UNESCO में दिवाली को अमूर्त धरोहर का दर्जा, आज होगी दिल्ली में काशी वाली 'देव दीपावली', रोशनी से जगमगा उठेगा लाल किला
UNESCO: यह फैसला यूनेस्को की अंतरराष्ट्रीय समिति की बैठक में लिया गया. इस कदम से दुनिया भर में भारत की संस्कृति को नई पहचान और सम्मान मिला है. यह मान्यता साबित करती है कि दीपावली केवल भारत का त्योहार नहीं, बल्कि विश्वभर में भारतीय संस्कृति की रोशनी फैलाने वाला उत्सव है.
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भारत के लिए यह सचमुच खुशी और गर्व का पल है. यूनेस्को (UNESCO) ने भारत के सबसे महत्वपूर्ण और लोकप्रिय त्योहार दीपावली को अपनी अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर की सूची में शामिल कर दिया है. यह फैसला यूनेस्को की अंतरराष्ट्रीय समिति की बैठक में लिया गया. इस कदम से दुनिया भर में भारत की संस्कृति को नई पहचान और सम्मान मिला है. यह मान्यता साबित करती है कि दीपावली केवल भारत का त्योहार नहीं, बल्कि विश्वभर में भारतीय संस्कृति की रोशनी फैलाने वाला उत्सव है.
यह फैसला क्यों है खास?
दीपावली भारतीय जीवन का ऐसा हिस्सा है जो केवल एक त्योहार नहीं, बल्कि एकता, आध्यात्मिकता और विविधता का प्रतीक है. यह पर्व अंधकार पर प्रकाश और बुराई पर अच्छाई की जीत का संदेश देता है. यूनेस्को द्वारा इसे अंतरराष्ट्रीय धरोहर मानना इस बात की पुष्टि है कि यह परंपरा पीढ़ियों से चलती आ रही एक सांस्कृतिक विरासत है, जिसे संरक्षित करना जरूरी है. इस सूची में शामिल होने के बाद दीपावली की परंपराओं को संरक्षित करने, दुनिया में प्रचारित करने और आने वाली पीढ़ियों तक पहुँचाने में और अधिक मदद मिलेगी.
दीपावली- एक त्योहार से बढ़कर एक प्रेरणा
दीपावली को अक्सर रोशनी का त्योहार कहा जाता है, लेकिन इसके पीछे और भी गहरा अर्थ छिपा है. माना जाता है कि जब भगवान राम 14 साल के वनवास के बाद अयोध्या लौटे थे, तब पूरे शहर को दीपों से सजाया गया था. उसी परंपरा को हम आज भी दीपावली के रूप में मनाते हैं. यह त्योहार हमें याद दिलाता है कि जीवन में चाहे कितनी भी कठिनाइयाँ आएँ, प्रकाश और सकारात्मकता ही अंत में जीतते हैं. इसलिए दीपावली केवल खुशियों का प्रतीक नहीं, बल्कि उम्मीद और नई शुरुआत का संदेश भी देती है.
विश्व स्तर पर क्या बदलेगा?
दीपावली के इस अंतरराष्ट्रीय दर्जे के बाद दुनिया में भारत की सांस्कृतिक छवि और मजबूत होगी. अब दुनिया भर के लोगों में इस त्योहार को जानने और समझने की रुचि बढ़ेगी. इससे कई देशों में सांस्कृतिक कार्यक्रमों का प्रसार होगा, पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा और भारतीय परंपराओं पर शोध भी बढ़ेगा. सबसे बड़ी बात यह है कि भारत की सांस्कृतिक विरासत को वैश्विक सम्मान मिलेगा और इसे बड़े मंच पर पहचान मिलेगी.
UNESCO की सूची में अन्य भारतीय परंपराएँ
इससे पहले भी भारत की कई सांस्कृतिक परंपराएँ यूनेस्को की अमूर्त धरोहर सूची में शामिल हो चुकी हैं. इनमें कुंभ मेला, गरबा, दुर्गा पूजा और योग प्रमुख हैं. अब दीपावली का जुड़ना इस सूची को और समृद्ध बनाता है और दिखाता है कि भारत की संस्कृति कितनी विविध और अनोखी है.
UNESCO बैठक में रिकॉर्ड भागीदारी
- इस वर्ष यूनेस्को को कुल 78 देशों से 67 प्रस्ताव मिले. इस बैठक में 150 देशों के 700 से अधिक प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया.
- भारत ने दीपावली को लेकर विस्तृत प्रस्तुति दी जिसमें बताया गया कि यह त्योहार शांति, समृद्धि और मानवता का प्रतीक है.
- समिति ने भी माना कि दीपावली सिर्फ उत्सव नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक संदेश है जिसे दुनिया भर में समझने की जरूरत है.
दिल्ली में दीपावली जैसा माहौल
यूनेस्को के इस फैसले के बाद दिल्ली में 10 दिसंबर यानी आज रात दीपावली जैसा दृश्य दिखाई देगा. लालकिला, चांदनी चौक, इंडिया गेट, कर्तव्य पथ और राष्ट्रपति भवन जैसे स्थानों पर रंगोली बनाई जा रही है और दीयों की सजावट की तैयारी हो रही है. कई सरकारी इमारतों को दीपावली की तरह रोशन किया जाएगा. दिल्ली के संस्कृति मंत्री कपिल मिश्रा ने बताया कि शहर के प्रमुख ऐतिहासिक भवनों को दीयों और लाइट्स से जगमगाया जाएगा. लालकिले में विशेष कार्यक्रम होगा और आसपास का पूरा इलाका रंगोली, रोशनी और उत्सव की चमक से भरा नजर आएगा.
भारत पहली बार यूनेस्को पैनल की किसी बैठक की मेजबानी कर रहा है, जो देश के लिए अपने-आप में एक बड़ी उपलब्धि है. उद्घाटन कार्यक्रम में केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत, यूनेस्को के महानिदेशक खालिद अल-एनानी, दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता और यूनेस्को में भारत के स्थायी प्रतिनिधि विशाल वी. शर्मा मौजूद रहे. अगर दिवाली को इस बार विश्व धरोहर की सूची में आधिकारिक मान्यता मिल जाती है, तो 10 दिसंबर का यह दीपोत्सव भारत के सांस्कृतिक सम्मान और वैश्विक पहचान का बेहद ऐतिहासिक पल बन जाएग.
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