटर' साफ कर दिए गए हैं. आंकड़ों के अनुसार, बिहार की मतदाता सूची से करीब 65 लाख नाम हटाए गए हैं. इसका मतलब यह है कि इस बार वोट डालने वालों का प्रतिशत इसलिए भी अधिक दिख रहा है क्योंकि वोटर सूची में कुल मतदाताओं की संख्या कम हो गई है. यह एक सकारात्मक बदलाव है क्योंकि इससे असली मतदाताओं की भागीदारी का अनुपात बढ़ा है.

कोरोना इफेक्ट नहीं, छठ इफेक्ट ने किया कमाल 

2020 के विधानसभा चुनाव में कोरोना महामारी का भय वोटिंग को प्रभावित कर गया था. लोग भीड़ से बच रहे थे. इस बार ऐसा कोई डर नहीं था. इसके उलट, इस बार छठ पूजा का भी खास असर देखने को मिला. छठ के अवसर पर प्रवासी बिहारी बड़ी संख्या में अपने गांव लौटे और उन्होंने भी मतदान में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया. प्रवासियों में लंबे समय से रोजगार, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर असंतोष है. संभव है कि उन्होंने इस बार अपनी नाराजगी या उम्मीद को मतदान के जरिए जाहिर किया हो.

क्या संदेश देती है बढ़ी वोटिंग?

अब सवाल यह है कि 64.7 प्रतिशत की वोटिंग का संकेत क्या है? क्या यह नीतीश कुमार की वापसी का इशारा है या जनता बदलाव के मूड में है? कई राजनीतिक पर्यवेक्षक मानते हैं कि यह चुनाव सीधा जनता बनाम सरकार के बीच का मुकाबला है. नीतीश कुमार अपने लंबे कार्यकाल में सुशासन, महिला सशक्तिकरण और शिक्षा सुधार जैसे मुद्दों पर अपनी पहचान बना चुके हैं. वहीं विपक्ष बेरोजगारी, भ्रष्टाचार और पलायन के मुद्दे पर जनता को अपनी तरफ खींचने की कोशिश में है. जनसुराज के मैदान में उतरने से पारंपरिक गठबंधनों को भी नई चुनौती मिली है.

बताते चलें कि बिहार विधानसभा चुनाव का पहला चरण इस बार रिकॉर्ड तोड़ वोटिंग के लिए याद किया जाएगा. आंकड़े सिर्फ मतदान की गिनती नहीं बताते, बल्कि जनता की मनःस्थिति का आईना भी हैं. बढ़े हुए वोट प्रतिशत के पीछे कई कहानियां हैं. इसमें  महिलाओं की भागीदारी, प्रवासियों की वापसी, जनसुराज की चुनौती और मतदाता सूची में सुधार शामिल है. अब सबकी निगाहें 14 नवंबर को चुनावी नतीजे पर टिकी हैं. अब यह देखना होगा कि जनता ने बटन दबाकर वापसी का भरोसा जताया है या बदलाव की दस्तक दी है.

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