'अभी दिल्ली ऐसे फैसले के लिए तैयार नहीं...', पुरानी गाड़ियों पर रोक को लेकर LG ने सरकार को लिखा पत्र, कहा- इससे मिडिल क्लास को होगा नुकसान
15 साल पुरानी पेट्रोल और 10 साल पुरानी डीजल गाड़ियों पर प्रस्तावित बैन को लेकर दिल्ली के उपराज्यपाल वी. के. सक्सेना ने मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता को पत्र लिखकर आपत्ति जताई है. उन्होंने इसे आम जनता, खासकर मध्यम वर्ग के खिलाफ बताते हुए निर्णय को अव्यावहारिक और असंवेदनशील करार दिया है और फैसले को तत्काल स्थगित करने की मांग की है.

देश की राजधानी दिल्ली में एक बार फिर पर्यावरण बनाम आम जनता की जरूरतों को लेकर बहस छिड़ गई है. 15 साल पुरानी पेट्रोल और 10 साल पुरानी डीजल गाड़ियों पर प्रतिबंध लगाने की योजना पर अब सवाल उठने लगे हैं. इस मुद्दे पर अब दिल्ली के उपराज्यपाल वी. के. सक्सेना और मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता आमने-सामने दिखाई दे रहे हैं. उपराज्यपाल ने मुख्यमंत्री को एक पत्र लिखते हुए इस फैसले पर गंभीर आपत्ति जताई है और इसे दिल्ली की सामाजिक आर्थिक स्थिति के खिलाफ बताया है. उन्होंने साफ कहा कि यह निर्णय न तो व्यावहारिक है और न ही संवेदनशील.
आम जनता को होगा भारी नुकसान
एलजी सक्सेना का कहना है कि दिल्ली अभी इस तरह के फैसलों के लिए तैयार नहीं है. उन्होंने इस निर्णय को मध्यम वर्ग के हितों के खिलाफ बताया है. उनका तर्क है कि एक आम नागरिक वर्षों की बचत से गाड़ी खरीदता है और उस पर अचानक प्रतिबंध लगाना उसके साथ अन्याय है. उन्होंने यह भी कहा कि ऐसी गाड़ियों को अमान्य घोषित कर देना न केवल भावनात्मक चोट देता है बल्कि यह आर्थिक रूप से भी बोझिल स्थिति पैदा करता है. एलजी ने इस फैसले को तुरंत स्थगित करने की अपील की है.
CAQM की दिशा-निर्देशों पर उठाया सवाल
उपराज्यपाल ने केंद्र सरकार के तहत कार्यरत Commission for Air Quality Management (CAQM) के दिशा-निर्देशों पर भी सवाल उठाए हैं. उनका कहना है कि इन नियमों को लागू करने में व्यवहारिक कठिनाइयां हैं और दिल्ली जैसे घनी आबादी वाले शहर में इसका सीधा असर आम आदमी पर पड़ेगा. उन्होंने दिल्ली सरकार से अनुरोध किया है कि वह सुप्रीम कोर्ट के 2018 के उस आदेश की समीक्षा के लिए पुनः याचिका दायर करे, जिसमें इन पुरानी गाड़ियों को डी-रजिस्टर करने की बात कही गई थी.
भेदभाव का आरोप
सक्सेना ने इस बात पर भी नाराजगी जताई है कि ये नियम केवल दिल्ली जैसे शहरों में ही क्यों लागू किए जा रहे हैं, जबकि वही वाहन मुंबई, चेन्नई, अहमदाबाद जैसे अन्य महानगरों में अभी भी मान्य हैं. उन्होंने इसे संविधान में वर्णित समानता और न्याय के सिद्धांतों के विरुद्ध बताया. उनका मानना है कि अगर किसी नियम का उद्देश्य राष्ट्रीय स्तर पर वायु गुणवत्ता सुधारना है तो उसका दायरा केवल दिल्ली तक सीमित नहीं होना चाहिए. यह भेदभावपूर्ण रवैया नीतिगत अस्पष्टता को दर्शाता है.
जनता और प्रतिनिधियों की राय
एलजी ने यह भी बताया कि उन्हें इस आदेश के खिलाफ हजारों नागरिकों, पर्यावरण विशेषज्ञों और जनप्रतिनिधियों की ओर से प्रतिक्रियाएं मिली हैं. अधिकांश लोगों का मानना है कि यह नीति ज़मीन पर कारगर नहीं हो पाएगी और इससे न तो वायु प्रदूषण पर ठोस असर होगा और न ही आम लोगों को राहत मिलेगी. उन्होंने कहा कि नीति-निर्माण में ज़मीनी हकीकत को नजरअंदाज़ नहीं किया जा सकता. एकतरफा और बिना समुचित वैकल्पिक व्यवस्था के ऐसे प्रतिबंध लागू करना जन असंतोष को बढ़ा सकता है.
बताते चलें कि दिल्ली में वायु प्रदूषण एक गंभीर समस्या है, लेकिन इसके समाधान की दिशा में उठाए जाने वाले कदम जब तक जमीनी हालात और आम आदमी की जरूरतों को ध्यान में रखकर नहीं उठाए जाएंगे, तब तक वे कारगर नहीं हो सकते. उपराज्यपाल द्वारा उठाए गए सवाल न सिर्फ नीति की व्यवहारिकता पर रोशनी डालते हैं, बल्कि यह भी दिखाते हैं कि निर्णय लेने से पहले सार्वजनिक हित और वैकल्पिक योजनाओं पर गहराई से विचार करना आवश्यक है. आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या दिल्ली सरकार इस मुद्दे पर पुनर्विचार करती है या सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया जाता है.