Advertisement

'धर्मनिरपेक्ष और समाजवाद शब्द बदले नहीं जा सकते लेकिन...', उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कहा - आंबेडकर ने संविधान पर कड़ी मेहनत की थी

संविधान की प्रस्तावना से 'धर्मनिरपेक्ष' और 'समाजवाद' शब्द को हटाने का मामला देश भर में सुर्खियों में बना हुआ है. RSS और भाजपा की मांग को लेकर विपक्षी दल इसका लगातार विरोध जता रहे हैं. वहीं अब इस मामले पर उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ का भी बयान सामने आया है.

संविधान से 'धर्मनिरपेक्ष' और 'समाजवाद' शब्द को हटाने और उसकी समीक्षा किए जाने पर RSS की मांग पर अब देश के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ का भी बयान सामने आया है. उन्होंने शनिवार को कहा कि संविधान की प्रस्तावना 'परिवर्तनशील नहीं' है. दुनिया के किसी अन्य देश में संविधान प्रस्तावना में कभी कोई बदलाव नहीं हुआ है, लेकिन भारत में ऐसा हुआ है. उपराष्ट्रपति ने यह बयान एक पुस्तक विमोचन कार्यक्रम के दौरान दिया. 

हमें इस पर विचार करना चाहिए - जगदीप धनखड़ 

शनिवार को पुस्तक विमोचन कार्यक्रम में पहुंचे उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कहा कि 'समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष और अखंडता शब्द को 1976 में 42वें संशोधन अधिनियम के जरिए जोड़ा गया था. हमें इस पर विचार करना चाहिए. डॉ भीमराव आंबेडकर साहेब ने इस पर कड़ी मेहनत की थी. निश्चित तौर पर उन्होंने इस पर ध्यान केंद्रित किया होगा'

क्या है धर्मनिरपेक्ष और समाजवाद शब्द का मामला?

बता दें कि बृहस्पतिवार को RSS यानी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने संविधान की प्रस्तावना से 'धर्मनिरपेक्ष' और 'समाजवाद' शब्द को हटाने या इस पर संशोधन का आह्वान किया था. RSS का कहना था कि इन दोनों शब्दों को आपातकाल के दौरान संविधान की प्रस्तावना में शामिल किया गया था. यह आंबेडकर द्वारा तैयार किए गए संविधान का हिस्सा नहीं था. 

'धर्मनिरपेक्ष' और 'समाजवाद' तहस-नहस करने के लिए नहीं है - RSS 

देश भर में इन दोनों शब्दों पर चल रहे बयानों के बाद शुक्रवार को राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने अपनी पत्रिका में प्रकाशित एक लेख में कहा है कि सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले द्वारा 'धर्मनिरपेक्ष' और 'समाजवाद' शब्द सिर्फ समीक्षा आह्वान के लिए है, ना कि उसे तहस- नहस करने के लिए है. यह आपातकाल के दौर की नीतियों की विकृतियों से मुक्त होकर इसकी 'मूल भावना' को बहाल करने के बारे में है. 

42वें संशोधन में तीन शब्द शामिल किए गए थे

बता दें कि भारत के संविधान की मूल प्रस्तावना 26 नवंबर 1949 को पारित की गई थी. उसके बाद साल 1976 में 42वें संविधान संशोधन द्वारा इसमें तीन शब्द जोड़े गए थे. इनमें 'समाजवाद', 'धर्मनिरपेक्ष' और 'राष्ट्रीय अखंडता' शब्द शामिल थे. यह बदलाव तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के नेतृत्व में हुआ था. तब से लेकर अब तक इन शब्दों पर समय-समय पर राजनीतिक विवाद चलते रहे हैं. इस पर सुप्रीम कोर्ट में भी कई याचिकाएं दायर हो चुकी हैं. हालांकि, कोर्ट की तरफ से इन याचिकाओं को खारिज कर दिया गया था.

Advertisement

यह भी पढ़ें

Advertisement