'समाजवाद' और 'धर्मनिरपेक्षता' की संविधान में कोई जरूरत नहीं...', सीएम हिमंता बिस्वा सरमा की बड़ी मांग, कहा - इन दोनों शब्दों की करो छुट्टी
'समाजवाद' और 'धर्मनिरपेक्ष' शब्दों को संविधान प्रस्तावना से हटाए जाने की मांग लगातार तेज होती जा रही है. अब इस लड़ाई में असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा भी कूद चुके हैं. उन्होंने कहा है कि ' 'धर्मनिरपेक्षता' भारतीय विचार के खिलाफ जाती है. 'समाजवाद' कभी हमारी सच्ची आर्थिक दृष्टि नहीं थी, हमारा ध्यान हमेशा 'सर्वोदय अंत्योदय' पर रहा है.' ऐसे में दोनों शब्दों को हटाया जाना चाहिए.
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'समाजवाद' और 'धर्मनिरपेक्ष' शब्द को संविधान से हटाने की मांग लगातार तेज होती जा रही है. देश के कई भाजपा नेताओं, RSS के कार्यकर्ताओं और पदाधिकारियों ने इंदिरा गांधी सरकार में संविधान प्रस्तावना के तहत शामिल किए गए इन दोनों शब्दों को हटाने की मांग की हैं. इस बीच अपने बयानों से अक्सर चर्चा में रहने वाले असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा भी अब इस लड़ाई में कूद पड़े हैं. उन्होंने दोनों ही शब्दों की संविधान से छुट्टी करने की मांग उठाते हुए कहा है कि यह वेस्टर्न अवधारणाएं हैं. इनका भारतीय सभ्यता में कोई स्थान नहीं है. एक कार्यक्रम में पहुंचे असम के मुख्यमंत्री ने कांग्रेस पर भी निशाना साधा.
'समाजवाद' और 'धर्मनिरपेक्ष' की करो छुट्टी - सीएम हिमंता बिस्वा सरमा
बता दें कि भाजपा मुख्यालय में 'द इमरजेंसी' नामक पुस्तक का विमोचन करने के दौरान सरमा ने कहा कि 'आज हमने 'द इमरजेंसी डायरी' पुस्तक का विमोचन किया, जो आपातकाल के दौरान संघर्ष और प्रतिरोध के बारे में बात करती है. जब हम आपातकाल के बारे में बात करते हैं, तो यह इसके बचे हुए प्रभाव को दूर करने का सही समय है, जैसे प्रधानमंत्री मोदी औपनिवेशिक शासन की विरासत को मिटाने के लिए काम कर रहे हैं. आपातकाल के दो प्रमुख परिणाम हमारे संविधान में धर्मनिरपेक्षता और समाजवाद शब्दों का जुड़ना था. मेरा मानना है कि धर्मनिरपेक्षता 'सर्व धर्म समभाव' के भारतीय विचार के खिलाफ जाती है. समाजवाद भी कभी हमारी सच्ची आर्थिक दृष्टि नहीं थी हमारा ध्यान हमेशा 'सर्वोदय अंत्योदय' पर रहा है.'
'यह मूल संविधान का हिस्सा नहीं थे'
असम के मुख्यमंत्री ने कांग्रेस के इंदिरा गांधी सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि ' मैं भारत सरकार से अनुरोध करता हूं कि इन दो शब्दों, धर्मनिरपेक्षता और समाजवाद को प्रस्तावना से हटा दिया जाए, क्योंकि वह मूल संविधान का हिस्सा नहीं थे और बाद में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा जोड़े गए थे. धर्मनिरपेक्षता भारतीय अवधारणा तटस्थ होने के बारे में नहीं है, बल्कि 'सकारात्मक रूप से संरेखित' होने के बारे में है. 'धर्मनिरपेक्षता' शब्द उन लोगों द्वारा डाला गया था, जो इसे पश्चिमी दृष्टिकोण से देखते हैं. इसलिए इसे प्रस्तावना से हटा देना चाहिए.'
'आपातकाल को दोहरा नहीं सकते'
सरमा ने आपातकाल के नुकसान पर चर्चा करते हुए कहा कि 'हमें आपातकाल के दौर को नहीं भूलना चाहिए. 25 जून 1975 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की तरफ से घोषित आपातकाल 21 मार्च 1977 तक चला था. यह पूरी तरीके से व्यापक प्रेस सेंसरशिप, बिना मुकदमे के गिरफ्तारी, शिक्षा, राजनीति और नागरिक समाज में असंतोष को दबाने के लिए जाना जाता है.'
संविधान में कब शामिल हुए 'समाजवाद' और 'धर्मनिरपेक्ष' शब्द?
आपको बता दें कि साल 1970 की तत्कालीन इंदिरा गांधी सरकार ने 42वें संविधान संशोधन में समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष और अखंडता शब्दों को संविधान की प्रस्तावना में जोड़ा था. यह शब्द उस दौरान जोड़े गए थे, जब आपातकाल का दौर चल रहा था.
कैसे शुरू हुआ 'समाजवाद' और 'धर्मनिरपेक्ष' शब्द पर विवाद
बता दें कि यह बहस तब शुरू हुई, जब भाजपा आपातकाल के 50 साल पूरे होने को लेकर देशभर में 'संविधान हत्या दिवस' मना रही है. इस दौरान राष्ट्रीय स्व्यंसेवक संघ (RSS) के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले ने संविधान की प्रस्तावना में किए गए बदलावों को निरस्त करने के साथ-साथ कांग्रेस पार्टी से माफी मांगने की मांग की है. उनका कहना है कि संविधान की प्रस्तावना में समाजवाद और धर्मनिरपेक्ष शब्द आपातकाल के दौरान ही जोड़े गए थे. यह मूल संविधान का हिस्सा नहीं थे, जो भीमराव अंबेडकर ने तैयार किया था. दत्तात्रेय का कहना है कि दोनों शब्द रखना है या नहीं इस पर विचार होना चाहिए.
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